उपन्यास स्म्राट प्रेमचंद जी को नमन




उपन्यास  सम्राट, अपनी  लेखनी के माध्यम  से ग्रामीण पृष्ठभूमि एवं शहरी समाज की  वास्तविकता  को  चित्रित करने  वाले, समाज  को  अपनी लेखनी से जागृत करने वाले प्रेमचंद जी लिखते हैं " मैं एक मजदूर हूँ।  जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने  का कोई हक नहीं।"  वास्तव में लेखन के प्रति उनका यह समर्पण ही उन्हें भारतीय साहित्य में विशिष्टता प्रदान करता हैं । प्रेमचन्द जी ने हर प्रकार के साहित्य का सृजन किया, इसलिए वे साहित्य- शिल्पी कहे गए।  सर्जनात्मक साहित्य के साथ-साथ प्रेमचंद का वैचारिक साहित्य बेहद समृद्ध है। हिंदी पत्रकारिता में हंस के रूप में उनके उल्लेखनीय योगदान को भला कौन भूल सकता है। प्रेमचंद अपने संपूर्ण वैचारिकी में पाठकों को जगाते हैं । उन्हें आदर्श राष्ट्र राज्य की प्राप्ति हेतु संघर्ष करने हेतु उद्वेलित करते हैं । प्रेमचन्द का साहित्य यथार्थवादी रहा । वे हिंदी के यथार्थ से भी परिचित थे,इसीलिए उन्होंने हिंदी में जमकर लेखन किया। उनके भाषा विषयक निबंध और टिप्पणियाँ राष्ट्रभाषा हिंदी की विशिष्टता को  समग्रता से समझने में  सहायक हैं । 

मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके जन्म स्थान लमही  जाने का अवसर मिला।  महान  साहित्य  शिल्पी  मुंशी प्रेमचंद जी को  मेरा शत -शत नमन🙏

जय हिंद! जय हिंदी!!

-साकेत सहाय

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