विचारधारा की असहिष्णुता

समय के साथ समाज में उच्च और निम्न की परिभाषा बदलती जा रही  है। महानगरों एवं छोटे शहरों में अर्थ प्रधान समाज का ही बोलबाला  । फिर जातिगत विभाजन या पंथ समाज भेदगत का हंगामाा किनका उद्देश्य है ।   दलित कहे जाने वाले समाज में भी अब उच्च और निम्न का भेद है। इस हेतु कौन उत्तरदायी है? बदलाव हो रहे है। पर दिखता नही है। समस्या समाज में उनलोगों को ज्यादा दिखती है जिनकी कथनी और करनी में ज्यादा फर्क है । 

 उच्च और निम्न का भेद मैंने भी हर जगह महसूस किया है किसी न किसी रूप में महसूस किया है। जरूरत है विभाजक सोच से दूर रहना। जो समाज मानवीयता की  हत्या को सांप्रदायिक कहें और हत्या को हिंदू-मुस्लिम में बांट दे। किसी मुस्लिम की हत्या को देश मेंं लिंचिंग का नाम दे और किसी  कुछ और की नृशंसता पर मौन। ऐसे समाज से आशा करना व्यर्थ है। बस अपना कार्य करें ।  आज कुछ लोगों की दुकानदारी प्रधानमंत्री को गाली देने से चल रही है कुछ की भक्ति करने से। 

पर समाज की भलाई स्वस्थ सोच में है मगर सोच कहाँ से लाए! जब सब कुछ उधार का ओढ़ रखा है। सुदूर इसरायल-फिलीस्तीन संघर्ष पर आंसू बहाने वाले कथित मानवाधिकारवादी अपने ही भारत से 74 साल पहले धर्म के नाम पर बंटे पाकिस्तान और भारतीय जवानों के खून से बने बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के नंगे नाच पर क्यों मौन रहते हैं । इनके सहिष्णु विचार कहाँ चले जाते है? 

यह विचारणीय है कि अविभाजित भारत की माटी पर हिंदुओं के कत्ले-आम पर इन सहिष्णु सौदागरों का खून क्यों नही खौलता?  इनका दोगलापन बाहर आ जाता है।  वास्तव में भारत की अवधारणा इनकी दोगली सोच से विकृत हो चली है। जब भारत के अंदर ही पाकिस्तान बनेंगे तो यही होगा। देश की आजादी के लिए  शहीद हुए सेनानियों  की आत्मा भी रो रही होगी। आज कई शहरों में धर्म विशेष के लिए फिर से  अपार्टमेन्ट बन रहे है जिसमें केवल धर्म विशेष को जगह मिलेगी, अब इसे क्या कहेंगे?

यह सब धर्मनिरपेक्ष सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। आप कैसा समाज बनाना चाहते हैं? सरकारें तुष्टिकरण करेंगी तो यहीं सब होगा । जरूरत है इस देश में वोट नीति के जहर को समाप्त करने की।

 समरस समाज की स्थापना के लिए सभी को आगे आना होगा । जरूरी है जागना। भारत को गांधीजी और कलाम की जरूरत है। जो पंथ से ज्यादा परंपरा और संस्कृति में विश्वास रखें । तभी इस प्रकार की कट्टरता पर रोक लगेगी । शिक्षक और समाज का भी सहयोग चाहिए । 

असतो माँ ज्योतिगर्मय 

तमसो माँ सद्गमय!



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