अपनी देवनागरी लिपि - केदारनाथ सिंह
अपनी देवनागरी लिपि ज्ञानपीठ , साहित्य अकादेमी व अन्य कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह जी के स्मृति दिवस पर नमन ! और भाषा जो मैं बोलना चाहता हूँ मेरी जिह्वा पर नहीं बल्कि दांतों के बीच की जगहों में सटी है। (फर्क नहीं पड़ता) ~केदारनाथ सिंह ••• यह जो सीधी-सी, सरल-सी अपनी लिपि है देवनागरी इतनी सरल है कि भूल गई है अपना सारा अतीत पर मेरा ख़याल है 'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले नहीं आया था दुनिया में 'च' पैदा हुआ होगा किसी शिशु के गाल पर माँ के चुम्बन से! 'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं कि फूट पड़े होंगे किसी पत्थर को फोड़कर 'न' एक स्थायी प्रतिरोध है हर अन्याय का 'म' एक पशु के रँभाने की आवाज़ जो किसी कंठ से छनकर बन गयी होगी 'माँ"! स' के संगीत में संभव है एक हल्की-सी सिसकी सुनाई पड़े तुम्हें। हो सकता है एक खड़ीपाई के नीचे किसी लिखते हुए हाथ की तकलीफ़ दबी हो कभी देखना ध्यान से किसी अक्षर में झाँककर वहाँ रोशनाई के तल में एक ज़रा-सी रोशनी तुम्हें हमेशा