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Showing posts from May, 2023

हिंदी पत्रकारिता दिवस की बधाई!

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 हिंदी पत्रकारिता दिवस।  भारतीय भाषाई पत्रकारिता के लिए ऐतिहासिक दिन ! जब मध्यदेशीय में बांग्ला भूमि से उदंत मार्तण्ड की शुरूआत हुई। 1827 में बंद | हिंदी व भारतीय पत्रकारिता की ऐतिहासिक नींव । लिपिबद्ध होकर पत्र के रुप में लोगों तक पहुंची #हिंदी_पत्रकारिता में तकनीक का प्रारंभ। आज ही के दिन आज से 197 वर्ष पूर्व 30 मई, 1826 को ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता यानी आज के भारत के भाषायी वर्गीकरण के हिसाब से ग क्षेत्र से राष्ट्रभाषा हिंदी के पहले समाचार पत्र  'उदन्त मार्तंड की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल ने की थी. तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है.  ब्रिटिश पराधीनता काल से ही हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों  की आवाज बनकर उभरी है. हालांकि आज इसमें गिरावट आई है. मैंने अपनी पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति  में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है. कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य,  संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय  करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार,  संपर्क की

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति का हिंदी ट्वीट

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  इस ट्वीट का बहुत महत्व है। भारत की प्रमुख भाषा हिंदी है ।  इसे विदेशी समझते है। भले हम और आप समझना नहीं चाहते।  एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के रूप में फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के मन में हिंदी के महत्व और प्रेम हेतु अभिनंदन!  इस ट्वीट में फ़्रांस के राष्ट्रपति भारत की मुख्य भाषा के रूप में हिंदी को तरजीह देते  है। पूर्व में विदेशी राष्ट्राध्यक्षों द्वारा ऐसे नगण्य उदाहरण मिलेंगे। आप सभी को यह प्रसंग ज़रूर याद होगा।  जब सन् 1950 में गणतंत्र बनने के उपरांत भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित करने की दिशा में प्रयास शुरू किए। उस श्रृंखला में श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को सोवियत रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। उन्होंने रूस की सरकार को अपने प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए जो अंग्रेजी में थे, सम्बन्धित अधिकारियों ने प्रमाण-पत्र को स्वीकार करने से मना कर दिया, क्योंकि वे किसी भारतीय भाषा में नहीं थे। राजदूत के रूप में अंग्रेजी में प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने पर विजयलक्ष्मी पंडित से यह प्रश्न किया गया था- क्या आपकी अपनी कोई भाषा नहीं है? क्या भारत एक गूंगा एवं असभ्य देश है कि उसने अपनी कोई भा

विज्ञापन, संस्कृति और बाज़ार

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आज के दैनिक हिंदुस्तान में एक विज्ञापन आया है जो विशाल मेगा मार्ट से संबंधित है। विज्ञापन का शीर्षक है ‘ अच्छे दिखें ‘   अब आप तय करें कि इस विज्ञापन के ज़रिये क्या संदेश देना चाहती है यह कंपनी। विज्ञापन के संकेत को समझें। यहाँ बात उत्तर आधुनिक कपड़ों के माध्यम से लोगों को अभिजात्य बनाने  को लेकर है। इस विज्ञापन में देशी पोशाक, पहने मेहनती, गैर-अभिजात्य वर्ग के लोगों को पश्चिमी परिधान से प्रेरित होते दिखाया जा रहा है। जो ग़लत है। इस कम्पनी के अनुसार अंग दिखाऊ कपड़े ही आधुनिकता के परिचायक है। बाज़ार किस दिशा में हमें ले जाना चाहता है? क्या हमारी सोच, परिधान सब कुछ कोई और तय करेगा। अब अच्छे दिखने का यही अर्थ है?  क्या कारण हैं कि हम सब हर अंधी नक़ल को समर्थन देते हैं या स्वीकारते है। हर चीज कहीं की भी सही नहीं होती। यह कौन-सी समझ है जो सड़े-गले, फटे, अधनंगे वस्त्रों में भी निजता और नारीवाद ढूँढती हैं? बाज़ारवाद की यही रणनीति हैं हर चीज को उत्तर-आधुनिकतावाद से जोड़ दो। तभी तो आज शब्द से भी आधुनिकता तय होती है।  ‘वाश-रूम’ जैसे शब्द आधुनिकतावाद के प्रतीक। क्या अंग्रेज़ी के शब्दों से भी कहीं

राम और विभीषण

 ‘सुंदरकांड' में एक प्रसंग आता है- लंका पति के भाई विभीषण, प्रभु श्रीराम को प्रणाम करते हैं और आशीर्वाद स्वरूप उनकी भक्ति मांगते हैं।  विभीषण कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस ऐसा करें कि जीवनपर्यंत आपको इष्ट मानूं।  राम बदले में उन्हें देखिए क्या देते हैं- 'जदपि सखा तव इच्छा नाहीं।  मोर दरसु अमोघ जग माहीं।। अस कहि राम तिलक तेहि सारा।  सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।' राम ने विभीषण को लंका का पूरा राजपाट ही सौंप दिया। वास्तव में राम सत्य के प्रतीक हैं। राम की भक्ति सत्य और मर्यादा को अभिप्रेत करती है।  सोचिए राम की भक्ति में कितनी शक्ति है कि एक निष्काषित व्यक्ति को उसी राज्य का राजा बनाया जाता है। केवल इसलिए कि उसने शक्तिशाली परंतु अनाचारी रावण का विरोध किया। ठीक ही कहा गया है जो राम का है, यह सब उसका है। जो राम का नहीं, यह जग उसका नहीं। फिर भी कलियुग की माया देखिए कि आज समाज में विभीषण के प्रति अपमान, शर्म एवं घृणा का भाव बोध है और रावण के प्रति सहानुभूति, संवेदना का भाव । #राम #विभीषण #साकेत_विचार

सारण गौरव सम्मान

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अपना शहर हर किसी के दिल के क़रीब होता है। क्योंकि आपकी यादें, पहचान उस माटी से अभिव्यक्त होती हैं। आप चाहे कही भी रहें, जाने उसी से जाएँगे। इसी क्रम में यदि अपने छपरा में कुछ भी बेहतर हो और उससे आपको जुड़ने का अवसर मिले, तो बहुत ही ज्यादा ख़ुशी मिलती है। छपरा शहर में एक अलग ही ऊर्जा ही है और इसी ऊर्जा से ऊर्जस्वित छोटे भाई अभिषेक अरुण ने अपने शहर में भी बड़े शहरों की भांति सारण अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का लगातार तीन सालों से उत्कृष्ट आयोजन करने का बीड़ा उठाया है। अभिषेक अरुण छपरा की धरती पर कला एवं संस्कृति की फ़सल लहलहाती रहें, इस हेतु समर्पित भाव से कार्य करने वाले आदरणीय पशुपति नाथ अरुण के सुपुत्र हैं। श्री पशुपति नाथ अरुण मयूर कला केन्द्र जैसे संस्था के संस्थापक रहे हैं। जो संस्था इस आयोजन में भी सक्रिय है। मुझे ख़ुशी है कि संस्था ने मुझे भाषा एवं साहित्य में योगदान के लिए सारण गौरव सम्मान से सम्मानित किया है। मुझे ख़ुशी इस बात है कि बड़े भाई अखिलेंद्र मिश्र जी अपनी माटी को तमाम व्यस्ताओं के बीच समय देते हैं यह आपका लगाव है। आप इस आयोजन के निर्माण एवं प्रसार दोनों से जुड़े हुए ह

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामना!

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बुद्ध पूर्णिमा -वैशाख पूर्णिमा की समस्त सनातन समाज, बौद्ध मतावलंबियों को शुभकामना!   मान्यता है कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम को वर्तमान बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। इसे संयोग कहें या ईश्वर कृपा भगवान को ज्ञान की प्राप्ति भी मोक्ष नगरी, भगवान विष्णु की प्रिय नगरी गयाजी में हुई।  ५६३ ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म वर्तमान नेपाल के लुंबिनी, शाक्य प्रदेश में हुआ था। यह भी संयोग है कि पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में वर्तमान उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ‘कुशनारा' में उनका  महापरिनिर्वाण हुआ था। आज भगवान बुद्ध की वाणी, मत वैश्विक स्तर पर सशक्तता के साथ स्थापित है।  भगवान बुद्ध ने ज्ञान, ध्यान, चिंतन, अहिंसा के माध्यम से भारतीयता को विश्व भूमि पर जीवंत किया। मानव को अहिंसा, सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाने वाले महान समाज सुधारक, भगवान विष्णु के नवें अवतार को नमन करने के विशेष अवसर पर आप सभी को आत्मीय मंगलकामना!  ©डॉ. साकेत सहाय #बुद्ध_जयंती #साकेत_विचार https://vishwakeanganmehindi.blo

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस

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आज 3 मई को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ (World Press Freedom Day) मनाया जाता है। चौथे स्तम्भ के सभी कलमकारों को इस दिवस की बधाई व शुभकामना!  ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ का मुख्य विषय (Theme) ‘‘सूचना और मौलिक स्वतंत्रता जन जन तक पहुंचे-यह हमारा अधिकार है!’ (Access to Information and Fundamental Freedoms-This is Your Right!) है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1993 में  यूनेस्को में हुए महासम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को प्रतिवर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाह्य तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाताओं की यादों को सहेजना है। आज हर स्तर पर प्रेस स्वतंत्रता में ह्रास चिंतनीय है। दबाव के अंतर्गत उपजी स्वच्छंदता सदैव घातक होती है ।  आज प्रेस को देश व समाज के दीर्घ हित में सकारात्मक चिंतन एवं पहल करने की बहुत बड़ी आवश्यकता है । क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता आज स्वच्छंदता में परिवर्तित होती जा रही है।  -डॉ साकेत सहाय #साक

हिंदवी से हिंदी तक

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आइए आप सभी को भारत में कभी प्राकृत, पाली, अपभ्रंश ,  भाखा, हिंदवी, हिन्दुस्तानी, हिंदी आदि उपनामों से प्रचलित राष्ट्रभाषा हिन्दी के विभिन्न नाम या रूप से परिचित  कराते हैं।  *1. हिन्दवी/हिन्दुई/जबान-ए-हिन्दी/देहलवी:* मध्यकाल में मध्यदेश के हिन्दुओं की भाषा, जिसमें अरबी-फारसी शब्दों का अभाव है। [सर्वप्रथम अमीर खुसरो (1253-1325) ने मध्य देश की भाषा के लिए हिन्दवी, हिन्दी शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने देशी भाषा हिन्दवी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए एक फारसी-हिन्दी कोश 'खालिक बारी' की रचना की, जिसमें हिन्दवी शब्द 30 बार, हिन्दी शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए प्रयुक्त हुआ है।] *2. भाषा/भाखा :* विद्यापति, कबीर, तुलसी, केशवदास आदि ने भाषा शब्द का प्रयोग हिन्दी के लिए किया है। [19वीं सदी के प्रारंभ तक इस शब्द का प्रयोग होता रहा है। फोर्ट विलियम कॉलेज में नियुक्त हिन्दी अध्यापकों को 'भाषा मुंशी' के नाम से अभिहित करना इसी बात का सूचक है।] *3. रेख्ता :* मध्यकाल मुसलमानों में प्रचलित अरबी-फारसी शब्दों से मिश्रित कविता की भाषा। (जैसे-मीर, गालिब की रचनाएं) *4. दक्खिनी/दक्कनी :* मध्यका