‘अमिताभ’ होने का अर्थ
हिंदी फिल्मों के महान अभिनेता अमिताभ बच्चन आज 82 वर्ष के हो गए। कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने छायावाद के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम ‘अमिताभ’ रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं। अपने जीवंत अभिनय, सरल, सहज भाषा, व्यवहार के कारण सदी के महानायक के रुप में ख्यात अमिताभ बच्चन बीते आधी सदी से भी अधिक समय से भारतीय सिनेमा को सशक्तता प्रदान कर रहे है। जब बच्चन साहब को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, उसी समय से जुड़ा एक उद्धरण आप सभी से साझा करता हूँ। वे कहते हैं 'मैंने स्वयं से पूछा कि क्या दादासाहेब फाल्के पुरस्कार फिल्मी जीवन की सक्रियता से सेवानिवृत्ति का संकेत है तो यह गलत है मुझे अभी और बेहतर करना है।' -अमिताभ बच्चन
उनकी यही जिजीविषा किसी नायक को सदैव कुछ अप्रतिम करने की प्रेरणा देती है। आप सभी याद करें दिनांक 29.12.2019 का दिन, जब उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो अपने क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार माना जाता है, पर इसकी प्राप्ति के बाद भी उनमें अजीब-सा आत्मसंतोष का भाव दिखा। साथ ही बेहतर करने का उत्साह भी दिखा। यह बेहतर करने का उत्साह ही अमिताभ को 'अमिताभ' बनाता है। उसके बाद भी वे लगातार सक्रिय है। कोरोना काल में भी लगातार सक्रिय रहे और अभी भी फ़िल्में कर रहे हैं । कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर उनका मनमोहन अंदाज तो निराला है । संगम नगरी, प्रयागराज में जन्मे अमिताभ बच्चन के पिता, डॉ॰ हरिवंश राय बच्चन ने आरंभ में भले इनका नाम इंकलाब रखा था जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रयोग किए गए प्रेरक वाक्यांश 'इंकलाब जिंदाबाद' से लिया गया था। जब पिता हरिवंश राय ने इनका नाम ‘इंकलाब’ रखा होगा तो पता नहीं क्या सोचा होगा ? पर एक बात तो जरूर कहा जा सकता है कि 'यथा पिता तथा पुत्र'।
अमिताभ बच्चन ने अपने कार्यों से फिल्मी दुनिया के इतिहास में एक इंकलाबी पड़ाव का अध्याय तो जरूर लिख दिया है। जहां तक पहुंचने का ख्वाब विरले ही देख पाएंगे। यह भी सच है प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा दिए नाम ‘अमिताभ’ के अनुरूप वे भारतीय फिल्म इतिहास के ‘अमिताभ’ साबित हुए। यह बहुत कम इंसान के सौभाग्य में होता है जब वह अपने कार्यों से अपने नाम की सार्थकता को उजागर करें। ‘अमिताभ’ बनना बहुत मुश्किल होता है। सदियां लग जाती है, शायद यहीं कारण है सिने प्रेमियों ने इन्हें 'महानायक' का दर्जा दिया। अभिनय के प्रति इनकी निष्ठा, लगन, इनकी सक्रियता, रचनात्मकता, निरंतरता इन्हें अरबों में एक बनाती है। यह उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विनम्रता है कि वे अपनी हर सफलता में ईश्वर कृपा, माता-पिता का आशीर्वाद, अपने निर्माता-निर्देशकों एवं सह-कलाकारों के योगदान को जरूर गिनाते है और सबसे अधिक भारत की जनता का स्नेह और निष्ठापूर्ण प्रेम। अमिताभ बच्चन का राज अपनी सहज अभिनयशीलता एवं दमदार संवाद अदायगी से करोड़ों लोगों के दिलों पर बरसों से कायम है।
भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे प्रमुख और दिग्गज व्यक्तित्वों में से एक, जिन्हें कभी उनके रूप और आवाज़ के लिए ठुकराया गया वहीं आज भारतीय फ़िल्म उद्योग के बेताज बादशाह हैं । अमिताभ की कहानी किसी भी आम आदमी की सरीखा ही है क्योंकि हमेशा से आम से खास बनने का सफ़र कभी भी असफलताओं से खाली नहीं रहा । पर, उन्होंने उन्होंने इन असफलताओं का जिस तरह से सामना किया, उसी का परिणाम है कि वे आज एक सफल एवं सम्मानित सितारा हैं ।
मनोरंजन जगत में अमिताभ का प्रवेश आकाशवाणी -ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में नौकरी पाने की एक असफल कोशिश से प्रारंभ हुई , जहाँ 1960 के दशक में दिग्गज अमीन सयानी अपने प्रसिद्ध कार्यक्रम 'बिनाका गीतमाला' के साथ रेडियो प्रस्तोता के रूप में छाए हुए थे । प्रारंभिक दिनों में, अमिताभ रेडियो प्रस्तोता बनने की इच्छा रखते थे और उन्होंने आकाशवाणी में नौकरी के लिए ऑडिशन देने की कई कोशिशें कीं। हालाँकि, उन दिनों अमीन सयानी इतने व्यस्त थे कि इस 'दुबले-पतले आदमी' के लिए वे समय नहीं निकाल पाए, जो लगातार एक अवसर की खोज में था।
अमिताभ अपनी अस्वीकृति को याद करते हुए कहते हैं "शायद मेरी आवाज़ उस चीज़ के लिए उपयुक्त नहीं थी जिसकी उन्हें तलाश थी।
एक अभिनेता के रूप में अपने शुरुआती सफ़र के बारे में चर्चा के दौरान एक साक्षात्कार में अमिताभ मुंबई में अपने शुरुआती संघर्ष के दिनों को याद करते हुए "काफी अस्वीकृतियाँ हुईं। मैं जहाँ भी गया, मुझे नौकरी नहीं मिली। या तो मैं पर्याप्त योग्य नहीं था या मैं बहुत शर्मीला था या साक्षात्कार के दौरान मेरी ज़बान बहुत लड़खड़ा जाती थी और वहाँ ज़्यादा योग्य लोग नौकरी पा रहे थे।"
विडंबना यह है कि अमिताभ बच्चन ने मनोरंजन उद्योग में पहला कदम एक अभिनेता के रूप में नहीं, बल्कि 1969 में फिल्म "भुवन शोम" के लिए एक वॉयस-ओवर कलाकार के रूप में रखा था। मृणाल सेन द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक छोटे बजट की फिल्म थी, जिसने भारत के समानांतर सिनेमा आंदोलन की शुरुआत की और सेन को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
जया बच्चन, जो बाद में अमिताभ की पत्नी बनीं, ने फिल्म में अमिताभ के काम के बारे में मृणाल सेन के शुरुआती आकलन को याद करते हुए कहा, "उनकी आवाज़ ठीक है, लेकिन वे अभिनेता के रूप में कभी सफल नहीं हो पाएँगे।"
इतिहास ने इन सभी आकलनों को असत्य सिद्ध किया ।जिस व्यक्ति के जन्म समय देखने पर ज्योतिषियों ने कहा कि चार -चार ग्रह अष्टमभावस्थ हैं किन्तु अंशात्मकाधिक्य से चार ग्रह नवमभावस्थ हो गए हों , उस व्यक्ति की जीजिविषा व व्यवहारकुशलता पर तो स्वयम् जगन्निर्माता भी रीझ जाय उस व्यक्ति के लिए कुछ कह - लिख पाना उस व्यक्ति के लिए पूर्णतः न्याय नही।
आज अमिताभ बच्चन न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि भारतीय सिनेमा के सबसे महत्वपूर्ण सितारों में से एक हैं और उनकी विशिष्ट आवाज़ ने उनकी सफलता में एक अप्रतिम मानक स्थापित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है ।
बच्चन साहब की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्में हैं- अभिमान, मिली, शोले, दीवार, मैं आजाद हूँ, जंजीर, शक्ति, आनंद, सिलसिला, ब्लैक,बागबां, पा तथा पिंक आदि। आप स्वस्थ एवं अभिनय के फलक पर निरंतर सक्रिय रहे। ईश्वर आपको दीर्घायु दें । परमपिता से यही कामना है ।
महाकवि हरिवंश राय बच्चन के सुपुत्र महानायक अमिताभ बच्चन ने स्वयं भी कविताएं लिखते हैं। उनके जन्मदिन के अवसर पर उनकी कुछ कविताएं जिन्हें अमिताभ अपने ट्विटर अकाउंट पर लोगों के साथ साझा करते हैं -
जी हाँ हुज़ूर मैं काम करता हूँ
मैं सुबह शाम काम करता हूँ
मैं रात बा रात काम करता हूँ
मैं रातों रात काम करता हूँ
केवल एक दिवस देते हो कवि, कविता के लिए,
आश्चर्य होता होगा सभी कवि दिग्गजों के लिए;
जानते नहीं हो तुम विश्व के आचरण को जीव जीवनी,
प्रति क्षण कविता होती है सर्व प्रिये !जी हाँ जनाब मैं अस्पताल जाता हूँ
बचपन से ही इस प्रतिकिया को जीवित रखता हूँ ,
वहीं तो हुई थी मेरी प्रथम पैदाइशी चीत कार
वहीं तो हुआ था अविरल जीवन का मेरा स्वीकार
इस पवित्र स्थल का अभिनंदन करता हूँ मैं
जहाँ इस्वर बनाई प्रतिमा की जाँच होती है तय
धन्य है वे ,
धन्य हैं वे
जिन्हें आत्मा को जीवित रखने का सौभाग्य मिला
भाग्य शाली हैं वे जिन्हें , उन्हें सौभाग्य देने का सौभाग्य ना मिला
बनी रहे ये प्रतिक्रिया अनंत जन जात को
ना देखें ये कभी अस्वस्थता के चंडाल को
पहुँच गया आज रात्रि को लीलावती के प्रांगण मेंदेव समान दिव्यों के दर्शन करने के लिए मैं
विस्तार से देवी देवों से परिचय हुआ
उनकी वचन वाणी से आश्रय मिला
निकला जब चौ पहियों के वाहन में बाहर ,
'रास्ता रोको' का ऐलान किया पत्र मंडली ने जर्जर
चाका चौंद कर देने वाले हथियार बरसाते हैं ये
मानो सीमा पार कर देने का दंड देना चाहते हैं वे
समझ आता है मुझे इनका व्यवहार ;
समझ आता है मुझे, इनका व्याहारप्रत्येक छवि वार है ये उनका व्यवसाय आधार ,
बाधा ना डालूँगा उनकी नित्य क्रिया पर कभी
प्रार्थना है बस इतनी उनसे मगर , सभी
नेत्र हीन कर डालोगे तुम हमारी दिशा दृष्टि को
यदि यूँ अकिंचन चलाते रहोगे अपने अवज़ार को
हमारी रक्षा का है बस भैया, एक ही उपाय ,
इस बुनी हुई प्रमस्तिष्क साया रूपी कवच के सिवाय
(अमिताभ बच्चन के ट्विटर अकाउंट से साभार)आज के दौर में अमिताभ जी के जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, उनकी कार्य निष्ठा एक संदेश है। जो बहुत बड़ी आबादी को प्रेरित करती है । आज की जेन जेड को भी उनसे कुछ सीखना चाहिए । अमिताभ बच्चन अपनी भाषा, संस्कृति एवं लिपि के प्रति बेहद सजग है।‘अमिताभ' होने का यही अर्थ है ।
©डॉ. साकेत सहाय
ई-मेल- Hindisewisaket@zohomail.in
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आलेख में प्रस्तुत सूचनाएँ पब्लिक डोमेन में विद्यामान विभिन्न स्रोतों से लिए गए हैं ।


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