मान्यवर कांशीराम




आज प्रख्यात भारतीय राजनीतिज्ञ एवं भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग के अधिकारों एवं कर्तव्यों के लिए आवाज बुलंद करने वाले मान्यवर कांशीराम (15 मार्च, 1934 – 09 अक्टूबर 2006) की जयंती हैं । कांशीराम जी सत्ता में वंचितों की भागीदारी के सबसे बड़े समर्थक थे। पर आधुनिक रुप में नहीं जहां दलितों के आवाज के नाम पर समाज में कपोल-कल्पित अवधारणाएं स्थापित की जा रही है । कथित मनुवादी भय दिखाकर सनातन समाज को बांटने का कार्य किया जा रहा है। कांशीराम जी ने संतुलित धारा के साथ कार्य किया। वे अविभाजित भारत के उस प्रांत में जन्में, जहां अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी निवास करती थीं। उन्होंने सरकारी नौकरियों में इस वर्ग को आवाज देने हेतु बामसेफ का गठन किया। आज दलित विमर्श के नाम पर सनातन परंपराओं को विभाजनकारी मानसिकता के तहत गाली देने का षड्यंत्र चल रहा है । जरूरत है इससे बचने की। क्योंकि सामाजिक सुधार का मतलब उत्थान होता है न कि किसी वर्ग को हर वक्त गाली देना। इससे विरोध और संघर्ष पनपता है। समाज सार्थक संघर्ष एवं समन्वय से मजबूत होता है। जय भीम, जय मीम से ज्यादा जरूरी है 'जय भारत' की । इसी संदर्भ में एक बात उल्लेखनीय है भारत के कई अनुसूचित जाति के शिक्षक जो विश्वविद्यालयों, संस्थानों में उच्च पदों पर नियुक्त हैं वे कैसे दलित हो सकते है? दुर्भाग्य यह है कि वे भी उसी प्रकार का वर्गवादी आचरण करते हैं जिस मानसिकता की वजह से कथित ब्राहमणवाद पनपा। अतः समाज की सशक्तता के लिए यह जरूरी है कि हम समरसता के लिए कार्य करें । वैसे दलित, वंचित कोई भी हो सकता है। आज कुछ बड़े नेता दलित नेता बनकर अपने हित साध रहे हैं । सबसे अधिक दुर्भाग्य की बात यह है कि शिक्षण संस्थानों में यह ज़हर सबसे अधिक व्याप्त है। अब ऐसे जहर से शिक्षण संस्थानों का कितना भला होगा? ऐसी सोच से बच्चों में किस प्रकार की सोच निर्मित होगी। कभी गौतम बुद्ध क्षत्रिय होकर भी दलित समर्थक हो जाते है। पर अंबेडकर जी का सुपुत्र ब्राह्मण महिला से उत्पन्न होकर भी दलित रहता है। यह कौन सी स्वार्थ नीति है? कभी बाबा साहेब की तस्वीर का विकृत उपयोग विद्यालयों में मानक गणवेश के कारण 'हिजाब' की मनाही होने पर स्वार्थी तत्वों द्वा रा किया जाता है पर बाद में इसी संविधान के आधार पर विद्यार्थियों को समान गणवेश के कारण जब उच्च न्यायालय 'हिजाब' पहनने की मनाही करता है तो बाबा साहब अंबेडकर सिरे से गायब हो जाते है। इस प्रकार की सुविधा की राजनीति उनकी नहीं थी। कांशीराम जी की जयंती पर इन बिंदुओं पर विचार करने की जरूरत है। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। #साकेत_विचार #कांशीराम

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