विजयी भव: नीरज चोपड़ा - खेल की दुनिया का नया सितारा
नीरज का अर्थ होता है - कमल का फूल। कहते हैं 'जैसा नाम, वैसा काम'। बहुधा यह चरितार्थ भी होता है । आज सुबेदार नीरज चोपड़ा ने अपने नाम के अनुरूप धैर्य एवं संयम के साथ ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को गौरवान्वित किया है। भारत का राष्ट्रीय पुष्प 'कमल' को भारत की पौराणिक गाथाओं में विशेष स्थान प्राप्त है। पुराणों में ब्रह्मा को विष्णु की नाभि से निकले हुए कमल से उत्पन्न बताया गया है और लक्ष्मी को पद्मा, कमला और कमलासना कहा गया है। आज नीरज ने इस नाम को पूरी दुनिया में अपने कर्म बल के साथ स्थापित किया है ।
तोक्यो ओलम्पिक में भारत ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में महान धावक मिल्खा सिंह के सपने को भी पूरा किया। उन्होंने अपने पदक को मिल्खा सिंह को समर्पित किया। तोक्यो में लंबे समय के बाद इतिहास रचा गया । जो सुनहरे भविष्य का सूचक बनेगा। युवा एथलीट नीरज ने एक फौजी के रूप में देश को सम्मानित किया । नीरज चोपड़ा ने अपने पहले ही ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा है। फाइनल में नीरज ने 87.58 मीटर का थ्रो किया। ध्यान रहें कि भाला फेंक में पूर्व विश्व विजेता जर्मनी के जोहानेस वेटर ने नीरज को ओलिंपिक से पहले चुनौती दी थी। वेटर ने कहा था कि नीरज अच्छे हैं, फिनलैंड में उनका भाला 86 मीटर की दूरी तय कर सका, लेकिन ओलिंपिक में वे मुझे पीछे नहीं छोड़ पाएंगे। पर नीरज ने सिर्फ उन्हें पीछे ही नहीं छोड़ा, बल्कि स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। जर्मन खिलाड़ी तो खेल के 3 चरणों के बाद भी सबसे नीचे से तीसरे स्थान पर रहने की वजह से खेल से बाहर हो गए।
नीरज ने पूरे देश को जश्न मनाने का मौका दे दिया है। जोहानेस वेटर ने ओलिंपिक से पहले कहा था कि नीरज को उन्हें हराना मुश्किल होगा, पर नीरज ने शब्द की जगह अपने प्रदर्शन से जवाब दे दिया। नीरज ने पहले थ्रो में 87.03 मीटर दूर भाला फेंका। वे इस थ्रो के बाद ही विश्वास से भरे दिख रहे थे। नीरज पहले थ्रो के बाद ही समझ गए थे कि इस थ्रो पर कोई न कोई पदक जरूर आएगा। हालांकि इसके बाद भी नीरज ने कोशिश नहीं छोड़ी और दूसरे थ्रो में और बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने दूसरे थ्रो में 87.58 मीटर दूर भाला फेंका। नीरज के थ्रो से ही इवेंट समाप्त हुआ। छठे राउंड में नीरज ने 84 मीटर दूर भाला फेंका।
यह इस प्रतियोगिता का अंतिम थ्रो रहा। इसी के साथ नीरज ने अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया। 2016 में भारतीय सेना से जुड़े नीरज ने आज एक सैनिक की तरह भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। नीरज एथलेटिक्स में ऐसा करने वाले पहले भारतीय हैं। नीरज ने ओलिंपिक खेलों में 13 साल बाद भारत को किसी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक दिलाया।
नीरज की सफलता भी संघर्षमयी है । सफलता संघर्ष से ही मिलती हैं । 11 वर्ष की आयु में इनका वजन 80 किलो था, जिस हाथ से भाला फेंकते हैं वह एक बार टूट चूका है। फिर भी चोट से उबरने के बाद देश को पहले राष्ट्रमंडल, एशियाई खेलों में स्वर्ण दिलाया और अब मात्र 23 साल की उम्र में ओलंपिक स्वर्ण । इनमें योद्धा, लड़ाकू, प्रेरक गाथा, सौम्य, सुंदर, शालीन, मजबूत कद-काठी सभी कुछ हैं असली हीरो की माफिक । हमारा देश कभी योद्धाओं का देश था। कुश्ती, तीरंदाज, तलवारबाज, भाले फेंकने वाले, हर ओर पाए जाते थे। लेकिन विकृत शिक्षा प्रणाली ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया । हमारे खिलाड़ी आज विदेशों में प्रशिक्षण प्राप्त कर ये कलाएं सीख रहे हैं। वास्तव में ये सब हमारी प्राथमिकताओं के गलत चयन का उदाहरण है। अब वक्त आ गया है नीरज को हीरो बनाने का । हमारे देश को नीरज जैसे युवाओं की जरूरत हैं । हमारे-आपके बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं। खेल को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । बच्चों की क्षमता पहचान कर उन्हें उचित खेल हेतु प्रशिक्षण देना हमारी जरूरत है । कल प्रधानमंत्री जी ने भी नीरज को भारत में और लोगों को अपनी तरह तैयार करने का अनुरोध किया । उन्होंने कहा कि आप सेना में हैं ऐसा कर सकते हैं । वास्तव में सेना एक कैरियर से अधिक आपको इंसान बनाता है ।
हमें यह समझना होगा कि रोटी कमाना या मकान- गाड़ी खरीदना ही जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। देश के लिए मान-सम्मान कमाना भी बड़ी कमाई होती है, आज के दौर में खेलों में सफलता सिर्फ आपका नहीं, बल्कि पूरे देश का नाम रौशन करती है। सबसे महत्वपूर्ण स्वस्थ बनाती है । नौकरी, व्यापार का अलग महत्व है, जीने के लिए चाहिए । पर इसके पीछे अंधी दौड़ में बच्चों की नैसर्गिक प्रतिभा दब-सी जाती है। इसी का परिणाम है कि आज हम एक-एक पदक के लिए तरस जाते है ।
अब हमें असली हीरो को पहचानना सीखना होगा, ताकि देश भी जाने की विजेता कैसे होते है । भारत ने एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण जीता है। नीरज ने ओलिंपिक के एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 121 साल के बाद यह पदक जीता है। भारत का यह टोक्यो ओलिंपिक में आखिरी प्रतियोगिता था और नीरज ने इसका स्वर्णिम अंत किया। नीरज ने धैर्य एवं सयंम के साथ देश के 1 अरब 35 करोड़ भारतीयों के सपने को जमीन पर उतार दिया। नीरज ने देश की परंपरा एवं संस्कृति के खेल 'भाला फेंक' में स्वर्ण पदक जीतकर जाने-अनजाने यह भी संकेत दे दिया कि यदि देश को ओलंपिक खेलों में सिरमौर बनना है तो हमें युवाओं को उन खेलों से ज्यादा जोड़ना होगा, जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं ।
विजयी भव! नीरज
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