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Showing posts from October, 2021

हिंदुस्तानी जबान युवा अंक में मेरा आलेख

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 हिन्दुस्तानी ज़बान युवा पत्रिका अंक ( अक्टूबर- दिसम्बर 21) खेल विशेषांक में मेरे लेख 'खेल की दुनिया के किंवदंती पुरूष- मेजर ध्यानचंद को जगह देने के लिए बड़े भाई Sanjiv Nigam जी का आभार । जब मैंने एक पोस्ट के रूप में इसे फेसबुक पर लिखा था तो उनका फोन आया। इसे थोड़ा बड़ा करके हमारी पत्रिका के लिए भेज दीजिए । मेरी लेखनी का सम्मान बढ़ा । क्योंकि यह पत्रिका एक ऐतिहासिक संस्थान से सम्बद्ध हैं । यह पत्रिका राष्ट्रभाषा के प्रबल समर्थक महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ से जुड़ी है। जिसकी स्थापना सन् 1942 में महात्मा गाँधी ने की थी। यह संस्था हिन्दुस्तानी (सरल हिन्दी) के साथ-साथ गाँधीजी के उसूलों के प्रचार-प्रसार में भी यह संस्था कार्यरत है। संस्थान की वेबसाइट से पता चलता है कि इस महान संस्थान को डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, आचार्य काकासाहेब कालेलकर, श्री बाला साहेब खेर, डॉ. ताराचंद, डॉ. ज़ाफर हसन, प्रो. नजीब अशरफ नदवी, श्री श्रीमन्नारायण अग्रवाल, श्रीमती पेरीन बहन कैप्टन, श्रीमती गोशीबहन कैप्टन, पंडित सुन्

इटली में प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय संस्कृति का उद्घोष

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यूरोप का 'भारत' कहे जाने वाले इटली में भारतीय संस्कृति का उद्घोष! इटली में भारतीय भाषा, सभ्यता संस्कृति का प्रसार प्रचार कर रहे संस्कृत विद्वानों, भारतविदों, प्रवासी भारतीयों के साथ ही वेटिकन के मुख्य पुजारी सेंट फ्रांसिस से भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भेंट की। कभी प्राचीन भारतीय संस्कृति का गढ़ माने जाने वाले रोम में गीता के श्लोक गूंजे, वेदों की ऋचाएं गूंजी, भारतमाता की जय, वंदेमातरम का जयघोष हुआ। #साकेत_विचार

अभिनेता पुनीत राजकुमार का असमय जाना

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जो कमाया सब यही रह जाएगा, इसको आत्मसात् करने वाले अभिनेता पुनीत राजकुमार मात्र 46 की आयु में स्वर्गवासी हो गए । अपनी आय से 45 निःशुल्क विद्यालय, 26 अनाथालय,16 वृद्धाश्रम,19 गौशालाएँ, 1800 अनाथ बेटियों की उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार पुनीत राजकुमार का निधन आज हृदय गति रुक जाने से हुआ । नाम के अनुरूप 'पुनीत' कार्य । सनातन संस्कृति के प्रबल समर्थक पुनीत राजकुमार से जुड़ा एक प्रसंग बड़ा चर्चित हुआ था। कहते हैं एक बार जब वे कन्नड़ के 'कौन बनेगा करोड़पति' के मुख्य सूत्रधार थे तो उनके पास सनातन पंथ से जुड़ा एक नकारात्मक प्रश्न आया था प्रतियोगी से पूछने के लिए, जिसे उन्होंने पूछने से मना कर दिया था और वे शो छोड़कर तुरंत बाहर चले गए। इन समृद्ध लोगों के असमय मृत्यु पर एक संकेत भी है 40 के बाद अपने को समेटना सीखिए। जो ईश्वर ने दिया, उस पर सकारात्मक रहें । स्वास्थ्य ही धन है इस मूलमंत्र को जीवन में उतार लीजिए । करियर-फरियर के पीछे ज्यादा उत्साही होना -सब माया है। शीघ्र ही धनतेरस आ रहा है, इस धनतेरस पर इस त्यौहार के विकृत हुए संकल्प को ठीक कर

समाजीकरण और हिंदी

आपने कुछ दिनों पूर्व खबर सुनी होगी जिसमें कर्नाटक के मैसूर से संबंध रखने वाला यह व्यक्ति अपनी माँ को आधुनिक श्रवण कुमार के रूप में भारत भ्रमण करा रहे है और उनके भ्रमण में, संवाद एवं संपर्क में हिंदी की भूमिका स्पष्ट है। माँ-बेटे हिंदी के प्रखर दूत लग रहे हैं। उनका संदेश उनलोगों के लिए है जो यह समझते है हिंदी भाषी ही हिंदी समझते है। यह दिल्ली वालों के लिए भी सबक है जिनका अंग्रेजी के बिना एक वाक्य भी पूरा नहीं होता। यह उनके लिए भी सबक है जो कहते है हिंदी केवल हमारी है हिंदी सबकी है। इन कन्नड़ भाषी माँ-बेटे ने हमें यह बताया है कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। भारत एक राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक इकाई है। अत: इसकी संस्थागत व सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी ही है। समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरकर ही व्यक्ति मातृभाषा के इस रूप को सीखता है। इस वीडियो से हम और आप आसानी से इसे समझ सकते है। भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप से एक़ राष्ट्र रहा है। भाषाई विविधता के बावजूद एक जनभाषा ने इसे सदैव जोड़ कर रखा है। इस अखिल भारतीय परिवार की सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी है। हिंदी इस दृष्टि से समेक

भारत यायावर जी को श्रद्धांजलि

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हिंदी के चर्चित लेखक, 'रेणु' रचनावली के समर्पित अध्येता भारत यायावर जी नहीं रहे। उनका निधन हिंदी रचना संसार के लिए बड़ी क्षति है। नए लेखकों से बड़ा स्नेह करते थे। उनकी अंतिम पोस्ट कल की, सच में जीवन क्षणभंगुर हैं । विनम्र श्रद्धांजलि💐🙏🏼

व्याख्यान-हिंदी साहित्य और सिनेमा का अंतरसंबंध

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दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 23 अक्तूबर को हिंदी साहित्य और उसका सिनेमाई रूपांतरण विषय पर मेरा वक्तव्य रहा। आधार वाक्य साहित्य और सिनेमा के इस परस्पर संबंध को हिंदी सिनेमा ने समय-समय पर यथार्थ रूप प्रदान किया है। जो हिंदी कभी भारतीय सिनेमा की प्राण तत्व मानी जाती थी उसका स्थान अब हिंग्लिश ने ले लिया है। जिसका असर सिनेमा और हिंदी भाषा पर भी पड़ा है। ऐसे में आवश्यकता है कि हिंदी सिनेमा को शिखर पर ले जाने वाले साहित्य को पुष्पवित-पल्लवित करने की। अनेक विद्वान वक्ताओं से यादगार भेंट हुई- श्री अजित राय,  श्री रविकांत, प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत आदि। महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर रमा मैम का कुशल संयोजन एवं सान्निध्य मिला। विजय कुमार मिश्र, महेंद्र प्रजापति, प्राध्यापक एवं महाविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों का आभार! एक सार्थक विषय पर सराहनीय आयोजन हेतु हार्दिक बधाई!   ©डॉ. साकेत सहाय  #साकेत_विचार

एक बार फिर अवतार लें प्रभुनाथ राम

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अभी दशहरा बीता ! काफी कुछ रावण के समर्थन में लिखा गया। पर राम को समझना इतना आसान नहीं। क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम सब नहीं बन सकते। इसीलिए ईश्वर कहलाए। राम वास्तव में अपेक्षा, लोभ, स्वार्थ, काम, क्रोध, सांसारिक मोह से परे कर्तव्य और मर्यादा से बंधे पुरषोत्तम है। श्रीराम की गाथा मानव के 'मानव' बनने का इतिहास है। रामगाथा   राम !   आपकी गाथा,   आपकी पताका,   आपका शौर्य,   आपका मान,   हमारा अभिमान   आपका सम्मान   हमारा मान   आपकी मर्यादा  हमारा अभिमान   भारत की शान   राम आपकी गाथा  किताबों से परे  हमारे संस्कार-संस्कृति  राम  हमारे भावों से  आत्मा से  कैसे विलुप्त हो गए?  क्या आपका विलुप्त होना   भारतीयता का  संस्कार का   संस्कृति का  मर्यादा का  नष्ट होना नहीं ?   राम आप तो चक्रवर्ती सम्राट थे।  आपने दशानन को विजित किया  वहीं दशानन जो  संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति था  पर अहंकारी था  लोग कहते है कि   आपने दशानन का वध किया  पर मुझे लगता है आपने  उसके अहंकार का शमन किया!   इस कलियुग में आपके एक और अवतार की आवश्यकता है प्रभु!  क्योंकि आपके पुत्र अपनी मूल प्रकृति को भूल चुक

विचारधारा की असहिष्णुता

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समय के साथ समाज में उच्च और निम्न की परिभाषा बदलती जा रही  है। महानगरों एवं छोटे शहरों में अर्थ प्रधान समाज का ही बोलबाला  । फिर जातिगत विभाजन या पंथ समाज भेदगत का हंगामाा किनका उद्देश्य है ।   दलित कहे जाने वाले समाज में भी अब उच्च और निम्न का भेद है। इस हेतु कौन उत्तरदायी है? बदलाव हो रहे है। पर दिखता नही है। समस्या समाज में उनलोगों को ज्यादा दिखती है जिनकी कथनी और करनी में ज्यादा फर्क है ।   उच्च और निम्न का भेद मैंने भी हर जगह महसूस किया है किसी न किसी रूप में महसूस किया है। जरूरत है विभाजक सोच से दूर रहना। जो समाज मानवीयता की  हत्या को सांप्रदायिक कहें और हत्या को हिंदू-मुस्लिम में बांट दे। किसी मुस्लिम की हत्या को देश मेंं लिंचिंग का नाम दे और किसी  कुछ और की नृशंसता पर मौन। ऐसे समाज से आशा करना व्यर्थ है। बस अपना कार्य करें ।  आज कुछ लोगों की दुकानदारी प्रधानमंत्री को गाली देने से चल रही है कुछ की भक्ति करने से।  पर समाज की भलाई स्वस्थ सोच में है मगर सोच कहाँ से लाए! जब सब कुछ उधार का ओढ़ रखा है। सुदूर इसरायल-फिलीस्तीन संघर्ष पर आंसू बहाने वाले कथित मानवाधिकारवादी अपने ही भा

प्रयागराज हो या इलाहाबाद- एक विमर्श

कुछ लोगों की विरासत इलाहाबाद है प्रयागराज नहीं। होना यह चाहिए था कि दोनो विरासतों का सम्मान हो। पर हुआ उल्टा कि एक पक्ष ने कथित प्रगतिवादी बनने के चक्कर में पुराने सब कुछ को गलत माना और दिखावे की आड़ में सब गलत को सहते रहें। इन बुद्धिजीवियों? की आड़ में एक पक्ष ने अपनी दुकानदारी जमकर चलाई । अब दूसरा पक्ष यही कर रहा है । ऐसे लोग स्वार्थी हैं। अफसोस कहाँ जाए? बस आप अपने आप को सत्य के मार्ग पर रख सकते है। बाकी इनकी नजर में जो इन्होंने किया केवल वही सत्य है। दुनिया जानती है कि तमाम विवादित चीजे जो अंध एकपक्षवाद के समर्थन में थी इन्होंने उनका समर्थन किया।   भारतीय संस्कृति इनकी नजर में 15वीं शताब्दी के बाद प्रारंभ होती है। संस्कृति तो समाहार का दूसरा नाम है और भारतीय संस्कृति तो समवेत स्वर में सभी का सम उद्घोष करती है। फिर आपने दूसरों को कैसे छोड़ दिया। अगर आप बुद्धिजीवी है तो सभी गलत को गलत बोले। सत्य को सत्य । सत्य को दक्षिणपंथ, वामपंथ एवं इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस अथवा अन्य पक्ष से प्रभावित न होने दें। हम पहले नागरिक बनें। न कि नागरिक से ज्यादा किसी पक्ष या पार्टी कैडर की

जम्मू-कश्मीर में धार्मिक आतंकवाद

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आज फिर जम्मू कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद तथा स्लीपर सेल की मदद से भारतीयों की नृशंस हत्या कर दी गयी। आतंकवादियों ने तीन गैर स्थानीय लोगों को गोली मारी जिससे दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि एक गंभीर रूप से घायल है। मीडिया के मुताबिक, मूल रूप से बिहार के रहने वाले तीनों लोगों पर आतंकियों ने कुलगाम के वानपोह इलाके में अंधाधुंध फायरिंग की। इस आतंकी घटना में 2 गैर स्थानीय लोगों की मौत हो गई और 1 घायल हो गया। इससे पूर्व भी कश्मीर में बीते सप्ताह सनातन पंथ से जुड़े दो शिक्षकों की हत्या आतंकवादियों ने की थी। यह सब करके आतंकवादी कश्मीर में पुनः भय और आतंक का राज कायम करना चाहते है।  दरअसल कश्मीर समस्या एक प्रायोजित समस्या है, जिसका समाधान मात्र घाव पर मरहम लगाने, विकास अथवा मुस्लिमों की खुशामद करने से नही होगा। इसका एकमात्र उपाय है भारतीय बनकर सोचना। उस जहर को नष्ट करना जिसे औरंगजेब जैसे शासक द्वारा मजहब की आड़ में बोया गया बाद में अंग्रेज़ों ने 'फूट डालो, राज करो की कुनीति के तहत इसे सींचा और इसी को सर सैयद अहमद ने आगे बढ़ाया फिर जिन्ना, इकबाल ने हिंदुस्तान के बंटवारे का

आलेख- शिक्षा में भाषा का प्रश्न

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राष्ट्रीय पुस्तक न्यास(एनबीटी), भारत सरकार से प्रकाशित बहुप्रतिष्ठित पत्रिका "पुस्तक संस्कृति" के नवीन अंक में "शिक्षा में भाषा का प्रश्न" विषय पर मेरा शोध आलेख प्रकाशित हुआ है।

अमिताभ होने का अर्थ

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हिंदी फिल्मों के महान अभिनेता अमिताभ बच्चन 79 वर्ष के हो गए। कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने छायावाद के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम ‘अमिताभ’ रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं। अपने जीवंत अभिनय, सरल, सहज भाषा, व्यवहार के कारण सदी के महानायक के रुप में ख्यात अमिताभ बच्चन बीते आधी सदी से भी अधिक समय से भारतीय सिनेमा को सशक्तता प्रदान कर रहे है। जब बच्चन साहब को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, उसी समय से जुड़ा एक उद्धरण आप सभी से साझा करता हूँ। वे कहते हैं 'मैंने स्वयं से पूछा कि क्या दादासाहेब फाल्के पुरस्कार फिल्मी जीवन की सक्रियता से सेवानिवृत्ति का संकेत है तो यह गलत है मुझे अभी और बेहतर करना है।' -अमिताभ बच्चन सच में यही जिजीविषा किसी नायक को सदैव कुछ अप्रतिम करने की प्रेरणा देती है। आप सभी याद करें दिनांक 29.12.2019 का दिन, जब उन्हें भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो अपने क्ष

इंग्लैंड में अंग्रेजी -भारत में अंग्रेजी का पागलपन

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इंग्लैंड में अँग्रेजी कैसे लागू की गयी ?  -डॉ. गणपति चंद्र गुप्त (भू. पू. कुलपति,कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय) संभवत: भारत में बहुत थोड़े लोग यह जानते हैं कि जिस प्रकार आज हम विदेशी भाषा – अँग्रेजी के प्रभाव से आक्रांत हो कर स्वदेशी भाषाओं की उपेक्षा कर रहे हैं, उसी प्रकार किसी समय इंग्लैंड भी विदेशी भाषा – फ्रेंच के प्रभाव से इतना अभिभूत था कि न केवल सारा सरकारी काम फ्रेंच में होता था, बल्कि उच्च वर्ग के लोग अँग्रेजी में बात करना भी अपनी शान के खिलाफ समझते थे। किंतु जब आगे चल कर फ्रेंच के स्थान पर अँग्रेजी लागू की गयी, तो उसका भारी विरोध हुआ और उसके विपक्ष में वे सारे तर्क दिये गये, जो आज हमारे यहाँ हिंदी के विरोध में दिये जा रहे हैं। फिर भी कुछ राष्ट्रभाषा – प्रेमी अंग्रेजों ने विभिन्न प्रकार के उपायों से किस प्रकार अँग्रेजी का मार्ग प्रशस्त किया, इसकी कहानी न केवल अपने – आप में रोचक है, बल्कि हमारी आज की हिंदी – विरोधी स्थिति के निराकरण के लिए भी उपयुक्त मार्ग सुझा सकती है। इंग्लैंड में अँग्रेजी का पराभव क्यों ? वैसे अँग्रेजी इंग्लैंड की अत्यंत प्रचीन भाषा रही है, यहाँ तक कि जब इस देश क

हिंदी सिनेमा और राष्ट्रीयता

हिंदी चलचित्र का राष्ट्रभाषा हिंदी में राष्ट्र के दो नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि 🙏 #हिंदी #हिंदीसिनेमा #गाँधीजी #शास्त्रीजी

लोकसभा में पहला हिंदी भाषण और नेहरू जी का हस्तक्षेप

लोकसभा में पहला हिन्दी भाषण हिन्दी-दिवस तो मना लिया, परन्तु आज यदि किसी से पूछा जाए कि भारत की पहली लोकसभा में सर्वप्रथम हिन्दी में भाषण किसने किया था, तो शायद कोई विरला ही मिले जो इसका उत्तर दे सके। मुझे आश्चर्य है कि इसका उत्तर गूगल पर भी दर्ज नहीं है। ऐतिहासिक तथ्य है कि लोकसभा में सबसे पहले हिन्दी में भाषण करने वाले प्रातः स्मरणीय,परम पूज्य, स्व. पंडित रघुनाथ विनायक धुलेकर जी थे। पंडित धुलेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी, झांसी से लोकसभा के प्रथम सदस्य तथा भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद के अध्यक्ष और विधानसभा के स्पीकर रह चुके थे। आचार्य पंडित धुलेकर ख्यातिलब्ध वकील और अंग्रेजी में उच्च शिक्षा प्राप्त होते हुए भी राष्ट्रभाषा हिंदी और आयुर्वेद पद्धति के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने झांसी में बुन्देलखण्ड आयुर्वेद महाविद्यालय की स्थापना की जो आज राजकीय संस्थान है। उनका संकल्प झांसी में आयुर्वेद विश्वविद्यालय स्थापित करने का था, जो पूर्ण नहीं हो सका। झांसी में लोग प्यार से आचार्य पंडित धुलेकर को कक्का धुलेकर कहा

गाँधी -शास्त्री जयंती और मूल्य-बोध

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आज गाँधी जी की 152वीं जयंती है। साथ में लाल बहादुर शास्त्री जी की भी। ब्रिटिश भारत से आजाद होने के बाद भारत के सबसे बड़े नायक की जन्म जयंती पर शत शत नमन! पर यह हम सभी का दुर्भाग्य है कि दशकों से उनके विचारों को जानबूझकर ढकोसला बनाकर ही परोसा जा रहा है। हमारे शासक, नौकरशाह, पत्रकार, न्यायालय, शिक्षाविद् सामूहिक रूप से ब्रिटिश भारत से आजादी के बाद गांधी जी के सपनों के भारत के हर लक्ष्य को मटियामेट करने में कोई कर-कसर नहीं छोड़े है। चाहे हिंदी एवं भारतीय भाषाओं को कलंकित कर अंग्रेजी को बढावा देने की बात हो या कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित न कर भारी उद्योगों की स्थापना की बात हो, ग्रामीण भारत को अस्तित्वविहीन कर नियोजित शहरों की स्थापना की बात हो, समाज के बुनियादी तत्वों को समाप्त करने में सहयोग और सत्ता ही मूलमंत्र है। दरअसल गांधी का खात्मा उनके अनुयायियों ने पहले किया। दुर्भाग्य यह रहा है कि जिनकी वजह से सत्ता में पहुँचे उन्हीं के उसूलों का खात्मा किया जाना आधुनिक भारत में नैतिकता विहीन समाज की नींव रखने की प्राथमिक सीढ़ी बनी। पर हमारे समाज की आदत सी बन गई है हम केवल पुरखों पर म