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भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकता और हिंदी

जब भी मुझे किसी सेमिनार, संगोष्ठी या अन्य किसी कार्य से देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाने का अवसर प्राप्त होता है तो भाषा के विद्यार्थी होने के नाते मेरा पहला ध्यान लोगों द्वारा सामान्य या आपसी बातचीत में उनके द्वारा बोली जाने वाली लोक भाषाओं पर रहता हैं ।  जिसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके द्वारा प्रयुक्त अधिकांश शब्द सभी भारतीयों को आसानी से समझ आ जाते हैं।  यह तथ्य भारतीय लोक जन द्वारा बोली जाने वाली सभी भाषाओं यथा तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मलयालम, गुजराती, मराठी, कन्नड़, बांग्ला तथा हिंदी की सभी 22 बोलियों (उर्दू को मैं हिंदी एवं हिंदुस्तानी का मिश्रित रूप मानता हूँ, यदि फारसी लिपि न हो तो उर्दू हिंदी का ही  रूप हैं ) के भाषा-भाषियों पर समान रूप से लागू होता है। उर्दू भाषा का विकास तो मुगल साम्राज्य की स्थापना के साथ-साथ शुरू होता है और यही उर्दू दक्षिण में जाकर दक्खिनी का नाम लेती है और फिर उत्तर में आकर रेख्ता के नाम से प्रचलित हो जाती है।  भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उर्दू और हिंदी दोनों एक भाषा है। आधुनिक युग में अंग्रेजों ने शैक्षिक और राजनीतिक कारणों से उर्दू भाषा को हिंदी स

सोशल मीडिया का बढ़ता साम्राज्य और हम

आज महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय द्वारा गुजरात हिंदी अकादमी, अहमदाबाद तथा केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के सहयोग से सोशल मीडिया का बढ़ता 'साम्राज्य और हम' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अपने उद्बोधन में मैंने सोशल मीडिया के विविध पक्षों को उद्घाटित करने का प्रयास किया। अपने वक्तव्य में मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से विकसित हो रही एक नई सभ्यता एवं संस्कृति की ओर भी इशारा किया।   इस संगोष्ठी को मूल्यांकन सोशल मीडिया सूचनाओं का अपार स्रोत हैं । अतः सार यही है कि आप सभी इसकी सकारात्मकता का विवेकपूर्ण  इस्तेमाल करें। साथ ही इसकी उपयोगिता का सार्थक इस्तेमाल बेहद सजगता एवं सतर्कता के साथ करें ।  साथ ही आत्मनियंत्रण भी बेहद जरूरी है। आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है व्याख्यान https://youtu.be/kABDL-H-Hk0

चीन में हिंदी

हिमालय पार हिंदी का एक स्कूल अनिल आजाद पांडेय चाइना रेडियो (हिंदी सेवा) (हिंदुस्तान से साभार) पड़ोसी देश चीन में बच्चों का एक स्कूल ऐसा भी है, जहां हिंदी पढ़ाई जा रही है। यह स्कूल शंघाई से सटे चच्यांग प्रांत के खछ्याओ शहर में है। यह चीन में पहला और एकमात्र स्कूल है, जहां हिंदी का अध्यापन हो रहा है। साल  2010 में स्थापित इस स्कूल में 2013 से हिंदी पढ़ाने की शुरुआत हुई। स्कूल में हिंदी सीखने के साथ-साथ बच्चों को भारत की संस्कृति और अन्य जानकारियों से भी अवगत करवाया जाता है। इसमें बच्चों को हिंदी के अक्षर ज्ञान के अलावा हिंदी लेखन में भी निपुण बनाया जा रहा है। यह स्कूल एक उदाहरण है कि चीन में पिछले 40 सालों में कितना बदलाव आया है। खुले द्वार की नीति लागू होने से पहले यह देश पूरी दुनिया के लिए एक पहेली था, बाहरी जगत चीन को संदेह भरी निगाहों से देखता था। न कोई चीनी कंपनी अन्य देशों में निवेश करती थी और न ही विदेशी कंपनियों को चीन में प्रवेश की इजाजत थी। इसी तरह, चीन में सिर्फ और सिर्फ चीनी (मैंडरिन) माध्यम के ही स्कूल थे। बस गिने-चुने विश्वविद्यालयों में हिंदी सहित कुछ विदेशी भाषाओं के व