समाजीकरण और हिंदी

आपने कुछ दिनों पूर्व खबर सुनी होगी जिसमें कर्नाटक के मैसूर से संबंध रखने वाला यह व्यक्ति अपनी माँ को आधुनिक श्रवण कुमार के रूप में भारत भ्रमण करा रहे है और उनके भ्रमण में, संवाद एवं संपर्क में हिंदी की भूमिका स्पष्ट है। माँ-बेटे हिंदी के प्रखर दूत लग रहे हैं। उनका संदेश उनलोगों के लिए है जो यह समझते है हिंदी भाषी ही हिंदी समझते है। यह दिल्ली वालों के लिए भी सबक है जिनका अंग्रेजी के बिना एक वाक्य भी पूरा नहीं होता। यह उनके लिए भी सबक है जो कहते है हिंदी केवल हमारी है हिंदी सबकी है। इन कन्नड़ भाषी माँ-बेटे ने हमें यह बताया है कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। भारत एक राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक इकाई है। अत: इसकी संस्थागत व सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी ही है। समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरकर ही व्यक्ति मातृभाषा के इस रूप को सीखता है। इस वीडियो से हम और आप आसानी से इसे समझ सकते है। भारत सदियों से सांस्कृतिक रूप से एक़ राष्ट्र रहा है। भाषाई विविधता के बावजूद एक जनभाषा ने इसे सदैव जोड़ कर रखा है। इस अखिल भारतीय परिवार की सामाजिक अस्मिता की भाषा हिंदी है। हिंदी इस दृष्टि से समेकित रूप से मातृभाषा भी है। अतः मातृभाषा की अनुवादित परिभाषा से ऊपर उठें। जय हिंद! जय हिंदी!! आप सभी को धनतेरस- दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई ©डॉ. साकेत सहाय #साकेत_विचार साभार Sentinal Times

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