रवीन्द्रनाथ ठाकुर, नोबेल पुरस्कार और मौलिकता


 महान कवि और साहित्यकार और देश के राष्ट्रगान के रचयिता, नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर के जन्मदिवस पर शत शत नमन! उनके जन्म दिवस पर उनसे जुड़ा एक वृतांत “ मूल विचार हम अपनी भाषा में कर सकते हैं वह विदेशी भाषा में नहीं। विदेशी भाषा में हमारे विचार विदेशियों की झूठन के अतिरिक्त और कुछ नहीं” 

१९१३ में जब  टैगोर को नोबल पुरस्कार मिला तब सरोजिनी नायडू (अंग्रेजी भाषा की ख्याति प्राप्त साहित्यकार) का नाम भी इस पुरस्कार के लिए नामित था। भारतीय साहित्य जगत के लोग ऐसा कहते हैं कि सरोजिनी नायडू किसी भी प्रकार से रबीन्द्रनाथ ठाकुर से कम नहीं थी, इक्कीस ही होंगी। फिर यह कैसे हुआ कि नोबेल पुरस्कार समिति ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को इस पुरस्कार के लिए चुना। यहीं प्रश्न चयन समिति से भी किया गया था। चयन समिति का उत्तर बहुत ही महत्वपूर्ण है। चयन समिति ने कहा कि सरोजिनी नायडू के साहित्य में नया कुछ भी नहीं है। वही सब कुछ है जो यूरोप और पश्चिम के साहित्य में आपको बहुतायत में मिल जायेगा। इसके विपरित हमें रबीन्द्रनाथ की कविताओं में एक ताजगी और नयापन मिलता है जो पश्चिमी साहित्य में कहीं दिखाई नहीं देता। 

इस वृतांत का निहितार्थ यहीं है कि विश्व को यदि हम कुछ दे सकते हैं तो वह अपनी मूल भाषा और उसके चिन्तन से ही दे सकते हैं।  रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जन्मदिवस पर  इसी वृतांत के साथ उन्हें शत शत नमन!  

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