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Showing posts from March, 2022

आखिर अंतर रह ही गया....

आखिर अंतर रह ही गया .....  बचपन में जब हम सभी रेलगाड़ी या बस से यात्रा करते थे, तो माँ घर से खाना बनाकर देती थी, पर रेलगाड़ी में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता तो बड़ा मन करता हम भी कुछ खरीद कर खाए l तो बाबुजी समझाया करते यह हमारे बस का नहीं, यह सब स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं, बाहर का खाना, स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता आदि-आदि। पर मन में आता, अमीर लोग जिस प्रकार से पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीं। बड़े हुए तो देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहे हैं, तो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैं और यह "स्वस्थ रहने के लिए" आवश्यक है। आखिर में अंतर रह ही गया ....   बचपन में जब हम सब सूती कपड़ा पहनते थे, तब कुछ लोग टेरीलोन का कपड़ा पहनते थे l बड़ा मन करता था पर बाबुजी कहते हम इतना खर्च नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरीलोन पहने लगे तब वे लोग सूती के कपड़े पहनने लगे l सूती कपड़े समय के साथ महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च नहीं कर सकते l  आखिर अंतर रह ही गया....  बचपन में जब खेलते-खेलते हमारी पतलून घुटनों के पास से फट जाती, तो माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस

विश्व कविता दिवस पर विशेष

मैं रचनाशील होने का निरंतर प्रयास करता रहता हूँ । इसी भाव के साथ दो वर्ष पूर्व विश्व कविता दिवस के ही अवसर पर जीवन के रंगमंच पर सक्रिय कवियों को समर्पित एक कविता लिखी थी, वास्तव में कविता के बहाने रचनाकार अपनी मानवीय भावनाओं को विस्तार देता है। कविता आप सभी के समक्ष है। इस पर आप सभी अपना विचार देंगे तो अच्छा लगेगा...   कविता साहित्य की आत्मा है कविता  ©डॉ साकेत सहाय   साहित्य की आत्मा है कविता  मन और आत्मा का मिलन है कविता  जीवन का भाव-बोध है कविता  कविता चेतना है  कविता जीवन है  कविता पशुता में मानवता का रंग है  समाज की संवेदना है कविता  दिल की अरमान है कविता  जीवन के पंख की उड़ान है कविता  रिश्तों की उड़ान है कविता  माँ के लिए बच्चों की उड़ान है कविता  पिता के लिए परिवार की समृद्धि है कविता  भाई के लिए बहन की खुशी है कविता  बहन के लिए भाई की समृद्धि है कविता  पति के लिए पत्नी का प्यार  पत्नी के लिए पति की खुशी   पत्थर से पत्थर रगड़कर हुई  आग के आविष्कार का नाम है कविता कृषक के पसीने से सिंचित फसल का नाम है कविता चिकित्सक के शोध का भाव बोध है कविता  देश के लिए उसके निवासियों की पहचा

विक्रमादित्य हेमू की समाधि का अतिक्रमण

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आपको इतिहास की किताबों ने ये तो बताया होगा कि हुमायूँ के बाद शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ, इन्हीं किताबों में आपने ये भी पढ़ा होगा कि हुमायूं ने किसी मल्लाह या भिस्ती को एक दिन के लिये राज सौंपा था जिसने चमड़े के सिक्के चलाये थे, उन्हीं किताबों में आपने शायद ये भी पढ़ा हो कि पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू राजा थे पर इतिहास की किसी किताब ने ढ़ंग से आपको ये नहीं बताया होगा कि शेरशाह सूरी और अकबर के बीच दिल्ली की गद्दी पर पूरे वैदिक रीति से राज्याभिषेक करवाते हुए एक हिन्दू सम्राट भी राज्यासीन हुए थे जिन्होंने 350 साल के इस्लामी शासन को उखाड़ फेंका था, इन किताबों ने आपको नहीं बताया होगा कि दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद मध्यकालीन भारत के इस अंतिम हिन्दू सम्राट ने "विक्रमादित्य" की उपाधि धारण की थी, अपने नाम के सिक्के चलवाये थे और गो-हत्यारे के लिये मृत्युदंड की घोषणा की थी, इन्होंनें आपको ये भी नहीं बताया होगा कि इस पराक्रमी शासक ने अपने जीवन में 24 युद्ध का नेतृत्व करते हुए 22 में विजय पाई थी। जाहिर है उस सम्राट के बारे में न तो हमें इतिहास क

अरबी व्याकरण के निर्माण में संस्कृत व्याकरण परंपरा का योगदान

 "अरबी व्याकरण के निर्माण में संस्कृत व्याकरण परम्परा का योगदान" -  आचार्य  बलराम शुक्ल   फ़ारसी विभाग, दि॰वि॰वि॰ तथा इ॰गा॰रा॰क॰केन्द्र द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में आज १५.०३.२०२२ को एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा का अवसर मिला, जिसका सार यह है कि अरबी भाषा के व्याकरण संस्कृत वैयाकरणों के मॉडल पर तैयार किये गये थे। प्रायः यह समझा जाता है कि दर्शन तथा चिकित्साशास्त्र इत्यादि विद्यास्थानों की तरह अरबों ने अपने व्याकरण के प्रतिदर्श तथा तकनीकें भी यूनानी अथवा लातीनी मूल ग्रन्थों अथवा उनके अनुवादों से प्राप्त कीं। परन्तु वास्तविकता इससे भिन्न ही है। प्रसिद्ध ईरानी भारतविद् प्रो॰ फ़त्हुल्लाह मुज्तबाई ने अपनी पुस्तक “नह्वे हिन्दी व नह्वे अरबी: हमानन्दी–हा दर ता,रीफ़ात, इस्तिलाहात व तर्हे क़वायद” (भारतीय तथा अरबी व्याकरण: पारिभाषिक, शब्दावलीगत तथा तकनीकी समानताएँ ) में पाश्चात्त्य विद्वानों की इस धारणा का बहुत सारे शोधपूर्ण तर्कों के द्वारा खण्डन किया है। यह पुस्तक भारतीय व्याकरण शास्त्र के विश्व विजय के एक महत्त्वपूर्ण सोपान का डिण्डिमघोष करती है। मुस्लिम विद्वानों के

साहित्य अकादेमी, हिंदी और शशि थरुर

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हम भारतीय निश्चय ही आत्महीनता के दौर से गुजर रहे हैं । आप सभी को जरूर याद होगा लोक सभा में 'राष्ट्रभाषा' हिंदी को लेकर माननीय सांसद शशि थरुर जी द्वारा की गयी टिप्पणी । क्या भारत सरकार से पोषित 'साहित्य अकादेमी' को कोई और नहीं मिला इस हिंदी द्रोही के अलावे अपने वार्षिक आयोजन में अतिथि बनाने को। वास्तव में हम अपनी भाषाओं को लेकर ढकोसलों से ऊपर उठ ही नहीं पाते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपनी भाषाओं के प्रति ना संविधान सम्मत हैं, न राष्ट्र सम्मत और ना लोक सम्मत। भगवान ही मालिक है भारतीय भाषाओं का.... क्योंकि जो व्यक्ति अपनी राष्ट्र भाषाओं का सम्मान नहीं कर सकता, उसे क्या हक है साहित्य और संस्कृति पर बोलने का आलेख संलग्न है टिप्पणी के ऊपर। 'स्वाभिमान, सम्मान की भाषा है हिंदी' धन्यवाद अमृत विचार दिनांक 11.02.2022  #साकेत_विचार   #साहित्य_अकादेमी

मान्यवर कांशीराम

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आज प्रख्यात भारतीय राजनीतिज्ञ एवं भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग के अधिकारों एवं कर्तव्यों के लिए आवाज बुलंद करने वाले मान्यवर कांशीराम (15 मार्च, 1934 – 09 अक्टूबर 2006) की जयंती हैं । कांशीराम जी सत्ता में वंचितों की भागीदारी के सबसे बड़े समर्थक थे। पर आधुनिक रुप में नहीं जहां दलितों के आवाज के नाम पर समाज में कपोल-कल्पित अवधारणाएं स्थापित की जा रही है । कथित मनुवादी भय दिखाकर सनातन समाज को बांटने का कार्य किया जा रहा है। कांशीराम जी ने संतुलित धारा के साथ कार्य किया। वे अविभाजित भारत के उस प्रांत में जन्में, जहां अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी निवास करती थीं। उन्होंने सरकारी नौकरियों में इस वर्ग को आवाज देने हेतु बामसेफ का गठन किया। आज दलित विमर्श के नाम पर सनातन परंपराओं को विभाजनकारी मानसिकता के तहत गाली देने का षड्यंत्र चल रहा है । जरूरत है इससे बचने की। क्योंकि सामाजिक सुधार का मतलब उत्थान होता है न कि किसी वर्ग को हर वक्त गाली देना। इससे विरोध और संघर्ष पनपता है। समाज सार्थक संघर्ष एवं समन्वय से मजबूत होता है। जय भीम, जय मीम से ज्यादा जरूरी है 'जय भारत' की । इसी

महादेव

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  आडंबरविहीन सनातन आस्था के प्रतीक  महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना। जय जय भोलेनाथ   *🍃🌸 - : रुद्राष्टकम : - 🌸🍃* नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम हे भगवन ईशान को मेरा प्रणाम ऐसे भगवान जो कि निर्वाण रूप हैं जो कि महान ॐ के दाता हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण में व्यापत हैं जो अपने आपको धारण किये हुए हैं जिनके सामने गुण अवगुण का कोई महत्व नहीं, जिनका कोई विकल्प नहीं, जो निष्पक्ष हैं जिनका आकर आकाश के सामान हैं जिसे मापा नहीं जा सकता उनकी मैं उपासना करता हूँ | *निराकारमोङ्करमूल* *तुरीयं* *गिराज्ञानगोतीतमीशं* *गिरीशम्* । *करालं महाकालकालं कृपालं* *गुणागारसंसारपारं* *नतोहम* जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पुरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ। *तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिर