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Showing posts from 2021

यशपाल हिंदी साहित्यकार

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"मैं जीने की कामना से, जी सकने के प्रयत्न के लिए लिखता हूँ। बहुत चतुर और दक्ष न होने पर भी यह बहुत अच्छी तरह समझता हूँ कि मैं समाज और संसार से पराङ्मुख होकर असांसारिक और अलौकिक शक्ति में विश्वास के सहारे नहीं जी सकूँगा।" -यशपाल  'मैं क्यों लिखता हूँ'   आज यशस्वी कथाकार व निबन्धकार यशपाल जी की पुण्यतिथि हैं ।महान कथाकार यशपाल जी का स्मृति दिवस पर उन्हें शत-शत नमन! झूठा-सच के लेखनीकार क्रांतिकारी यशपाल जी के कृतित्व को नमन! यशपाल जैसे कलमकार राष्ट्रभाषा हिंदी की सशक्तता को स्वर देते हैं, यशपाल की मजबूत लेखनी उन भाषा विमर्शकारों की कल्पित आवाज के लिए एक सबक हैं जिनके लिए हिंदी मात्र उत्तर भारत की भाषा हैं । सादर नमन! यशपाल जी   #हिंदी  #यशपाल  #साकेत_विचार

2022 में चुनाव

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 2022 में चुनाव!  पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं । चुनावी सर्वेक्षणों की शुरूआत हो चली है। इसमें अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। मीडिया चैनलों द्वारा यह किया जाना किसी षडयंत्र का हिस्सा लगता है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह सरासर गलत है। भारतीयता का अपमान है।  मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह इस खेल में सबसे आगे शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदु या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए । मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो ।  एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले

अटल बिहारी वाजपेयी का काव्य व्यक्तित्व

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अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व उनकी कविताओं से झलकता हैं । कृतित्व को नमन! https://www.hindi.awazthevoice.in/lifestyle-news/Atal-Bihari-Vajpayee-s-personality-is-reflected-in-his-poems-11169.html

स्वामी श्रद्धानंद का हिंदी प्रेम

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स्वामी श्रद्धानन्द जी का हिंदी प्रेम सनातन संस्कृति के महान उद्घोषक गाँधी को महात्मा बनाने वाले श्रद्धानन्द महाराज का हिंदी प्रेम जगजाहिर था। आप जीवन भर स्वामी दयानन्द के इस विचार को कि "सम्पूर्ण देश को हिंदी भाषा के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया जा सकता हैं।""  सार्थक रूप से इसे क्रियान्वित करने में अग्रसर रहे। सभी जानते हैं कि स्वामी जी ने कैसे एक रात में उर्दू में निकलने वाले सद्धर्म प्रचारक अख़बार को हिंदी में निकालना आरम्भ कर दिया था जबकि सभी ने उन्हें समझाया की हिंदी को लोग भी पढ़ना नहीं जानते और अख़बार को नुकसान होगा। मगर वह नहीं माने। अख़बार को घाटे में चलाया मगर सद्धर्म प्रचारक को पढ़ने के लिए अनेक लोगों ने विशेषकर उत्तर भारत में देवनागरी लिपि को सीखा। यह स्वामी जी के तप और संघर्ष का परिणाम था।  स्वामी जी द्वारा 1913 में भागलपुर में हुए हिंदी सहित्य सम्मेलन में अध्यक्ष पद से जो भाषण दिया गया था उसमें उनका हिंदी प्रेम स्पष्ट झलकता था। स्वामी जी लिखते हैं - मैं सन 1911 में दिल्ली के शाही दरबार में सद्धर्म प्रचारक के संपादक के अधिकार से शामिल हुआ था। मैंने प्रेस कैंप मे

पट्टाभि सीतारमैया -हिंदी सेवी, गाँधी जी के सहयोगी

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पट्टाभि सीतारामैया, महात्मा गाँधी के विश्वस्त सहयोगी आधुनिक भारत में स्वदेशी आर्थिक क्रांति के अगुआ माने जाते है। आपने बीमा कंपनियों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आप आंध्रा बैंक के जनक थे,जिसका समामेलन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में इंडिया में किया गया ।   नमक सत्याग्रह (1930), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1932) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लेने हेतु पट्टाभि सीतारमैय्या को ब्रिटिश सरकार द्वारा कई बार कैद किया गया था। आप भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे । भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या भी नियम समिति, संघ शक्तियों समिति और प्रांतीय संविधान समिति के सदस्य थे। भोगराजू पट्टाभि सीतारमैय्या ने `राष्ट्रीय शिक्षा` (1912),` भारतीय राष्ट्रवाद` (1913), `भाषाई आधार पर भारतीय प्रांतों के पुनर्वितरण` (1916), `असहयोग` (1921),` भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास` सहित कई पुस्तकें लिखीं। आप मध्य प्रदेश के पहले राज्यपाल के रूप में 1 नवंबर, 1956 से 13 जून, 1957 तक पद पर रहे।  आपका जन्म 24 नवंबर, 1880 को आंध्र प्रदेश के गुंडुगोलनू गाँव में हुआ था। जब बालक सीतारामैया मात्र चार-पाँच सा

आर्थिक सुधारों के नरसिंहा

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आज पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पी वी नरसिंह राव (पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव) जी की पुण्यतिथि है।  आज ही के दिन 23 दिसंबर, 2004 को उनका निधन हुआ था।  भाषा प्रेमी नरसिंहा राव अब तक के एकमात्र प्रधानमंत्री रहे जिन्हें 17 भाषाओं का ज्ञान था।  उनका जन्म 28 जून, 1921 को वर्तमान तेलंगाना राज्य के वारंगल जिले में हुआ था । 1991 से 1996 तक प्रधानमंत्री पद संभालने वाले वे कांग्रेस पार्टी से पहले गैर हिंदी-भाषी शख्स बने । गैर नेहरू-गांधी परिवार से होने के बावजूद वे पांच साल तक सत्ता में रहने वाले  पहले प्रधानमंत्री  रहे । लाइसेंस राज को खत्म करने सहित कई आर्थिक सुधारों का उन्होंने सूत्रपात किया । उनके वित्तमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण युग की शुरुआत की । बाद के प्रधानमंत्रियों ने उनकी आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाया ।  वर्तमान समय तक कांग्रेस पार्टी से मूल रूप से संबंधित रहे एक प्रकार से वे अंतिम प्रधानमंत्री रहे । नरसिंहा राव जी भारत में उदारीकरण के जनक माने जाते हैं । साथ ही उन्हें मनमोहन सिंह जी को राजनीति में लाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने ऐसे समय में पदभार सं

मानव धर्मं

सब कुछ पाने की होड़ ने मानव होने के धर्म को पीछे छोड़ दिया है । सबसे जरूरी है नैतिकवान होना।

पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र भावपूर्ण श्रद्धांजलि

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जिस किसी ने तालाब बनाया, वह महाराज या महात्मा ही कहलाया। एक कृतज्ञ समाज तालाब बनाने वालों को अमर बनाता था और लोग भी तालाब बनाकर समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे।  - अनुपम मिश्र,   'आज भी खरे हैं तालाब'* किताब से लेखक, गाँधीवादी व पर्यावरणविद अनुपम मिश्र की पुण्यतिथि पर सादर नमन!

प्रभाकर श्रोत्रिय : हिंदी साहित्यकार

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हिंदी हर युग में इस देश की आवाज़ रही है। आज उसके सामने एक और नयी पीढ़ी है, जिसके स्वप्न हरे हैं। वह त्वरित विश्व के साथ क़दम मिलाकर, बल्कि उससे भी आगे चलने को उत्सुक है। उसे अपनी भाषा में नवीनतम ज्ञान, प्रौद्योगिकी, सम्मान, आत्म निर्भरता समृद्धि, जीवन-यापन और उत्कर्ष के भरपूर अवसर मिलने चाहिए। - प्रभाकर श्रोत्रिय साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय की जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि

भोजपुरी रत्न भिखारी ठाकुर

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वर्ष 1887 में जन्में  लोक साहित्यकार भिखारी ठाकुर की आज जयंती  है। भोजपुरी हिंदी के महान साहित्यकार कवि,नाटककार, संगीतकार भिखारी ठाकुर ने अपनी पुश्तैनी कार्य नाई कर्म से जीवन-यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने अपनी भावप्रवणता और संप्रेषनीयता से लोक साहित्य में जो स्थान प्राप्त किया उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता। रोज़ी-रोटी की तलाश मे पलायन करने वालों के परिजनों की व्यथा-कथा का मर्मांतक चित्रण करती उनकी कालजयी नाट्य कृति "बिदेशिया" अमर गान है। भिखारी ठाकुर जी ने अपने प्रदर्शन कला का, जिसे लोकप्रिय शब्द में ‘नाच’ कहा जाता है को अमर किया।  रोज़ी-रोटी के सिलसिले में बंगाल यात्रा में वहाँ की रामलीला देखकर वे काफ़ी प्रभावित हुए। तब उन्होंने गांव लौटकर लिखना-पढ़ना-सीखना शुरू किया। वे इस बात को प्रमाणित करते है कि व्यक्ति अपनी प्रतिभा के बल पर अमर हो सकता है, उसके लिए अंग्रेज़ी एकमात्र जरुरी नहीं। बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी वियोग समेत अलग-अलग फलक पर रची हुई उनकी दो दर्जन कृतियां हैं। उनकी रचनाएं राम, कृष्ण, शिव,रामलीला, हरिकीर्तन आदि को समर्पित है। #जन्मदिन_भिखारी_ठाकुर  #नाच #भोजपुरी सा

काशी विश्वनाथ काॅरिडोर

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कल काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी राष्ट्र को समर्पित करेंगे । यह राष्ट्र की अध्यात्मिक चेतना का काॅरिडोर हैं । इसी के साथ यह काॅरिडोर आक्रांताओं द्वारा विकृत किए गए इतिहास को विस्मृत कर स्वर्णिम अतीत, राष्ट्रीय चरित्र, पुरा पुरुष को जागृत करने का संकल्प है।   'काशी' भगवान शिव की नगरी हैं , जो सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार इस समस्त जगत के आदि कारक माने जाते हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। जगत के प्रारंभिक ग्रंथों में से एक 'वेद' में इनका नाम रुद्र है। वे व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । हमारे यहाँ शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है। उसी शिव की नगरी कल परिष्कृत रुप में होगी।   दुर्भाग्य हैं हमारी विकृत इतिहास परंपरा का जो अपने चारित्रिक नायकों से सीख न लेकर उन्हें ग्रंथों में या परंपराओं में सिमटा रही हैं । कल का आयोजन सदियों की आध्यात्मिक विरासत को जमीन पर उतारने का संकल्प दिवस माना जा सकता हैं ।  काशी कॉरिडोर के बहाने इतिहास ने नई करवट ली है। भगवान शंकर की यह नगरी, जो धर्म,संस्कृति और संस्कार का ग

डाॅ राजेंद्र प्रसाद की शख्सियत और जवाहरलाल

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डा.राजेन्द्र प्रसाद की शख्सियत से पंडित नेहरु हमेशा अपने को असुरक्षित महसूस करते रहे। उन्होंने राजेन्द्र बाबू को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं दिया। हद तो तब हो गई जब 12 वर्षों तक राष्ट्रपति रहने के बाद राजेन्द्र बाबू देश के राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद पटना जाकर रहने लगे, तो नेहरु जी ने उनके लिए वहाँ पर एक सरकारी आवास तक की व्यवस्था नहीं की। उनकी सेहत का ध्यान नहीं रखा गया। दिल्ली से पटना पहुंचने पर राजेन्द्र बाबू बिहार विद्यापीठ, सदाकत आश्रम के एक सीलनभरे कमरे में रहने लगे।  उनकी तबीयत पहले से ही खराब रहती थी, पटना जाकर ज्यादा खराब रहने लगी, वे दमा के रोगी थे। सीलनभरे कमरे में रहने के बाद उनका दमा ज्यादा बढ़ गया। वहाँ उनसे मिलने के लिए जयप्रकाश नारायण पहुंचे। वे उनकी हालत देखकर हिल गए। उस कमरे को देखकर जिसमें देश के पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डा.राजेन्द्र प्रसाद रहते थे, उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने उसके बाद उस सीलन भरे कमरे को अपने मित्रों और सहयोगियों से कहकर कामचलाऊ रहने लायक करवाया। लेकिन, उसी कमरे में रहते हुए राजेन्द्र बाबू की 28 फरवरी,

देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद

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 महान स्वाधीनता सेनानी, त्याग एवं सादगी की प्रतिमूर्ति, संविधान निर्माता देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर शत शत नमन! भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण और साहस से काफी प्रभावित थे। स्वदेशी आंदोलन के अगुआ रहे राजेन्द्र बाबु वर्ष 1928 में कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिए। गांधीजी द्वारा जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार का अपील किया गया तो उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, को कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में नामांकन करवाया था।   जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। -देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद

मेरी स्वरचित कविता-जिंदगी एक सपर

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जिंदगी कई नए रंग देती है। यह  रंग हमें  जीवन यात्रा को देखने, महसूस करने का अवसर देती है। वास्तव में हम सभी एक यात्री के रूप में इस सफर को महसूस करते है। यहीं तो जिंदगी है। आइए महसूस करते है इस कविता के माध्यम से- मेरी स्वरचित कविता  सफर सफर इच्छाओं का  सफर आकांक्षाओं का सफर  अरमानों का सफर उम्मीदों का सफर  ना-उम्मीदों का सफर  आशावाद का सफर  प्रतीकवाद का सफर  बचपन का सफर  जवानी का सफर  बुढ़ापे का सफर  जीवन के हर मोड़ का सफर  बदलाव का सफर  नए आयाम का सफर  कुछ पाने का  कुछ खोने का सफर  ग़ैरत का सफर  बेगैरत का सफर  तनाव का सफर  कुछ खोकर पाने का सफर कुछ देकर पाने का सफर  अपने को खोकर   स्वयं को पाने का सफर  खुशियों का सफर गमों का सफर  इन सब में  संतुलन बनाने का सफर  स्वयं को स्थापित करने का सफर  अपने अधिकारों को पाने का सफर  अपने कर्तव्यों को जानने का सफर  जिम्मेदारियों का सफर  खुद के बडे होने का सफर  बड़ो से सीखने का सफर  छोटे से बड़े बन जाने का सफर  मानवता का सफर  बराबरी का सफर  दूसरों के हकों के लिए  लड़ने का सफर  स्वयं को बचाने का सफर  खुद को समझने का सफर  खुद को

शादियों में बढ़ता ताम-झाम

शादी को पारिवारिक प्रसंग बनाइए आज तक जितनी शादियों में मैं गया हूँ , उनमें से करीब 80% में दुल्हा- दुल्हन की शक्ल तक नही देखी... उनका नाम तक नहीं जानता था... अक्सर तो विवाह समारोहों मे जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नहीं आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी की कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है... भारत में लगभग हर विवाह में हम 75% ऐसे लोगों को आमंत्रित करते हैं जिसे आपके वैवाहिक आयोजन, व्यवस्था में कोई खास रुचि नही, जो आपका केवल नाम जानती है... जिसे केवल आपके घर का पता मालूम है, जिसे केवल आपके पद- प्रतिष्ठा, रसूख से मतलब है.. और जो केवल एक शाम का स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आती है।   आज की पेशवर शादियों का सच बन चुका है।  विवाह कोई सत्यनारायण भगवान की कथा नहीं है कि हर आते जाते राह चलते को रोक रोक कर प्रसाद दिया जाए... *केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत close मित्रों के अलावा आपके विवाह मे किसी को रुचि नही होती...* ये ताम-झाम , पंडाल झालर , सैकड़ों पकवान , आर्केस्ट्रा DJ , दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का काम करता है... *लोग आते हैं इसे देखते है

गुरु तेगबहादुर, किसान, और पंजाब

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 दिखी न दूजी जाति कहुँ , सिक्खन -सी मजबूत ,   तेग बहादुर - सो पिता , गुरुगोविंद सो पूत ।  धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी दिवस पर मन में कुछ विचार आए। गुरु तेगबहादुर जी ने धर्म एवं संस्कृति के रक्षार्थ मुगलों के आगे कभी हार नहीं मानी। हाल में हमने देखा कि किस प्रकार से पंजाब के मजबूत समृद्ध किसानों ने राजनीतिक आंदोलन के नाम पर किसान कानून को निरस्त करवा दिया। हालांकि इस कानून को वापस करके सरकार ने कुछ नया तो नहीं किया, क्योंकि तीनों कानून पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण लंबित थे। पर आंदोलनजीवियों की राजनीतिक हठधर्मिता के कारण इस कानून में किसी भी प्रकार से संतुलन भी नही लाया जा सका था। अब सरकार ने एक राजनीतिक निर्णय के तहत इसे वापस ले लिया है, जिसे हठधर्मी किसान नेताओं की जीत मानी जा सकती है। अब आते है मूल बात पर। इस हठधर्मिता का अभिनंदन! पंजाबी समुदाय अपनी जिद, दृढ़ता, बहादुरी एवं मेहनत के कारण जाना जाता है। इस समुदाय ने अपनी इन्हीं गुणों के कारण पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। इस आंदोलन में हासिल

संविधान दिवस और देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद

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संविधान दिवस  आइए ! संविधान को सशक्त करने में अपना योगदान दें।  संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में समिति को संबोधित करते हुए कहा था "यदि लोग, जो चुनकर आएंगे योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वह दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है। हमारे में सांप्रदायिक, जातिगत, भाषागत और प्रांतीय अंतर है। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले और दूरदर्शी लोगों की जरूरत है जो छोटे छोटे समूह तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें।" इस संबोधन से स्पष्ट है कि देश को एक सशक्त, पारदर्शी नेतृत्व की जरूरत प्रारंभ से ही रही है। ऐसा नेतृत्व जो देश के व्यापक हितों को समझे न कि छोटे-छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान करें । आइए भारतीयता एवं मानवता के लिए संविधान के मूल अर्थ को समझें।   जय हिंद ! जय हिंदी !! #संविधान_दिवस

भाषिक आत्महीनता

इस बार भी #valleyofwords वालों ने वही गलती करीं। वैली ऑफ वर्ड्स यानी शब्दों की घाटी, अब भला भारत में शब्दों की घाटी का आयोजन हो और बैनर अंग्रेजी में! वो भी तब जब यह देश विनोबा भावे जी की 125वीं वर्षगाँठ मनाने की तैयारी कर रहा है। जो हिंदी और देवनागरी लिपि के समर्थक थे। पर इनके लिए न हिंदी का महत्व है न संविधान का। यूँ तो हर चीज में संविधान का हवाला देंगे। पर भाषाई असमानता पर मौन? रोज ही बच्चे पीस रहे है अंग्रेजी की वजह से। पर किसी में हिम्मत नहीं । हम जड़ हो चुके है। हम अपनी भाषाओं को कब महत्व देंगे । हर आयोजन में विशेष रूप से निजी आयोजनों में हिंदी एवं देशी भाषाओं की अवमानना की जाती है। पिछली बार भी की थी, इस बार भी, हर बार करेंगे । क्योंकि अंग्रेजी से सम्मान जो बढ़ता है। ऐसे लोग गांधीजी के भक्त बनेंगे, सरकारों को कोसेगें। सरकारें भाषा के मामले में बहुत कुछ करती है। पर हम? कूंद हो चुके है। हर बड़े आयोजन में अंग्रेजी । कब आएगी अपनी भाषाएं। #जेएनयू की 30 से 300 पर राजनीतिक विरोध करने वालो, अन्य विषयों पर हंगामा बरपाने वालों को इस देश में शिक्षा में व्याप्त भाषिक असमानता नहीं दि

पीढ़ी के साथ संस्कृति का क्षरण

पीढ़ी के साथ संस्कृति का क्षरण !  जब बच्चे महर्षि वेदव्यास , वाल्मीकि, संत तिरुवल्लुवर, रामानुज, कबीर, नानक, महात्मा बुद्ध, महावीर, गुरु गोविन्द सिंह से इतर सेंट अलबर्ट, जेवियर्स, जोसेफ, माइकल,केरेन के नाम और संस्कृति से प्रभावित होंगे तो भारतीय संस्कृति नाम की ही बचेगी। हमारी पूरी संस्कृति शिक्षा और संस्कारों के अपसंस्कृति के कारण विलुप्ति की ओर हैं । सब कुछ में मिलावट। किसी प्रकार की शुद्धता नहीं, यह स्थिति तब और कठिन होगी जब एक से दो दशक में भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाली, पालन करने वाली पीढ़ी अपनी वय पूरी कर परलोक गमन कर जाएगी। अनुशासन से जीने वाली, ब्रह्ममूहर्त में जगने वाली, रात को जल्दी सोने वाली, आस-पड़ोस को परिवार का सदस्य मानने वाली, रिश्तों का लिहाज करने वाली, घर के आंगन, दालान, तुलसी का चौबारा, ब्रह्मबेला में देवपूजा के लिए पुष्प तोड़ने वाली, पूजा-पाठ करने वाली, प्रतिदिन मंदिर जाने वाली आदि का पालन करने वाले पीढ़ी कम हो रही है। घर से निकलते ही रास्ते में मिलने वालों से बात करने वाली, उनका सुख-दु:ख पूछने वाली, बड़े-बुजुर्ग के पैर छूने वाली, प्रणाम करने वाली, पूजा किये ब

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस - कुछ विचार

 कल बड़ी ख़ामोशी के साथ एक दिवस आया और चला गया। हर विषय पर मुखर रहने वाला सोशल मीडिया भी मौन रहा। अंध मुखरता के कारण यह वर्ग बड़ी खामोशी के साथ खुद को बदनाम महसूस कर रहा है। जैसे सरकार ने एक नकारात्मक भय से किसान कानून निरस्त कर दिया । खैर यहाँ हम बात कर रहे है अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की। वैसे खुशी इस बात की है कि अन्य दिवसों की भांति इस मूक मजदूर वर्ग के लिए कोई तो दिवस बना। अन्यथा, यह वर्ग तो अपनी झूठी शान में जी रहा है। समाज में आधी से अधिक आबादी का हिस्सा इस तथाकथित अत्याचारी समाज से अपील है कि अपनी कमियों को पहचाने, अपनी खूबियों को जाने। आप समाज के महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप निर्माता नहीं, पर निर्माण के स्तंभ जरूर हैं । समाज आपके बिना चल नहीं सकता। क्योंकि वर्तमान में समाज के बड़े हिस्से की अंधभक्ति में हम भावी पीढ़ी के लड़कों का हश्र वहीं न कर दें जो आज से तीन सदी पूर्व लड़कियों के साथ होता था। आज का यथार्थ यह है कि लडकें भी शोषण का शिकार हो रहे हैं। समाज का मूल स्वभाव है 'सख्तर भक्तों, निर्ममों यमराज'। वैसे अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस 2021 का मुख्य प्रसार उद्दे

ट्रेन में बर्थ आवंटन की प्रक्रिया

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 सभी के लिए कुछ दिलचस्प।  क्या आप जानते हैं कि IRCTC आपको सीट चुनने की अनुमति क्यों नहीं देता है?  क्या आप विश्वास करेंगे कि इसके पीछे का तकनीकी कारण PHYSICS है।  ट्रेन में सीट बुक करना किसी थिएटर में सीट बुक करने से कहीं अधिक अलग है।  थिएटर एक हॉल है, जबकि ट्रेन एक चलती हुई वस्तु है।  इसलिए ट्रेनों में सुरक्षा की चिंता बहुत अधिक है।  भारतीय रेलवे टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह टिकट इस तरह से बुक करेगा जिससे ट्रेन में समान रूप से लोड वितरित किया जा सके।  मैं चीजों को और स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लेता हूं: कल्पना कीजिए कि S1, S2 S3... S10 नंबर वाली ट्रेन में स्लीपर क्लास के कोच हैं और प्रत्येक कोच में 72 सीटें हैं।  इसलिए जब कोई पहली बार टिकट बुक करता है, तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करेगा जैसे कि S5, बीच की सीट 30-40 के बीच की संख्या, और अधिमानतः निचली बर्थ (रेलवे पहले ऊपरी वाले की तुलना में निचली बर्थ को भरता है ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके)  और सॉफ्टवेयर इस तरह से सीटें बुक करता है कि सभी कोचों में एक समान यात्री वितरण हो

छठ पर्व की महत्ता

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हमारे घर-समाज में छठी मइया की व्रत-पूजा की समृद्ध परम्परा रही है। परंपरागत रूप से घर के वरिष्ठ सदस्य माता, अपवाद स्वरूप पुरूष भी छठ व्रत करते थे। हालांकि समय के साथ इस स्वरूप में बदलाव आए है।  छठ पर्व यह सीख देता है कि  प्रकृति अथवा सृष्टि में सब कुछ क्षणभंगुर है,  समय के साथ बस रूपांतरण होता रहता है, अतः अहंकार का त्याग कर हर छोटी से छोटी वस्तु का सम्मान करना चाहिए।   जो उदय हुआ उसका अस्त होना तय है। इसकी अनुभूति छठ के अवसर पर अस्त होते सूर्यदेव तथा उगते सूर्य को आराधना के दौरान होती है।  छठ पर्व की परम्परा को आगे बढ़ाने में पीढ़ीगत क्रम में परिवार के सदस्यों द्वारा इसे अपनाने की परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है। बचपन से इस व्रत को देखने वाले, इसे करने वाले इसके सहज स्वरूप के कारण इसे अपनाते चले गए । दादी, छोटकी दादी, बड़की चाची, माँ, बड़की भाभी, पत्नी या घर के पुरूष द्वारा इसे करने से छठ की समृद्ध परंपरा स्थापित होती गयी। घर के बच्चों में भी इससे समृद्ध संस्कार का निर्माण हुआ । बच्चों को यह व्रत परम्परा बहुत लुभाती हैं । इसके लोक गीत, गांवों, परंपराओं की ओर खींचते हैं । परिवार के सभ

बिहार निर्माता डा. सच्चिदानंद सिन्हा -भारत के अग्रणी संविधान निर्माता

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आधुनिक बिहार के निर्माता डाॅ सच्चिदानंद सिन्हा की जयंती पर शत शत नमन!  उनसे जुड़ा एक संस्मरण है 'विधि शास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त करके जब डाॅ सिन्हा बिहार लौटेें तो उनसे एक पंजाबी अधिवक्ता ने पूछा आप किस प्रदेश से हो तो उन्होंने उत्तर दिया बिहार से। वे आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि उस समय बिहार का एक प्रदेश के रूप में गठन नहीं हुआ था। बिहार ब्रिटिश शासन में बने बंगाल का भाग था। अधिवक्ता महोदय ने पूछा कि बिहार नाम का कोई प्रांत तो हिंदुस्तान में है ही नही तब डाॅ सिन्हा ने जवाब दिया कि है नहीं पर जल्दी ही हो जाएगा। यह बात फरवरी 1893 की है। उसके बाद मात्र 9 वर्षों के भीतर बिहार राज्य की सशक्त नींव रखी गयी। कहा जाता है जो स्थान बंगाल के नव निर्माण में राजा राम मोहन राय का है वहीं स्थान बिहार के नव निर्माण में डाॅ सच्चिदानन्द सिन्हा का है। साथ ही देश के युवाओं को यह भी नोट करनी चाहिए कि आधुनिक भारत के संविधान के निर्माण में कायस्थ कुल रत्न स्व. डा. सच्चिदानंद सिन्हा की अहम् भूमिका रही। वे बिहार की भोजपुरी माटी के महत्वपूर्ण स्थल बक्सर जिले के मूल निवासी थे। उनका जन्म वर्तमानु डु

चित्रगुप्त पूजा के बारे में

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  संकलन साभार 

भैया दूज की पौराणिक कथा

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भैया दूज की पौराणिक कथा भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ल का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने 'तथास्तु' कहकर यमुना को अमूल्य

एक विचार - निश्चल विश्वास

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सनातन सत्य आपके पास जो कुछ भी है वो इस संसार के करोड़ों लोगों के पास नही है। इसलिए परमपिता ने आपको जो दिया है उसके प्रति आभार प्रकट कीजिए और इन त्यौहारों पर अपनी ख़ुशियाँ साझा कीजिए। #साकेत_विचार

आदि गुरु शंकराचार्य और सांस्कृतिक एकता

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भारतवर्ष को सांस्कृतिक एवं धार्मिक रूप से जागृत करने वाले आदि शंकराचार्य की केदारनाथ धाम स्थित समाधि पर मूर्ति का अनावरण । कभी इन चार धामों से तमाम भौगोलिक बाधाओं के बीच भारत की अद्भुत सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषिक एकता का उद्घोष होता था। शायद इसी को देखते हुए कभी भाषाविद् एमनो ने कहा था-' पूरा भारत एक ही भाषिक परिवार का अंग हैं । धर्मो रक्षति रक्षितः।  #साकेत_विचार

हिंदी विश्व

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हिंदी राजनेताओं, पत्रकारों की चिंताओं से अलग कश्मीर से अमेरिका तक आम पथ पर सरपट भाग रही है। अतः हिंदी के बारे में एक वर्ग द्वारा दी जा रही जहरीली खुराक से दूर रहें। बहरहाल हिंदी राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा के रूप में सर्वस्वीकृत है और तमाम दबावों एवं हीनता बोध के बावजूद यह विश्व स्तर पर मजबूती के साथ स्थापित हो रही है। लोग इसे सम्मान भी दे रहे है। समस्या या कमी हिंदी को अपनी मातृभाषा मानने वालों या हिंदी भाषी राज्यों में ज्यादा है यहां के लोग हिंदी को वह सम्मान नहीं देते जिसकी वह हकदार है। ऐसे में आज हिंदी तकनीक एवं ज्ञान विज्ञान की भाषा के रूप में गरिमा के साथ स्थापित नही है। यदि इसमें लेखन हो भी रहा है तो हिंदी के मठाधीश उसे जगह नहीं देते। एक समय में ओडीशा या बंगाल जैसे प्रदेशों की ग्रामीण महिलाएं घरों में हिंदी की पत्र-पत्रिकायें पढ़ती थीं । आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल में भी लिखित स्तर पर इसकी पहुँच बहुत अधिक थी। तमिलनाडु में भी पर्याप्त सम्मान था। पर अब? समस्या हिंदी के मठाधीशों से ज्यादा है। दूसरी हम हिंदी की मूल ताकत से भी अंजान है। केवल रोने से या सरकारों को कोसने क्या होगा?

हिंदुस्तानी जबान युवा अंक में मेरा आलेख

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 हिन्दुस्तानी ज़बान युवा पत्रिका अंक ( अक्टूबर- दिसम्बर 21) खेल विशेषांक में मेरे लेख 'खेल की दुनिया के किंवदंती पुरूष- मेजर ध्यानचंद को जगह देने के लिए बड़े भाई Sanjiv Nigam जी का आभार । जब मैंने एक पोस्ट के रूप में इसे फेसबुक पर लिखा था तो उनका फोन आया। इसे थोड़ा बड़ा करके हमारी पत्रिका के लिए भेज दीजिए । मेरी लेखनी का सम्मान बढ़ा । क्योंकि यह पत्रिका एक ऐतिहासिक संस्थान से सम्बद्ध हैं । यह पत्रिका राष्ट्रभाषा के प्रबल समर्थक महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ से जुड़ी है। जिसकी स्थापना सन् 1942 में महात्मा गाँधी ने की थी। यह संस्था हिन्दुस्तानी (सरल हिन्दी) के साथ-साथ गाँधीजी के उसूलों के प्रचार-प्रसार में भी यह संस्था कार्यरत है। संस्थान की वेबसाइट से पता चलता है कि इस महान संस्थान को डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, आचार्य काकासाहेब कालेलकर, श्री बाला साहेब खेर, डॉ. ताराचंद, डॉ. ज़ाफर हसन, प्रो. नजीब अशरफ नदवी, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, श्रीमती पेरीन बहन कैप्टन, श्रीमती गोशीबहन कैप्टन, पंडित सुन्

इटली में प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय संस्कृति का उद्घोष

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यूरोप का 'भारत' कहे जाने वाले इटली में भारतीय संस्कृति का उद्घोष! इटली में भारतीय भाषा, सभ्यता संस्कृति का प्रसार प्रचार कर रहे संस्कृत विद्वानों, भारतविदों, प्रवासी भारतीयों के साथ ही वेटिकन के मुख्य पुजारी सेंट फ्रांसिस से भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भेंट की। कभी प्राचीन भारतीय संस्कृति का गढ़ माने जाने वाले रोम में गीता के श्लोक गूंजे, वेदों की ऋचाएं गूंजी, भारतमाता की जय, वंदेमातरम का जयघोष हुआ। #साकेत_विचार

अभिनेता पुनीत राजकुमार का असमय जाना

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जो कमाया सब यही रह जाएगा, इसको आत्मसात् करने वाले अभिनेता पुनीत राजकुमार मात्र 46 की आयु में स्वर्गवासी हो गए । अपनी आय से 45 निःशुल्क विद्यालय, 26 अनाथालय,16 वृद्धाश्रम,19 गौशालाएँ, 1800 अनाथ बेटियों की उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार पुनीत राजकुमार का निधन आज हृदय गति रुक जाने से हुआ । नाम के अनुरूप 'पुनीत' कार्य । सनातन संस्कृति के प्रबल समर्थक पुनीत राजकुमार से जुड़ा एक प्रसंग बड़ा चर्चित हुआ था। कहते हैं एक बार जब वे कन्नड़ के 'कौन बनेगा करोड़पति' के मुख्य सूत्रधार थे तो उनके पास सनातन पंथ से जुड़ा एक नकारात्मक प्रश्न आया था प्रतियोगी से पूछने के लिए, जिसे उन्होंने पूछने से मना कर दिया था और वे शो छोड़कर तुरंत बाहर चले गए। इन समृद्ध लोगों के असमय मृत्यु पर एक संकेत भी है 40 के बाद अपने को समेटना सीखिए। जो ईश्वर ने दिया, उस पर सकारात्मक रहें । स्वास्थ्य ही धन है इस मूलमंत्र को जीवन में उतार लीजिए । करियर-फरियर के पीछे ज्यादा उत्साही होना -सब माया है। शीघ्र ही धनतेरस आ रहा है, इस धनतेरस पर इस त्यौहार के विकृत हुए संकल्प को ठीक कर

समाजीकरण और हिंदी

आपने कुछ दिनों पूर्व खबर सुनी होगी जिसमें कर्नाटक के मैसूर से संबंध रखने वाला यह व्यक्ति अपनी माँ को आधुनिक श्रवण कुमार के रूप में भारत भ्रमण करा रहे है और उनके भ्रमण में, संवाद एवं संपर्क में हिंदी की भूमिका स्पष्ट है। माँ-बेटे हिंदी के प्रखर दूत लग रहे हैं। उनका संदेश उनलोगों के लिए है जो यह समझते है हिंदी भाषी ही हिंदी समझते है। यह दिल्ली वालों के लिए भी सबक है जिनका अंग्रेजी के बिना एक वाक्य भी पूरा नहीं होता। यह उनके लिए भी सबक है जो कहते है हिंदी केवल हमारी है हिंदी सबकी है। इन कन्नड़ भाषी माँ-बेटे ने हमें यह बताया है कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। भारत एक राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक इकाई है। अत: इसकी संस्थागत व सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी ही है। समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरकर ही व्यक्ति मातृभाषा के इस रूप को सीखता है। इस वीडियो से हम और आप आसानी से इसे समझ सकते है। भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप से एक़ राष्ट्र रहा है। भाषाई विविधता के बावजूद एक जनभाषा ने इसे सदैव जोड़ कर रखा है। इस अखिल भारतीय परिवार की सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी है। हिंदी इस दृष्टि से समेक

भारत यायावर जी को श्रद्धांजलि

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हिंदी के चर्चित लेखक, 'रेणु' रचनावली के समर्पित अध्येता भारत यायावर जी नहीं रहे। उनका निधन हिंदी रचना संसार के लिए बड़ी क्षति है। नए लेखकों से बड़ा स्नेह करते थे। उनकी अंतिम पोस्ट कल की, सच में जीवन क्षणभंगुर हैं । विनम्र श्रद्धांजलि💐🙏🏼

व्याख्यान-हिंदी साहित्य और सिनेमा का अंतरसंबंध

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दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 23 अक्तूबर को हिंदी साहित्य और उसका सिनेमाई रूपांतरण विषय पर मेरा वक्तव्य रहा। आधार वाक्य साहित्य और सिनेमा के इस परस्पर संबंध को हिंदी सिनेमा ने समय-समय पर यथार्थ रूप प्रदान किया है। जो हिंदी कभी भारतीय सिनेमा की प्राण तत्व मानी जाती थी उसका स्थान अब हिंग्लिश ने ले लिया है। जिसका असर सिनेमा और हिंदी भाषा पर भी पड़ा है। ऐसे में आवश्यकता है कि हिंदी सिनेमा को शिखर पर ले जाने वाले साहित्य को पुष्पवित-पल्लवित करने की। अनेक विद्वान वक्ताओं से यादगार भेंट हुई- श्री अजित राय,  श्री रविकांत, प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत आदि। महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर रमा मैम का कुशल संयोजन एवं सान्निध्य मिला। विजय कुमार मिश्र, महेंद्र प्रजापति, प्राध्यापक एवं महाविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों का आभार! एक सार्थक विषय पर सराहनीय आयोजन हेतु हार्दिक बधाई!   ©डॉ. साकेत सहाय  #साकेत_विचार