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Showing posts from July, 2023

उपन्यास स्म्राट प्रेमचंद जी को नमन

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उपन्यास  सम्राट, अपनी  लेखनी के माध्यम  से ग्रामीण पृष्ठभूमि एवं शहरी समाज की  वास्तविकता  को  चित्रित करने  वाले, समाज  को  अपनी लेखनी से जागृत करने वाले प्रेमचंद जी लिखते हैं " मैं एक मजदूर हूँ।  जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने  का कोई हक नहीं।"  वास्तव में लेखन के प्रति उनका यह समर्पण ही उन्हें भारतीय साहित्य में विशिष्टता प्रदान करता हैं । प्रेमचन्द जी ने हर प्रकार के साहित्य का सृजन किया, इसलिए वे साहित्य- शिल्पी कहे गए।  सर्जनात्मक साहित्य के साथ-साथ प्रेमचंद का वैचारिक साहित्य बेहद समृद्ध है। हिंदी पत्रकारिता में हंस के रूप में उनके उल्लेखनीय योगदान को भला कौन भूल सकता है। प्रेमचंद अपने संपूर्ण वैचारिकी में पाठकों को जगाते हैं । उन्हें आदर्श राष्ट्र राज्य की प्राप्ति हेतु संघर्ष करने हेतु उद्वेलित करते हैं । प्रेमचन्द का साहित्य यथार्थवादी रहा । वे हिंदी के यथार्थ से भी परिचित थे,इसीलिए उन्होंने हिंदी में जमकर लेखन किया। उनके भाषा विषयक निबंध और टिप्पणियाँ राष्ट्रभाषा हिंदी की विशिष्टता को  समग्रता से समझने में  सहायक हैं ।  मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके जन

हिंदी : राष्ट्रभाषा

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अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। पर यह भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। इस प्रकार से हिंदी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए। वैसे भी  फ़ारसी भाषा में हिंदी का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। अर्थात् हिंदी सदियों से इस देश की जनभाषा, लोकभाषा, तीर्थभाषा, संपर्क भाषा आदि उपनामों से अलंकृत होकर ब्रिटिश पराधीनता से मुक्ति की वाहक भाषा बनकर उभरी। फिर स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुईं।  इन सभी के बावजूद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हमने हिंदी की सेवा की। कुछ लेखकों/पत्रकारों को तो यह भी लगता है कि हिंदी का वजूद ही उनकी वजह से हैं । मगर वे यह भूल जाते हैं कि हिंदी या मातृभाषाओं की वजह से ही हम सभी का अस्तित्व हैं । हिंदी सदियों से भारत की अखंडता की बुनियाद को  सशक्त करने का कार्य कर रही हैं ।  ऐसे में यह स्वाभाविक है  कि हिंदी का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की नींव में हिंदी का योगदान है।  भाषाएँ, बोलियाँ हमारी माँ के समान है इनसे किसी का क्या बैर? भाषाएँ, बोलिय

कलाम साहब की पुण्यतिथि पर नमन🙏

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  आज मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध अबुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि है।  रामेश्वरम, तमिलनाडु में जन्मे कलाम साहब भारतीय मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं।  भारत के पूर्व राष्ट्रपति कलाम की जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं ।  चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का समग्र व्यक्तित्व भारतीय अध्यात्म को समर्पित रहा।  सभी के प्रिय कलाम जी का विज्ञान की दुनिया से चलकर दुनिया के सबसे बड़े एवं प्राचीन लोकतंत्र की भूमि के प्रथम नागरिक के पद पर आसीन होना, किसी भी आम भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर देता है। आपको शत-शत नमन!🙏🌺 #कलाम #राष्ट्रपति #साकेत_विचार

कारगिल विजय दिवस

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  कारगिल विजय दिवस (26 जुलाई ) -वीर शहीदों को शत्-शत् नमन! 💐🙏 आज देश 24वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है। आज का यह विशेष दिन भारतीय सेना के वीर सैनिकों की बहादुरी, शौर्य एवं पराक्रम को नमन करने का दिन है। कारगिल विजय दिवस के दिन पूरा भारत कारगिल युद्ध के नायकों की बहादुरी और वीरता को श्रद्धांजलि देता है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में देश के बहादुर सैनिकों ने नापाक पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध का कोड नाम ऑपरेशन विजय दिया गया था । कारगिल युद्ध 60 दिनों से अधिक चला।  26 जुलाई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान को पराजित कर कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की। 26 जुलाई के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से क़ब्ज़ाई गई चौकियों पर तिरंगा फहराया था।  कारगिल विजय दिवस के इस अवसर पर शहीद सैनिकों को नमन करते हुए वीर सपूतों को समर्पित है कुछ पंक्तियाँ -  समर्पित है यह प्राण भारतमाता के लिए,  यह देह बना है इसी माटी से  इस देह  से आती है वतन की सुगंध  वतन के काम आए यह सुगंध यह सपना है हर सैनिक का देश की सीमाएँ सुरक्षित रहें यह संकल्प है हर सैनिक का।  कारगिल

बिहार बिहान में साक्षात्कार

 डीडी बिहार (दूरदर्शन, बिहार)  के प्रशंसित एवं चर्चित कार्यक्रम ‘बिहार बिहान’ में मेरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित जो भाषा, संचार, साहित्य और संस्कृति को लेकर समर्पित रहा है से जुड़े विविध आयामों पर एक बार फिर लाइव अपनी बात रखने का अवसर कल यानी १३ जुलाई, २०२३ को मिला।   पूरा  साक्षात्कार इस यूट्यूब लिंक में  आप सभी के अवलोकनार्थ -    https://youtu.be/EIr-YpZCKtg

संदेश मिठाई

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  शब्दों की खोज" "संदेश"       बंगाली मिठाई  संदेश সন্দেশ [शोंदेश] का नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि इसे किसी अच्छी खबर या संदेश के साथ खाया या उपहार में दिया जाता था।  संदेश अपने पहले अवतार में अलग था।  यह डेयरी मुक्त था और नारियल और चीनी से बना था। "संदेश" नाम भारत के बंगाल में एक लोकप्रिय मिठाई है, जो विशेष रूप से बंगाली व्यंजनों के साथ जुड़ी  है।  "संदेश" शब्द की व्युत्पत्ति का पता संस्कृत से लगाया जा सकता है, जो एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है। संदेश : Monier Williams Sanskrit-English Dictionary (2nd Ed. 1899)     communication of intelligence,  message,  information,  errand,  direction,  command,  order to  a present, gift a partic.  kind of sweetmeat   संस्कृत में, "संदेश"  शब्द का अर्थ है "संदेश" या "संचार।"  मीठे व्यंजन को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि पारंपरिक रूप से इसका उपयोग विशेष अवसरों और त्योहारों पर संदेश या शुभकामनाएं देने के माध्यम के रूप में किया जाता था।  संदेश आमतौर पर ताज़ा पनीर (छेना) और चीनी से बनाय

चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (अंग्रेज़ी: Chandradhar Sharma 'Guleri, जन्म: 7 जुलाई, 1883; मृत्यु: 12 सितम्बर, 1922) हिन्दी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार थे। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने "द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स" शीर्षक से अंग्रेज़ी ग्रन्थ की रचना की। मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर नामक गाँव के वासी ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पंडित शिवराम शास्त्री राजसम्मान पाकर जयपुर (राजस्थान) में बस गए थे। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मीदेवी ने सन् 1883 में चन्द्रधर को जन्म दिया। घर में बालक को संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विद्याओं आत्मसात् किया। जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर भारत धर्म महामंडल के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया था। पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी का यहाँ तक कहना था कि वे पाँच वर्ष मे