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Showing posts from May, 2022

हिंदी पत्रकारिता दिवस

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हिंदी पत्रकारिता दिवस आज ही के दिन आज से १९६ वर्ष पूर्व  ३० मई, १८२६ को ब्रिटिश भारत की राजधानी #कोलकाता यानी आज के भारत के भाषाई वर्गीकरण के हिसाब से #'ग' क्षेत्र से #राष्ट्रभाषा हिंदी के पहले समाचार पत्र  'उदन्त मार्तंड की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल ने की थी।   तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है।  ब्रिटिश पराधीनता काल से ही हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों  की आवाज बनकर उभरी है। हालांकि आज इसमें गिरावट आई है। । मैंने अपनी पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति  में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है। कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य,  संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय  करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार,  संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हिंदी ने एक नई भाषिक संस्कृति को जन्म दिया है। हालाँकि इसकी सकारात्मकता, नकारात्मकता पर विमर्श हो सकते है। पर यह सही है कि मीडिया ने मजबूत राष्ट्रीय संस्कृति के निर्माण में

वीर सावरकर - इतिहास का एक अछूत सितारा

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कालापानी जैसी कठोर सजा को अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लगातार 10 वर्ष तक भोगने वाले वीर सावरकर जी को शत-शत नमन! स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों में –  सावरकर माने तेज़,  सावरकर माने त्याग,  सावरकर माने तप. भले ही राजनीतिक निहितार्थ वीर सावरकर जी की छवि को नकारात्मक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया गया। पर यह अटल सत्य है कि उन्होंने देश की ख़ातिर अपने जीवन का प्रत्येक क्षण समर्पित किया। महान क्रांतिकारी वीर सावरकर जी अडिग राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। उनकी सबसे बड़ी पूँजी यह थी कि वे समाज की नकारात्मकताओं का सामना करने, सवाल करने और लड़ने की हिम्मत रखते थे। देश को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे पहले सामाजिक राजनीतिक व्यक्ति रहे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को भारतीय इतिहास में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया। यह उनका अमिट योगदान है। भारतरत्न सावरकर जी का जीवन भारतीयों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बना रहेगा। इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी से मैं वीर सावरकर जी की हिंदी उर्दू रचनाएँ उनके हस्ताक्षर में साझा कर रहा हूँ। जिसे स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय संग्रहालय,दादर,मुंबई द्वारा वीर सा

भारतीयता - एक विचार

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भारतीयता हमें जोड़ना सिखाती है, तोड़ना नहीं !  बौद्ध, जैन, सिख विचार धारा के प्रवर्तक मूल रूप से समाज सुधारक थे, कुछ लोग जान-बूझकर सनातन परंपरा को कमजोर करने के लिए इन परंपराओं को विभाजित करने का कार्य करते है।  आज भी सनातनी समाज के लोग अपने घरों के पूजा स्थलों में गौतम बुद्ध, महावीर, गुरु नानक महाराज  और  गुरु गोविंद सिंह महाराज आदि को श्रद्धा एवं सम्मानपूर्वक रखते है। ये हमारे लिए प्रात: वंदनीय है। बाकी कुछ दोयम दर्जे के लोग है जो उनके नाम पर अपनी दुकानदारी चला रहे है। इनसे डरने की जरूरत नहीं।  सनातन समाज अपने गुण धर्म के बल पर सदियों से अस्तित्व में है। कितने ही लुटेरे गोरी, गजनी, मंगोल, चंगेज, मोहम्मद बिन कासिम,  बाबर, औरंगजेब, अंग्रेज, जिन्ना आदि दुष्ट, नीच आए पर यह समाज अपने सत्य बल पर सदैव जीवंत रहा, आगे भी रहेगा, बस अपनी भारतीयता को बनाए रखें।  हम ब्रह्मा -विष्णु -महेश , राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, वाल्मीकि, अगस्त्य, रविदास, कबीर, रामानुज,  गुरुनानक, गुरू गोविन्द सिंह, विवेकानन्द, भगत सिंह, अशफ़ाक उल्ला, इब्राहीम गार्दी, कलाम, तिलक, अम्बेडकर, राजेन्द्र प्रसाद जैसे पुरखों की संता

*हिंदी के व्यंग्य लेखक स्व शरद जोशी जी का आज जन्म दिवस*

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 *हिंदी के व्यंग्य लेखक स्व शरद जोशी जी का आज जन्म दिवस*    "कविताएं जो आरंभ में कोमल लगती हैं, बाद में शस्त्र बन जाती हैं। मोटे उपन्यास खोपड़ी पर ईंट की तरह टूटते हैं और लंबी कहानियां बरछी की तरह। लोग अपने संकलनों को दीवार पर टंगे शस्त्र का आदर देते हैं। समीक्षा ब्रह्मास्त्र है। उसके आतंक के आगे कौन ठहर सका है ? साहित्य सेवा का शुद्ध अर्थ हाथ में तलवार लेकर चलना और दूसरों की गर्दनें उड़ाना है। परम लक्ष्य है मैदान में अकेले बचे रहना और मुर्दों पर हंसना। दूसरों को काटना, काटते रहना ही साहित्य में जीवन की सार्थकता है।  मारो, मारो !  अपना पराया जो भी हो, मारो ! गुट बनाकर दूसरे गुट को मारो ! विजय के बाद अपने गुट के सदस्यों को मारो ! सेमिनार एक दूसरे को घायल करने के सामुदायिक मोर्चे हैं। विचार-विमर्श का अर्थ है युद्ध का नक्शा बनाना। साहित्य में कोई खुद नहीं मरता। दूसरे के मारे मरता है। हर शव पर पैर रखकर किसी ने तस्वीर खिंचवाई है। उस तस्वीर खिंचवाने वाले को किसी और ने मारा है। कोई सुरक्षित नहीं। साहित्य में हर चीज़ शस्त्र है, हर स्थिति स्ट्रेटेजी। केवल मारना ही कर्म है। -- स्व शरद जोशी

प्रकृति के सुकुमार कवि-सुमित्रानंदन पंत जयंती और हिंदी

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आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की जयंती है। उनके कृतित्व को शत-शत नमन!  कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम  'अमिताभ' रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं।  हिंदी एवं भारतीय भाषा प्रेमियों को भी अपने भाषा चिंतकों, साहित्यकारों के आभा एवं कार्य को सम्मान देना होगा। उसका प्रसार करना होगा। यह आभा है - भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता की। वास्तव में सभी भारतीय भाषाएं आपस में घुली-मिली हुई है। क्योंकि संस्कृत भाषा सभी की मूल स्रोत है।  साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण  है - देश की भाषाई एवं सांस्कृतिक अभिन्नता।  जिसके कारण शब्द और भाव लगभग एक समान होते है। यही कारण है कि ब्रिटिश पराधीनता के समय इस महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व को देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिए महात्मा गांधी से लेकर सभी राष्ट्रनायकों ने हिंदी के प्रयोग व इसे अपनाने पर जोर दिया था। इस शाब्दिक एकरूपता रूपी आभा के प्रसार के लिए देवनागरी लिपि के प्रसार की महती आवश्यकता है। कभी आचार्य  विन

बुद्ध पूर्णिमा - वैशाख पूर्णिमा

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बुद्ध पूर्णिमा -वैशाख पूर्णिमा की समस्त सनातन, बौद्ध धर्मावलंबियों को मंगलकामना!  मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम को वर्तमान बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। इसे संयोग कहें या ईश्वर कृपा भगवान को ज्ञान की प्राप्ति भी मोक्ष की नगरी, भगवान विष्णु की प्रिय नगरी गयाजी में हुई।  ५६३ ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म वर्तमान नेपाल के लुंबिनी, शाक्य प्रदेश में हुआ था। यह भी संयोग है कि पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में वर्तमान उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ‘कुशनारा' में उनका  महापरिनिर्वाण हुआ था। आज भगवान बुद्ध की वाणी, मत वैश्विक स्तर पर सशक्तता के साथ स्थापित है।  भगवान बुद्ध ने ज्ञान, ध्यान, चिंतन, अहिंसा के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत किया।  मानव को अहिंसा, सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाने वाले महान समाज सुधारक, भगवान विष्णु के नवें अवतार को नमन करने के विशेष अवसर पर आप सभी को आत्मीय मंगलकामना!  ©डॉ. साकेत सहाय #बुद्ध #साकेत_विचार

मातृ दिवस

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माँ, पिता और गुरु  इस धरा पर भगवान के  भेजे हुए दूत हैं।  आज हम सभी जो कुछ भी है उसमें  इन तीनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।  आज मातृ दिवस माँ, पिता और गुरु  इस धरा पर भगवान के  भेजे हुए दूत हैं।  आज हम सभी जो कुछ भी है उसमें  इन तीनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।  आज मातृ दिवस पर माँ को नमन्। वैसे तो भारतीय संस्कृति में माँ, पिता और गुरु के लिए कोई विशेष दिन नहीं होता क्योंकि इस धरा पर हम सभी का अस्तित्व ही इन तीनों से है और हम भारतीय तो माँ-बाप दोनों को अभिन्न मानते है। हर दिन इन्हीं का है।  हमारे शास्त्रों में कहा गया है।  श्लोक- पद्मपुराण सृष्टिखंड (47/11) में कहा गया है- सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।  मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।  अर्थात् माता सर्वतीर्थमयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं अत: हम सभी को सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भ

न्यायालय की भाषा

 आज सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,  देश के विधि मंत्री द्वारा न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग पर जोर देने की बात पर मन में यह विचार आया कि क्या हम हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में परस्पर सद्भाव के बिना इस महत्वपूर्ण विमर्श को साकार कर सकते है?   इस हेतु यह ज़रूरी है …… देश में भाषिक समुन्नति हेतु भारतीय भाषाओं की परस्पर एकता को सुदृढ़  किया जाए। हमारी ‘फ़िज़ूल’ की भाषिक लड़ाई का अक्सर फ़ायदा अंग्रेज़ी उठातीं रही है। इस परस्पर वैमनस्य का सबसे बड़ा लाभ अंग्रेज़ी भाषा ने उठाया है। अंग्रेज़ी के बारे में दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि औपनिवेशिक दासता की मूल भाषा होने के  बावजूद  देश के नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, मीडिया में  इसके प्रति शून्य नकारात्मकता मौजूद है। जिससे यह भाषा बड़ी तेज़ी से हमारी अपनी भाषाओं की जगह हड़प  रही है। इस दिशा में सोचा जाना बेहद ज़रूरी है। #साकेत_विचार #अंग्रेज़ी_का_वर्चस्व

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और लोकतंत्र

लोकतंत्र की वास्तविक सार्थकता तभी सत्य सिद्ध होती है जब जनता और शासन व्यवस्था के बीच बेहतर संवाद कायम हो।  इस संवाद को बेहतर तरीके से निष्पादित करने का कार्य संचार माध्यम करते है।  लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने में संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका है। संचार माध्यमों ने भारत के संसदीय जीवन में निर्णायक भूमिका निभाई है।  विशेष रूप से 1990 के दशक के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लोकतंत्र को बहुत ही अधिक प्रभावित किया है।  इस माध्यम ने प्रेस के दोनों मुख्‍य पहलूओं यथा सूचना उद्योग के एक भाग के रूप में तथा दूसरा- जनमत तैयार करने के एक कारक के रूप में अत्यंत प्रभावी और विश्‍वसनीय तरीके से कार्य किया है।  हालांकि इस विश्वसनीयता पर विवाद हावी हो चला है, जिससे विवाद से मीडिया को सत्य के साथ संतुलन बनाते हुए आगे आना होगा।  इन्हीं सब बिंदुओं को रेखांकित करता मेरा आलेख “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और लोकतंत्र” को जगह मिली है प्रतिष्ठित पत्रिका “अपनी माटी” के मीडिया विशेषांक में… शोध आलेख : इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं लोकतंत्र / डॉ. साकेत सहाय | https://www.apnimaati.com/2022/03/blog-post_35.html

विश्व प्रेस दिवस

३ मई को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (World Press Freedom Day)  चौथे स्तम्भ के सभी कलमकारों को बधाई व शुभकामनाएं।  ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ का मुख्य विषय (Theme) ‘‘सूचना और मौलिक स्वतंत्रता जन जन तक पहुंचे-यह हमारा अधिकार है!’ (Access to Information and Fundamental Freedoms-This is Your Right!) है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1993 में  यूनेस्को में हुए महासम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को प्रतिवर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाह्य तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाताओं की यादों को सहेजना है। #साकेत_विचार

सांप्रदायिकता

 जब देश एक विशेष मत, पंथ, मजहब के नाम पर बँटा नहीं था, तब भी साम्प्रदायिकता पर गंभीर विमर्श होता था, पर कथित धार्मिक असहिष्णुता के नाम पर, अंध राष्ट्रवाद के नाम पर, तमाम क्षुद्रताओं ने पाकिस्तान को आख़िरकार जन्म दे ही दिया, पर इससे भारत को क्या मिला? धोखा और अविश्वास। आज भी जब-तब भाषा एवं संस्कृति को लेकर विवाद होते रहते है।  साम्प्रदायिकता पर दैनिक हिंदुस्तान द्वारा ०७ मई, २०२२ के अंक में राष्ट्रवादी विचारक एम एस गोलवलकर तथा प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद के विचार को प्रकाशित किया गया है।  जिसके कुछ अंश आप सभी के लिए… १.  हम इतने क्षुद्र नहीं हैं कि यह कहने लगें कि केवल पूजा का प्रकार बदल जाने से कोई व्यक्ति उस भूमि का पुत्र नहीं रहता। हमें ईश्वर को किसी नाम से पुकारने में आपत्ति नहीं है।हममें प्रत्येक पंथ और सभी धार्मिक विश्वासों के प्रति सम्मान का भाव  है, जो अन्य पंथों के प्रति असहिष्णु है वह कभी हिंदू नहीं हों सकता।  - एम एस गोलवलकर, राष्ट्रवादी विचारक एवं पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख।  २. साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है। उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्ज

रवीन्द्रनाथ ठाकुर, नोबेल पुरस्कार और मौलिकता

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 महान कवि और साहित्यकार और देश के राष्ट्रगान के रचयिता, नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर के जन्मदिवस पर शत शत नमन! उनके जन्म दिवस पर उनसे जुड़ा एक वृतांत “ मूल विचार हम अपनी भाषा में कर सकते हैं वह विदेशी भाषा में नहीं। विदेशी भाषा में हमारे विचार विदेशियों की झूठन के अतिरिक्त और कुछ नहीं”  १९१३ में जब  टैगोर को नोबल पुरस्कार मिला तब सरोजिनी नायडू (अंग्रेजी भाषा की ख्याति प्राप्त साहित्यकार) का नाम भी इस पुरस्कार के लिए नामित था। भारतीय साहित्य जगत के लोग ऐसा कहते हैं कि सरोजिनी नायडू किसी भी प्रकार से रबीन्द्रनाथ ठाकुर से कम नहीं थी, इक्कीस ही होंगी। फिर यह कैसे हुआ कि नोबेल पुरस्कार समिति ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को इस पुरस्कार के लिए चुना। यहीं प्रश्न चयन समिति से भी किया गया था। चयन समिति का उत्तर बहुत ही महत्वपूर्ण है। चयन समिति ने कहा कि सरोजिनी नायडू के साहित्य में नया कुछ भी नहीं है। वही सब कुछ है जो यूरोप और पश्चिम के साहित्य में आपको बहुतायत में मिल जायेगा। इसके विपरित हमें रबीन्द्रनाथ की कविताओं में एक ताजगी और नयापन मिलता है जो पश्चिमी साहित्य में कहीं दिखाई नहीं देता। 

हिंदी -भारत की भाव भाषा

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  हिंदी पर चल रहे ‘नाहक’ विवाद और इसकी सर्वप्रियता पर कुछ भाव उपजे, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ…. मुझे हिंदी से प्रेम है बचपन से है यह मुझसे घुली-मिली पेशावर से पोखरण तक  कोच्चि से चटगाँव तक किसी के लिए है यह राष्ट्रीय भाषा  किसी के लिए है यह राष्ट्रभाषा किसी के लिए है यह संपर्क भाषा किसी के लिए है यह जनभाषा  पर भाव एक ही है  सबके लिए है यह  प्रेम, लगाव और जुड़ाव की भाषा तभी बनी देश की राजभाषा है यह संस्कृत की पुत्री पर सींचित हुई सभी से कभी दक्षिण से  कभी उत्तर से कभी पूर्व से  कभी पश्चिम से है बड़ी सहज,  बड़ी सरल, हर कोई करें  इसका सम्मान। संस्कृत इसकी जननी है, है यह प्रेम और लगाव की भारत सूत्र। भारत माँ है  भाषाओं की थाल, पर हिंदी है हम सबकी चहेती हिंदी को जब मन से पढ़ा जाग्रत हुआ भारत-विवेक। हिंदी से स्वाधीनता,  एकता, संपर्क के भाव हो पूरे।  लिखते-बोलते कवि, लेखक, नेता, अभिनेता हिंदी में बड़े-बड़े संदेश भी अक्सर बोले-सुने जाते हिंदी में। गांधीगीरी से आज़ाद-भगत , कबीर से रवीन्द्र तुलसी से प्रेमचंद  नानक से शिवाजी तक लता से रफी  आशा से किशोर राजेंद्र से कलाम तक फुले से बाबा साहब त