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Showing posts from 2020

ज़िंदगी की नाव

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 अमृत विचार में संकलित विचार ‘ज़िंदगी की नाव’

संविधान दिवस

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 #संविधान_दिवस आइए ! संविधान को सशक्त करने में अपना योगदान दें।  संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में समिति को संबोधित करते हुए कहा था  "यदि लोग, जो चुनकर आएंगे योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वह दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता। आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है। हमारे में सांप्रदायिक, जातिगत, भाषागत और प्रांतीय अंतर है। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले और दूरदर्शी लोगों की जरूरत है जो छोटे छोटे समूह तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें।" इस संबोधन से स्पष्ट है कि देश को एक सशक्त, पारदर्शी नेतृत्व की जरूरत प्रारंभ से ही रही है। ऐसा नेतृत्व जो देश के व्यापक हितों को समझे।  न कि छोटे-छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान करें   आधुनिक भारत के लिए महत्वपूर्ण तिथि 26 नवंबर, 1949 को  संविधान सभा के ड्राफ्टिंग समिति के चेयमैन डॉ ॰ बी आर आंबेडकर संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय संविधान की मूल प्र

देश क संविधान और हम

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अमृत विचार के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित आलेख ‘देश का संविधान और हम ‘  http://epaper.amritvichar.com/clip/5815

उदारीकरण और आम से अदासीनत

#किसानी_हक़ के लिए आंदोलन होने चाहिए। मैं इस बात का समर्थन करता हूँ। पर यह आंदोलन राजनीति प्रेरित अधिक और स्थितिपरक कम प्रतीत होता है। पर इस देश की भलाई इसी में है कि इस देश में  इस बात के लिए भी आंदोलन हो कि उदारीकरण की नीति समाप्त हो। क्योंकि वर्तमान क़ानून उसी का परिणाम है। हर चीज बाजार के हवाले। सबसे अहम शिक्षा और स्वास्थ्य भी।  चाहे कांग्रेसी हो या वामपंथी शह वाली सत्ता हो अथवा बाद में राष्ट्रवादी सत्ता हो सब उदारीकरण की आड़ में कारपोरेट को बढ़ावा दे रहे है। बीते तीस सालों में सबने हर पार्टी ने, नौकरशाही ने सत्ता के साथ मिलकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोटी को सामान्य जन से दूर किया है। गुणवत्ता के नाम पर ग्लैमर बरसाए गए। शिक्षण संस्थान शिक्षा से अधिक वैचारिक प्रयोगशाला के नाम पर हित साध रहे है। निजी अस्पताल, स्कूल तो लूटघर बन गए है। अगर देश को आगे बढ़ना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य का राष्ट्रीयकरण होना ही चाहिए। तभी रामराज्य आएगा। परंतु इस हेतु सरकारों को सत्ता, नौकरशाही और कारोबारियों के कुतंत्र को समाप्त करना होगा। तभी खेती का भी भला होगा। सादर डॉ साकेत सहाय #उदारीकरण_की_नीति_समाप्त_हो

नई शिक्षा नीति और भारतीय भाषा

 मातृभाष में उच्च शिक्षा ? मोदी जी का चुनावी जुमला या हक़ीक़त?पर सबसे जरुरी यह कि अखिल भारतीय स्तर पर मातृभाषा की परिभाषा तय हो। अन्यथा भाषाई मूढ़ता और अंग्रेजियत से प्रेम के कारण मातृभाषा फिर से संविधान के अनुच्छेद 351 के संदेश का अपमान साबित होगा? सत्ता की नीति भारत को भाषिक असमानता की ओर पुन: धकेलगी। अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी ही शिक्षा का माध्यम बन सकती है। पर इसके लिए पुस्तक लेखन, अनुवाद और शोध पार ज़ोर देना होगा।  https://www.facebook.com/1619138805/posts/10221664707959856/?d=n

#जय_हिंद_जय_हिंदी

#जय_हिंद_जय_हिंदी  बेहद सधे हुए तर्क एवं खुले विमर्श के साथ भारत के संदर्भ में हिंदी की प्रासंगिकता पर अंग्रेज़ी में सधा हुआ वीडियो

नमन मंगलेश डबराल जी

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 साहित्य साधक #मंगलेश_डबराल जी की स्मृति को सादर नमन!

डा. साकेत सहाय

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  https://issuu.com/themessagesjmc/docs/the_message_221/1?ff&experiment=no-fs-header https://www.facebook.com/1619138805/posts/10221673524940275/?d=n

पुस्तक विमर्श -अमेठी संग्राम

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 नई पुस्तक 'अमेठी संग्राम' के लिए ‘वरिष्ठ पत्रकार’ अनंत विजय जी को हार्दिक बधाई!  पुस्तक के ज़रिए यह जानना रोचक होगा कि कैसे एक धारावाहिक अभिनेत्री से चुनावी नेत्री बनी स्मृति ईरानी ने लोकतंत्र में ख़ानदानी सीट के रूप में ख्यात हो चुकी अमेठी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गाँधी को पराजित किया। हालांकि दोनो ग्लैमर के अनुगामी है एक के पास ख़ानदानी ग्लैमर है तो दूसरे के पास टीवी सीरियल अभिनेत्री से अर्जित ग्लैमर और ऊपर से शाब्दिक चतुराई के अन्दाज़ से भरे भाषण का विशेष गुण है।  पर यह चुनाव इस रूप में जरूर ऐतिहासिक रहा कि अमेठी की जनता ने इस ग्लैमर पर ज़्यादा भरोसा किया।  अब यह देखना तो दिलचस्प होगा कि यह ग्लैमर जनता के प्रति कितना ईमानदार रहेगा?  बहुत कुछ डोमेन में है। पर पुस्तक के लेखक Anant Vijay जी इन बिंदुओं पर पत्रकार के नाते गहरी समझ रखते हैं तो पुस्तक दिलचस्प प्रतीत होती है। पुस्तक के लिए उन्हें पुन: बधाई!

समस्या_छोटे_ कारोबारियों_की

 बात तो सही है। यह समस्या रेहड़ी-पटरी वालों, परचून दुकानदारों , ड्राईवरों तथा छोटे कामगारों की भी हैं। जरुरत है उदारीकरण के उचित व्याख्या की और इसे लागू करने की। साथ ही सबसे जरुरी है सामाजिक मूल्यों की। क्योंकि भ्रष्ट व्यवस्था के लिए इस देश के नागरिकों की लालची सोच ज़्यादा ज़िम्मेदार है क्योंकि नेता, निजी कम्पनियाँ, पत्रकार और प्रशासक इसी का दोहन करते हैं। https://www.facebook.com/1619138805/posts/10221685141510682/?d=n

#हिंदी_से_प्रेम

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 #Fightforinformationinindianlanguage #राष्ट्रभाषा_पहले #जय_हिंद_जय_हिंदी आज सुबह में मुझे दूध का एक पैकेट फटा मिला, तो मैंने कंपनी को इस बात की शिकायत हिंदी में ई-मेल  द्वारा की। कंपनी ने इसका उत्तर अंग्रेज़ी में दिया। यह बेंगलेरू में स्थित कंपनी है। फिर मैंने लिखा। आप सभी को जानकर प्रसन्नता होगी कि कम्पनी ने दुबारा उत्तर हिंदी में दिया। निहितार्थ यही है आपको अपनी उपयोगिता स्थापित करनी होगी। फोटो संलग्न है। जैसा कि आप सभी जानते है कि हिंदी मेरी वृत्ति भी है और प्रवृति भी। परंतु हिंदी पहले मेरी प्रवृति बनी बाद में वृत्ति। यहीं कारण है कि मैं इससे दिल से जुड़ा हूँ।  वास्तव में भारत की यह विडम्बनापूर्ण स्थिति है कि हमारे लिए अपनी भाषाएँ गौण है। हमारे लिए अपनी भाषाएँ महत्व की दृष्टि से सबसे अंतिम पायदान पर खड़ी रहती हैं। जबकि भाषाएँ समाज, राष्ट्र की जीवंतता के लिए परमावश्यक है। पर हम तो भारत के संविधान द्वारा प्रतिष्ठित भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा हिंदी एवं अपनी प्रादेशिक भाषाओं के प्रयोग में हीनता बोध का अनुभव करते हैं। अन्यथा क्या कारण है कि सब कुछ होते हुए भी उदारीकरण के युग में कथित

एक चमकते सितारे का अस्त हो जाना ..

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एक चमकते सितारे का अस्त होना ….     क्या रंगीन दुनिया अवसाद की ओर ले जाती है और मौत की ओर धकेलती है। आज सुशांत सिंह राजपूत का जाना बहुत कुछ कहता है। कुछ दिनों पूर्व रंगमंच कलाकार प्रेक्षा मेहता और उससे कुछ दिनों पूर्व पत्रकार रिजवाना तबस्सुम द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबरें आईं थीं। हाल में घटित ये दुर्घटनाएं क्या संकेत देती हैं? क्या रंगीन दुनिया इंसानों में केवल सपने देखने का जज़्बा भर देती है , उससे अधिक कुछ नहीं।   अपनी फिल्मों में उत्साही , साहसी , हिम्मती , खुशमिजाज और महत्वाकांक्षी भूमिका निभाने वाले सुशांत सिंह राजपूत द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबर पर सहसा विश्वास नहीं होता।   अपनी अभिनीत फिल्म ‘छिछोरे’ में अपने बेटे को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करके आत्महत्या से रोकने वाले सुशांत खुद इस मोड़ पर आकर स्वयं को अपनी अंतिम यात्रा पर ले जाएंगे, वो भी मात्र 34 वर्ष की आयु में इस तरीके से भला किसे विश्वास होगा।   नियति का दुष्चक्र कब, किसे, कहाँ ले जाएगा यह किसे पता होता है।   कभी परदे पर महेंद्र सिंह धोनी के संघर्षपूर्ण सफर को जीवंत करने वाले अपनी जीवन यात्रा में खुद कमजोर प

इरफान होने का मतलब ..

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इरफान होने का मतलब “सिर्फ इंसान ही गलत नहीं होते , वक्त भी गलत हो सकता है।”   29 अप्रैल , 2020 का दिन भारतीय कला जगत को एक ऐसा जख्म देकर गया जिसकी भरपाई करना मुश्किल हैं।   जिस बॉलीवुड में बिना किसी पहचान एवं पहुंच के अपने को स्थापित करना बेहद कठिन होता है वहां वे अपने सहज एवं दमदार अभिनय के बल पर एक चमकते सितारे के रूप में सामने आए। उनके असामयिक निधन से हर कोई दुखी है। महानायक अमिताभ बच्चन ‘ इरफान की मृत्यु को फिल्म जगत के लिए किसी आपदा की भांति मानते है। वैसे तो इस दुनिया में मृत्यु ही अटल सत्य हैं।   जो आया है उसे जाना ही होगा।   संत कबीरदास का दोहा हैं –                           जो उग्या सो अन्तबै , फूल्या सो कुमलाहीं।                     जो चिनिया सो ढही पड़े , जो आया सो जाहीं। जीवन के इस सफर में ईश्वर बहुत कम लोगों को ऐसा नसीब देते हैं जो अपने कार्यों से एक लंबी एवं यादगार रेखा खींच जाते है।   फिल्म जगत में बहुत कम समय में ही अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाले इरफान खान ऐसे ही हस्ताक्षर है।   इरफान का अर्थ होता हैं ज्ञान, सीखना ; इरफान ने अपने कृतित्व से इसे सिद्ध क

सड़कें खाली हैं .. ..

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सड़कें खाली हैं ………………… सड़कें खाली हैं .. सूनी हैं … महानगर और नगर की शहर और कस्बों की गाँवों के पगडंडियों की । पर बत्तियाँ जल रही हैं कीट , पतंगें , पशु-पक्षी सब दिख रहे हैं नहीं दिख रहा तो बस आदमी जो मानव से दानव बनने चला था विज्ञान को विकृत-ज्ञान बनाने पर तुला था हथियार को ही सब कुछ मान बैठा था परम-पिता को ही चित्त करने चला था था तो वह परमात्मा की अपूर्व , अप्रतिम कृति पर वहीं सबसे बड़ा विनाशक निकला आज सब कुछ है पर एक डर है भले आकाश नीला है धरती खामोश है नदियां साफ है पर वे कुछ बोलना चाहती हैं क्या कोई इन्हें सुनना भी चाहता है । कोरोना एक संकेत है हे मानव ! सुधर जाओ अपनी इच्छाओं को अनंत बनाओ पर प्रकृति के अनुरूप मानव की प्रकृति तो विध्वंसक की नहीं होती अत: प्रकृति की सुनो , आओ फिर से धरती को स्वर्ग बनाओ । © डॉ साकेत सहाय www.vishwakeanganmehindi.blogspot.com