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Showing posts from September, 2022

हास्य व्यंग्य कलाकार राजु श्रीवास्तव

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  अपने अभिनय की हँसी से सबको हँसाने वाले 58 वर्षीय चर्चित हास्य कलाकार, अभिनेता राजू श्रीवास्तव का दिल्ली के अखिल भारतीय आर्यूविज्ञान संस्थान में आज निधन हो गया।  कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव पिछले करीब डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे।  बीते १० अगस्त को वे दिल का दौरा पड़ने के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे।  लोकप्रिय हास्य कलाकार और अभिनेता राजू श्रीवास्तव का सफर बेहद संघर्ष भरा था, कभी मुंबई में ऑटो चलाकर वे गुजारा करते थे। गजोधर भैया के नाम से प्रसिद्ध  कानपुर निवासी राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था। उनका जन्म 25 दिसंबर 1963 को हुआ था।  उन्होंने अपने अभिनय से सभी को खूब हंसाया। राजू श्रीवास्तव ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमायी थीं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजावदी पार्टी ने उन्हें कानपुर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए टिकट लौटा दिया था कि उन्हें पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है।  बाद में उन्होंने उसी साल मार्च 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।  राजू श्रीवास्तव, 1980 के दशक के अंत

हिंदी में शोध और अन्य विचारणीय पहलू

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हिंदी अपने ही बलबूते आम आदमी की ज़ुबान होने के बल पर आगे बढ़ रही है। मेरा यह व्यक्तिगत रूप से मानना है कि हिंदी का सबसे बड़ा अहित इस सोच ने किया है कि यह उत्तर भारत की भाषा है, जबकि इसे उत्तर-दक्षिण के खाँचे से इतर राष्ट्रभाषा के रूप में सशक्त करने की जिम्मेदारी व्यवस्था को लेनी थी। जिसे व्यवस्था ने अंग्रेज़ीयत के कारण नहीं सँभाली और अपने पाप को छुपाने की ख़ातिर हिंदी को भारतीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी बना डाला। अनेक कुतर्क गढ़े ग़ए। स्वभाषा के बिना हर कोई भाषाविद् और तकनीकीविद् होने लगा। पत्रकारिता और सिनेमा जगत ने भी हिंदी को इवेंट की भाषा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ा-बहुत विकास हुआ भी तो हिंदी की आंतरिक शक्ति के बल पर। दूसरी बात हिंदी में जुगाड़ू और चाटुकार लोगों का जमघट बना रहा। अकादमिक जगत में यह बात क़ायम रही कि हिंदी के विकास का ठेका हिंदी के अध्यापकों ने लिया है। वैसे ही जैसे राजभाषा की प्रगति की जिम्मेदारी केवल राजभाषा सेवियों की है पर तकनीक, प्रबंधन या अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग तो केवल अंग्रेज़ी के लिए ही बने हुए है। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों में अंग्रेज़ी के व्याप्त मो

आज के समय में विनोबा भावे की प्रासंगिकता

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  भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे की 127 वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन!  आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँह माँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे है। भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती जा रही है। अब हर पैसे वाला ज़मींदार है। इस होड़ के कारण भूदान आंदोलन के जनक आचार्य विनोबा भावे ज़्यादा याद आ रहे हैं।  आज के हिंदुस्तान में ज्ञानेश उपाध्याय की विशेष प्रस्तुति को पढ़ा। सच में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की विरासतें कमज़ोर पड़ रही है।  आलेख का एक छोटा-सा अंश हमारा शरीर स्वयं ही प्रेम और लगाव की अद्भुत मिसाल है। अंगों में परस्पर अनुपम प्रेम होता है। सब अंग एक दूजे की सेवा में लगे होते हैं ताकि शरीर सुखी रहे ।  सोते हुए में भी एक अंग को दूसरे की फ़िक्र होती है ।  शरीर पर कहीं भी मच्छर बैठ जाए तब तत्काल हाथ उठ जाता है काश! समाज भी शरीर-सा हो जाए, जिसमें सभी को सभी की फिक्र हो लेकिन ऐसा होता नहीं है इसलिए दुख दर्द की अवस्था कही न कही बची-बनी रहती है।  जब प्रेम

राही मासूम रज़ा और हिंदी

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यह सुखद संयोग है कि हिंदी एवं उर्दू के महान कवि,संवाद लेखक, उपन्यासकार एवं महाकाव्य ‘महाभारत’पर आधारित ऐतिहासिक टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ की पटकथा लिखकर अपनी लेखनी को अमर करने वाले डा. राही मासूम रजा की जयंती से देश के संपूर्ण सरकारी  कार्यालयों में हिंदी माह/पखवाड़ा-2022 की शुरूआत हो रही है।  हम सभी ने जगजीत सिंह की आवाज में अमर गीत ‘हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद‘ को जरूर सुना होगा।इस मधुर गीत को कलमबद्ध करने वाले डा. राही मासूम रजा ही थे।   इस प्रसिद्ध गीत का भाव बोध हमारी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से प्रेम पर आधारित है।  हम सभी अपनी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है।बिना इसके मानव का अस्तित्व नहीं है।  हिंदी केवल एक भाषा-मात्र नहीं है वरन्न यह सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों का क्रियोलाइजेशन है।  इससे सभी भारतीय प्रेम करते है।  यह राजनीति, संस्कृति, समाज,लोक की भाषा है।इसीलिए यह लोकभाषा, संस्कृति की भाषा, संपर्क की भाषा, राष्ट्रभाषा से होते हुए राजभाषा के पद पर आसीन हुई और अब संचार की भाषा से तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित होकर विश्व भाषा के रूप में उ