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Showing posts from December, 2022

लीलावती

 गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी। शायद ही कोई जानता होगा कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ों देश जिस गणित की पुस्तक से गणित पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की सुपुत्री लीलावती है। आज गणितज्ञों को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।  आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था। दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित एवं ज्योतिष विद्या के बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष गणना से जान लिया था कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’ उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। उस समय जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था। एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब

चुनाव -२०२४

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 2024  का चुनाव! अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह गलत है। भारतीयता का अपमान है। मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह भी इस खेल में शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित  है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदुओं या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए । मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत  का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो । एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले ही यह सोच धीरे-धीरे विकसित हो पर जोरदार कोशिश तो हो।  आजादी के पहले अंग्रेजों ने इस देश को विभाजित सोच के आधार पर बाँटा। बाद में वामपंथी, समाजवादी,  दक्षिणपंथी पार्टियो

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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  खड़ी बोली हिंदी की सशक्तता के अहम् हस्ताक्षर तथा हिन्दी पत्रकारिता के आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी  (1864 - 21 दिसम्बर 1938) की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन  ! #द्विवेदी_युग #साकेत_विचार

वस्त्र

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 अभी-अभी गाँव की पगडंडियों पर बैंक के काम से घूमते हुए मन में विचार आए, सोचा आप सभी से साझा कर लूँ। अन्यथा बाद में समय के अभाव में यूँ ही धूल जाएँगे।  वस्त्र सुना था वस्त्र मनुज-मानवी के  होते है आभूषण  इससे पनपे संस्कार  और निर्मित हो एक संस्कृति  पर अब सुना है वस्त्र  धर्म भी है भला  बीच में  कैसे आ  गए धर्म  व  पंथ आए और बीच बाज़ार में  धर्म-परंपरा के नाम पर फेंक दें  बुर्का, हिजाब सब,  सब मिल उतार दें भेद सब, पर लज्जा और सम्मान रखें रखें मान संस्कार का  और न पाले  “पठान” में बिकिनी गर्ल बन जाने का  बाज़ार का सबब वस्त्र संस्कार संस्कृति सभ्यता के होते है  सूचक पर न होते है दबाव,  लालच, भोग,  कुपरंपरा के बोधक।  #साकेत_विचार

पेंशनर दिवस

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आज पेंशनर्स डे है।  17 दिसंबर, 1982 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने श्री डी एस नकारा के पेंशन मामले में एक ऐतिहासिक  निर्णय दिया था । इस फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह फैसला सुनाया था कि “पेंशन न तो कोई उपहार है और न ही इनाम।  बल्कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों का अधिकार है  जिसने लंबे समय तक देश की सेवा की।  सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि कर्मचारी एक सम्मानित जीवन जी सके।” इस फैसले के बाद पेंशन में वेतन की भांति संशोधन किये जाने लगे।  हालाँकि इसी कड़ी में सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों के पेंशन अपडेशन  का मामला  भारत सरकार के पास दीर्घ समय से लम्बित है। इस तारीख़ की उपयोगिता उन सभी लोगों के लिए न्यायपरक पेंशन व्यवस्था लागू करने के रूप में भी है।  परंतु, 01 अप्रैल,  2005 के बाद हुई नियुक्तियों के नौकरीपेशा लोगों के लिए तो सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की है। जिसकी स्थिति अस्पष्ट है और बाज़ार पर आधारित है। सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों का भी पेंशन लंबे समय से अपडेशन के अभाव में असम्मानजनक है।  साथ ही निजी क्षेत्रों में भी पेंशन की स्थिति दयनीय या न के बराबर है

धर्म-संस्कार

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सिकंदराबाद के निकट पिलखन गाँव की कहानी यह है। 1904 का सन् था, बरसात का मौसम और मदरसे की छुट्टी हो चुकी थी... लड़कियाँ मदरसे से निकल चुकी थी... अचानक ही आँधी आई और एक लड़की की आँखों में धूल भर गई, आँखें बंद और उसका पैर एक कुत्ते पर जा टिका... वह कुत्ता उसके पीछे भागने लगा... लड़की डर गई और दौड़ते हुए एक ब्राह्मण मुरारीलाल शर्मा के घर में घुस गई... जहाँ 52 गज का घाघरा पहने पंडिताइन बैठी थी... उसके घाघरे में जाकर लिपट गई, ‘‘दादी मुझे बचा लो..।’’ दादी की लाठी देख कुत्ता तो वहीं से भाग गया, लेकिन बाद में जहाँ भी दादी मिलती, तो यह बालिका उसको राम-राम बोलकर अभिवादन करने लगी, दादी से उसकी मित्रता हो गई और दादी उसे समय मिलते ही अपने पास बुलाने लगी, क्योंकि दादी को पंडित कृपाराम ने उर्दू में नूरे हकीकत लाकर दी थी, दादी उर्दू जानती थी, परंतु अब आँखें कमजोर हो गई थी, इसलिए उस लड़की से रोज-रोज वह उस ग्रंथ को पढ़वाने लगी और यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। लड़की देखते ही देखते पंडितों के घर में रखे सारे आर्ष साहित्य को पढ़-पढ़कर सुनाते हुए कब विद्वान बन गई पता ही नहीं, पता तो तब चला, जब एक दिन उसका

देशरत्न जयंती समारोह

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आज दिनांक: 03.12.2022 को पंजाब नैशनल बैंक के बिहार अंचल में अंचल प्रमुख श्री पूर्ण चंद्र बेहरा की अध्यक्षता में भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी एवं भारतीय संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 139वीं जयंती समारोह का आयोजन किया गया।  इस अवसर पर अपनी सादगी एवं सरलता से देश की माटी को सुशोभित करने वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद को अंचल प्रमुख एवं स्टाफ सदस्यों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।  समारोह में वक्ताओं ने राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए देश के प्रति उनके त्याग व समर्पण को स्मरण करते हुए उनकी मेधा शक्ति को विशेष रूप से रेखांकित किया। संविधान निर्माण तथा देश की स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए अंचल प्रमुख ने बताया कि पंजाब नैशनल बैंक को इस बात का गर्व है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति हमारे बैंक की शाखा एक्जीबिशन रोड, पटना के सम्मानित ग्राहक रहे।  सभा का संयोजन करते हुए मुख्य प्रबन्धक (राजभाषा) डॉ साकेत सहाय ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से उनके योगदान को स्मरण कर