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Showing posts from August, 2021

योगेश्वर कृष्ण : एक विराट व्यक्तित्व

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 योगेश्वर कृष्ण -  डॉ साकेत सहाय  भगवान श्रीकृष्ण के मानवीय रूप में उनका बहुआयामी व्यक्तित्व दिखाई पड़ता है। बाल सुलभ चंचलता, प्रेम-स्नेह त्याग से भरा व्यक्तित्व, भाईचारा, पिता-माता से समान प्रेम, भातृत्व, मित्रता,  समाजोपयोगी नेतृत्व, प्रेरक योद्धा, जीवनोपयोगी प्रेम सभी कुछ से भरा हुआ उनका भाव, विचार  और कर्म ।   इसी लिए वे योगेश्वर कहलाए।  उन्होंने शौर्य और धैर्य का प्रयोग लोक-कल्याण में किया।  वे  एक कुशल कूटनीतिज्ञ एवं रणनीतिकार थे।  उनका स्त्री प्रेम मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा। वे काम-वासना से परे स्त्री से सखा भाव से  प्रेम करते थे।  श्रीकृष्णृ में प्रेम व ज्ञान का अद्भुत समन्वय था। श्रीकृष्ण विश्व के पहले प्रबंधन गुरु माने जाते हैं । वे अपने हर रूप में दर्शनीय हैं, अनुकरणीय हैं, श्रद्धेय हैं ।  कर्मयोगी कृष्ण निष्काम कर्म की बात कहते हैं । मनुष्य का अधिकार मात्र उसके  कर्म के ऊपर है। पर वे यह भी कहते है कि मन से किया गया कार्य सफलता जरूर देता है ।  वे धैर्य  के साथ कर्मशीलता को प्रोत्साहित करते है ।  कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।  आज श्रीकृष्ण की जीवन गाथा से जो सीखने व

खेल की दुनिया के किंवदंती पुरूष- ध्यानचंद

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 खेल की दुनिया के किवदंती पुरुष-मेजर ध्यानचंद प्रयागराज (इलाहाबाद) में जन्मे भारतीय हाॅकी के अग्रदूत की जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय खेल दिवस का आयोजन किया जाता है।  जीते-जी किंवदंती बन चुके ध्यानचंद खेल भावना के धनी थे।  देश में ऐसे बहुत से लोग हुए हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में इतनी महारत हासिल की कि उनका नाम इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो गया। भारत में हॉकी के स्वर्णिम युग के साक्षी मेजर ध्यानचंद का नाम भी ऐसे ही लोगों में शुमार है। उन्होंने अपने खेल से भारत को ओलिंपिक खेलों की हॉकी स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता दिलाने के साथ ही परंपरागत एशियाई हॉकी का भी दबदबा कायम किया। कालजयी खिलाड़ी, ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।  इसी दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।  इस वर्ष यह आयोजन पैरालंपिक खेलों के बाद आयोजित किया जाएगा।  विदित हो कि सरकार ने उनकी महानता को सम्मान देते हुए खेल के क्षेत्र में सर्व

देश विभाजन का सबक

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 देश विभाजन का सबक  आज की तिथि को भारतीय इतिहास में 'कलंक दिवस' के रूप में भारत सरकार द्वारा मनाया जाना चाहिए क्योंकि आज ही के दिन भारतमाता के दो टुकड़े कर दिए गए । इस काले  दिवस को हमें इस बात हेतु भी याद करना चाहिए कि हमारी अंग्रेजों के प्रति  अंधभक्ति और सत्ता का लालच किस प्रकार से एक देश के सपनों को विभाजित कर सकती हैं ।  क्या शहीदों ने इसी विभाजन के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया था?  स्वतंत्रता के बाद इस देश को विभाजन की विभीषिका पर गहराई से मंथन करना जरूरी था।स्वाधीनता प्राप्ति के पूर्व यह दिवस आधी खुशी के साथ देशवासियों को जीवन भर का टीस दे गया । जब एक ही माटी के दो सपूत किसी और के एजेण्डे के तहत बांट दिए गए ।  इसका दोहराव न हो इस हेतु हम सभी को सचेत रहना होगा, क्योंकि पाकिस्तान एक दिन में नहीं बना था ।  सदियों से साथ रहे लोगों को नियोजित विषवमन के साथ बांटने का दुष्परिणाम अविभाजित भारत अपने विभाजन के बाद से ही भुगत रहा है। ब्रिटिशों और यहाँ के गद्दारों ने मिलकर देश बांट दिया, जिसका खामियाजा किस हद तक यह देश, समाज  भुगत रहा है, इसके तटस्थ मूल्यांकन की भी आवश्यकता है।  पा

स्वभाषा और आत्म बल

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आज सुबह ट्विटर पर जब एक ट्वीट पढा कि 'अंग्रेजी मोह से ग्रसित चैनल के पत्रकार महोदय जब अपना सवाल ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता से अंग्रेजी में पूछते है तो इस पर नीरज चोपड़ा कहते हैं, सर! हिंदी में प्रश्न पूछिए।  यह खबर बहुत बड़ी है।  क्योंकि यह देश के निवासियों के भाषाई आत्म बल को जगाता है। उनके भाषाई प्रेम को दर्शाता है।  आज नीरज चोपड़ा को कौन नहीं जानता है?   वे खेल क्षेत्र के लिए आशा की नयी किरण हैं ।  उनकी यह पहल बहुत बड़ा संदेश हैं।हालांकि आप सभी को यह बात अतिश्योक्ति से भरी लगेगी, पर मेरे  जैसे हिंदी प्रेमी के लिए इस घटना ने इसी बहाने जाने-अनजाने महात्मा गाँधी की याद दिला दी।  'जब आजादी के बाद बीबीसी पत्रकार उनसे अंग्रेजी में प्रश्न पूछता हैं तो वे कहते हैं  जाओ जाकर दुनिया को कह दो गाँधी को अंग्रेजी नहीं आती ।  गांधीजी जैसा जिगरा सबका नहीं । फिर भी नीरज ने दुनिया को बहुत बड़ा संदेश दिया है । भाषा केवल संवाद या रोजगार का जरिया मात्र नहीं बल्कि देश के आत्म बल का प्रतीक भी होता  है।  आज यदि देखें तो हर स्तर पर अंग्रेजी या हर बात में हिंदी के विकृत रूप 'हिंग्लिश' का प्रयोग य

विजयी भव: नीरज चोपड़ा - खेल की दुनिया का नया सितारा

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 नीरज का अर्थ होता है - कमल का फूल। कहते हैं 'जैसा नाम, वैसा काम'।  बहुधा यह चरितार्थ भी होता है । आज सुबेदार नीरज चोपड़ा ने अपने नाम के अनुरूप धैर्य एवं संयम के साथ ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को गौरवान्वित किया है। भारत का राष्ट्रीय पुष्प 'कमल' को भारत की पौराणिक गाथाओं में  विशेष स्थान प्राप्त है।   पुराणों में ब्रह्मा को विष्णु की नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न बताया गया है और लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है।  आज नीरज ने इस नाम को पूरी दुनिया में अपने कर्म बल के साथ स्थापित किया है । तोक्यो ओलम्पिक में भारत ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में महान धावक मिल्खा सिंह के सपने को भी पूरा किया।  उन्होंने अपने पदक को मिल्खा सिंह को समर्पित किया।  तोक्यो में लंबे समय के बाद इतिहास रचा गया । जो सुनहरे भविष्य का  सूचक बनेगा।  युवा एथलीट नीरज ने एक फौजी के रूप में देश को सम्मानित किया । नीरज चोपड़ा ने अपने पहले ही ओलंपिक में  स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास  रचा है। फाइनल में नीरज ने 87.58 मीटर का थ्रो किया।  ध्यान रहें कि भाला फेंक में पूर्व विश्व विजेता जर्मनी के