वस्त्र

 अभी-अभी गाँव की पगडंडियों पर बैंक के काम से घूमते हुए मन में विचार आए, सोचा आप सभी से साझा कर लूँ। अन्यथा बाद में समय के अभाव में यूँ ही धूल जाएँगे। 





वस्त्र


सुना था

वस्त्र मनुज-मानवी के 

होते है आभूषण 

इससे पनपे संस्कार 

और निर्मित हो एक संस्कृति 


पर अब सुना है वस्त्र 

धर्म भी है

भला  बीच में  कैसे आ  गए

धर्म  व  पंथ


आए और बीच बाज़ार में 

धर्म-परंपरा के नाम पर फेंक दें 

बुर्का, हिजाब सब, 

सब मिल उतार दें भेद सब,


पर लज्जा और सम्मान रखें

रखें मान संस्कार का 

और न पाले

 “पठान” में बिकिनी गर्ल बन जाने का 

बाज़ार का सबब


वस्त्र संस्कार

संस्कृति

सभ्यता के होते है 

सूचक

पर न होते है दबाव, 

लालच, भोग, 

कुपरंपरा के बोधक। 


#साकेत_विचार

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