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Showing posts from 2009

एक और हिन्दी दिवस

एक और हिन्दी दिवस ! एक और हिन्दी दिवस ! आजादी के इतने वर्षो बाद भी राष्ट्रभाषा के लिए अगर कोई दिवस मनाने की जरुरत पड़ती है तो यह इस हम सभी के लिए शर्म की बात है। कारण कि सरकार का काम है, नियम-कानून जारी करना तथा उन कानूनों को लागू करने के लिए विशेष दिशा-निर्देशों जारी करना। लेकिन उन नियमों के अनुपालन की जिम्मेवारी सरकारी सेवकों के साथ-साथ जनता की भी तो है। हम यह भली-भांति जानते है कि हम राष्ट्रभाषा के प्रति कितने लापरवाह है। लेकिन जब भाषण देने की बारी आती है तो हम अपने अंदर न झाँक संविधान और सरकार को दोष देते है। समलैंगिकता जैसे विषयों पर तो हम रैलियां निकाल लेते है लेकिन राष्ट्रीय स्वाभिमान के विषय पर हममें से कितने सरकार से लड़ने या सर्वोच्च न्यायालय जाने की हिम्मत रखते है। वर्ष 1950 से हमने न जाने कितने हिन्दी दिवस मना लिए। संविधान सभा ने एक स्वस्थ सोच के तहत हिन्दी को राजभाषा की मान्यता दी थी । लेकिन गलती तो हम नागरिकों की है जो प्रयोग नही करते । अगर हम प्रयोग ही नही करेंगें तो हिन्दी अपनी वास्तविक स्थिति की उत्तराधिकारणी कैसे होगी। यहाँ प्रयोग से मेरा तात्पर्य है ज्

राष्ट्रभाषा हिन्दी के पक्ष में जबर्दस्त बदलाव.........

राष्ट्रभाषा हिन्दी के पक्ष में जबर्दस्त बदलाव......... बीते सोमवार को यानि दिनांक 24 अगस्त 09 को नई दिल्ली में आयोजित माध्यमिक शिक्षा परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने देश के सभी स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई अनिवार्य करने की जोरदार वकालत की। मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि इससे हिन्दी भाषी और गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के छात्रों के बीच जुड़ाव मजबूत होगा। श्री सिब्बल ने अपने भाषण में कहा कि एक बार पूरे देश में हिन्दी का प्रचलन बढ़ जाए तो भारत को जानकारियों के लिए दूसरों की तरफ ताकना नहीं पड़ेगा। उन्होंने हिन्दी का दायरा मातृभाषा से बढ़ाकर ‘’ज्ञानोत्पादक’’ और ‘’सबको एक सूत्र में बाँधने वाली भाषा’’ तक ले जाने की जोरदार वकालत की। इस उद्दरण से समझा जा सकता है कि हिन्दी की स्वीकार्यता राजनैतिक रुप से भी बढ़ रही है। आजादी के पूर्व हिन्दी की व्यापक पहुँच के कारण हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने इसे संपर्क भाषा के रुप में महत्ता दी। बाद में, इन्हीं गुणों के कारण संविधान निर्माताओं ने इसे संघ की राजभाषा का दर्जा दिया। फिर धीरे-धीरे हिन्दी सिनेमा, आकाशव

ट्रकों पर संदेश

ट्रकों पर संदेश आमतौर पर हम और आप ट्रक ड्राईवरों को अलग से नजरिए से देखते है। कुछ इन्हें असभ्य, रैश ड्राईविंग तथा एड्स का पोषक मानते है, तो कुछ इन्हें राष्ट्रीय एकता व विकास की धुरी भी मानते है। लेकिन, क्या आपने कभी ट्रकों को एक नए नज़रिए-से देखने की कोशिश की है। जी, हाँ ! हम बात कर रहे है ट्रकों के पीछे लिखे संदेशों एवं उनके छुपे हुए अर्थो की। साथ ही, ट्रक ड्राईवर हिन्दी के विकास में भी पर्याप्त योगदान देते है। पूरे देश का भ्रमण करने वाले ट्रक ड्राईवर अपने काम-काज में हिन्दी का ही व्यवहार करते है चाहे बिहार का ट्रक ड्राईवर तमिलनाडु जाए या केरल या आंध्र प्रदेश का ट्रक ड्राईवर बंगाल जाए सभी हिन्दी का ही प्रयोग करते है। इस प्रकार ये राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार में भी अपना पर्याप्त योगदान देते है। " बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला ।" " हम दो ! हमारे दो !! " " हम सब एक है ।" हम सब रोज ही ऐसे मुहावरे ट्रकों पर लिखे देखते है। बरबस ही, ये हमारा ध्यान भी अपनी-ओर खींचते है। ट्रक ड्राईवरों की माने तो ये संदेश उनकी भावनाओं, मस्ती एवं सोच को ब्या

हिन्दी का बदलता स्वरुप

आजादी के बाद के विभिन्न कालखंडों के दौर में राजभाषा हिन्दी ने कई उतार-चढ़ाव भरे सफर तए किए है। संपर्क भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, अंतर्राष्ट्रीय भाषा आदि विभिन्न उपादानों से अंलकृत होकर हिन्दी भाषा के स्वरुप में भी काफी बदलाव आए है। स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली यह भाषा आज देश की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक व राजनैतिक एकता को भी मजबूत कर रही है। अपनी संपर्क भाषा की भूमिका के कारण हिन्दी हमें स्थानीयता और जातीयता से परे लेकर जाती है। हिन्दी का यह भाषायी विस्तार भारतीय समाज में व्याप्त क्षेत्रीय, जातीय व भाषायी दूराग्रह को समाप्त करने में काफी मददगार सिद्ध हो रहा है। हिन्दी की इस भूमिका ने भारतीय जनमानस को राष्ट्रभाषा की कमी के अहसास से भी मुक्ति प्रदान की है। हिन्दी कई बाधाओं-अवरोधों के बावजूद लोकतांत्रिक तरीके से स्वत: ही पूरे देश में फैल रही है। बोलना ही किसी भाषा को जीवित रखता हैं और फैलाता है। जैसे-जैसे हिन्दी भाषा की इस व्यापकता को स्वीकृति मिल रही है वैसे-वैसे उस पर देश की अन्य भाषाओं, बोलियों का प्रभाव भी स्पष्ट नजर आ रहा है। हिन्दी भाषा का फैलाव अब अंतर्राष्ट्