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Showing posts from February, 2023

महाशिवरात्रि विशेष

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 सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव समस्त जगत के आदि कारक माने जाते हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता  है। जगत के प्रारंभिक ग्रंथों में से एक 'वेद' में इनका नाम रुद्र है। वे व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । हमारे यहाँ शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है। भगवान शिव से जुड़ी एक कथा हैं-  'एक बार माँ काली क्रुद्ध अवस्था में थीं।  देव, दानव और मानव सभी उन्हें रोकने में असमर्थ थे। तब सभी ने माँ काली को रोकने हेतु भगवान शिव का सामूहिक स्मरण किया।  शिवजी ने भी यह अनुभव किया कि माता काली को रोकने का एकमात्र मार्ग है -प्रेम और वे माँ काली के मार्ग में लेट गए। माँ काली ने ध्यान नहीं दिया और उन्होंने उनकी छाती पर पैर रख दिया।  अभी तक महाशक्ति ने जहाँ-जहाँ कदम रखा था, वह जगह नष्ट हो गया था। पर यहां अपवाद हुआ । माँ काली ने जब देखा उनका पैर भगवान शिव की छाती पर हैं, वे पश्चाताप करने लगीं। इस कथा का सार यहीं हैं कि हर कठिन कार्य का सामना आत्म बल  के साथ किया जा सकता हैं। इसी संकल्प के साथ आप सभी को महाशिवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामना! भगवान म

स्वामी दयानंद सरस्वती

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आज 12 फरवरी है। स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती है। सरकार द्वारा इनकी २००वीं जयंती को ज्ञान ज्योति पर्व के रूप में इस वर्ष मनाया जा रहा है। स्वामी दयानंद सरस्वती सनातन सभ्यता के महान ग्रंथ ‘वेदों की ओर लौटो’ का आह्वान किया। आधुनिक भारत के महान् चिंतक, धर्मवेत्ता, समाज सुधारक, “आर्य समाज" के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को काठियावाड़ (गुजरात)  के टंकारा गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था। वे सन्यासी थे और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । आप 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सनातन पंथ के पुनरुद्धार आंदोलन के सबसे बड़े प्रणेता माने जाते हैं। ब्रिटिश सरकार द्वारा 1813 में चार्टर एक्ट लाए जाने के बाद ईसाई पादरियों ने पर्याप्त संख्या में भारत आना आरंभ कर दिया था। इन ईसाई धर्म प्रचारकों ने षडयंत्रपूर्वक सामाजिक कुरीतियों को हिंदू धर्म में सम्मिलित कर कठोर आघात पहुँचाए।  19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में कई सामाजिक व धार्मिक आंदोलन हुए। स्वामी दयानंद सरस्वती अपने गुरु मथुरा के स्वामी विरजानंद से वेदों का ज्ञान प्राप्त करके हिंदू धर्म सभ्यता और भाषा के प्रच

सफलता की कोई निश्चित आयु नहीं होती

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 -5 साल की उम्र में उनके पिताजी की मृत्यु हो गई।  -16 साल की उम्र में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। - 17 साल की उम्र तक चार जॉब छोड़ चुके थे।  -18 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। -18 से 22 साल तक उन्होंने ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन सफल नहीं हुए।  -इसके बाद उन्होंने आर्मी ज्वाइन की, लेकिन दुर्भाग्य ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा और रिजेक्ट कर दिए गए।  -इसके बाद उन्होंने ज्यूडिशियल स्कूल में प्रवेश करना चाहा, लेकिन वहां भी असफल हुए। -इसके बाद इन्श्योरेंस सेल्समैन के तौर पर कार्य किया, लेकिन वहां भी सफल नहीं हुए। - 25 साल की उम्र में उनकी पत्नी भी छोड़ कर चली गई और साथ में एकमात्र लड़की को भी ले गई। - इसके बाद उन्होंने एक छोटा-सा कॉफी शॉप खोला। - अपनी बिटिया को पाने के लिए उन्होंने काफी कोशिशें की, लेकिन सफल नहीं हुए। - 65 साल की उम्र में वे रिटायर हो गए। - रिटायरमेंट के पहले दिन सरकार ने उन्हें 105 डॉलर की राशि दी, क्योंकि उनका पूरा जीवन असफलताओं से भरा रहा, इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और न ही कभी निराश होकर जीवन को समाप्त करने के बारे में सोचा। -एक दिन वह अपना वसीयतनामा लिखने के लिए एक पे

सत्य का साथ

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     सत्य का साथ रावण के प्रहार से अपनी अंतिम सांसें गिन रहे गिद्धराज जटायु ने कहा- मुझे पता था कि मैं दशानन से नहीं जीत सकता पर तब भी मैं लड़ा, यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती। जब राक्षसराज रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो काल देवता यमराज आये।  गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकारते कहा -'खबरदार ! ऐ मृत्यु !! आगे बढ़ने की कोशिश मत कर! मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा, लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता जब तक कि इस आपदा की सुधि मैं अपने प्रभु श्रीराम को नहीं दे देता'।  मौत गिद्धराज जटायु को छू भी नहीं पा रही है। वह तब तक प्रतीक्षा करती रहीं, जब तक जटायु महाराज अपने कर्तव्य पालन से बंधे थे। काल  देवता भी इस कर्तव्यपराणता के समक्ष नतमस्तक थे, जटायु राज को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था। स्मरण रहें भीष्म पितामह को भी इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।  पर छह महीने तक वे बाणों की शय्या पर लेटे हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे।  उनकी आँखों में आँसू हैं, पश्चाताप के आंसू हैं।   पर ईश्वर तो सब जानते है।  विचित्र दृश्य ।  एक तरफ रामायण में जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या