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Showing posts from April, 2023

सीता नवमी

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जीवन का पाथेय यदि भगवान श्रीराम हैं तो उन तक पहुँचने का मार्ग केवल माता सीता हैं।  वह श्रीराम की लीला सहचरी हैं।  माता के चरणों की वन्दना करते हुए मानस में कहा गया है - सती सिरोमनि सिय गुनगाथा।   सोइ गुन अमल अनुपम गाथा।।  सीता जी के कर्म और धर्म के संतुलन में समन्वय और सहयोग के कारण ही श्रीराम ने जीवन में नायक की मर्यादा स्थापित की।  प्रभु श्रीराम सदैव ही विश्वास करने योग्य हैं। वह मर्यादा के प्रतिमान है इसलिए भगवान है।  जबकि माता स्वतंत्र हैं विदेह सुता हैं।  इसलिए वह भगवती हैं। सीता नवमी के दिन जनकनन्दिनी माँ जानकी का प्राकट्य हुआ था। भूमिजा वैदेही माँ सीता के प्राकट्य महोत्सव की हार्दिक मंगलकामना!🙏 #सियाराम —डॉ साकेत सहाय

हिंदी के अप्रतिम यौद्धा-चन्द्रबलि पाण्डेय

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आज फ़ारसी, अरबी तथा प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता हिंदी के अनथक यौद्धा चन्द्रबली पाण्डेय की  जयंती है।  उनके सम्बन्ध में प्रसिद्ध भाषा शास्त्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी कहते हैं -“पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।"  आजीवन अविवाहित रहे चन्द्रबली जी हिन्दी के अप्रतिम साहित्यकार माने जाते हैं।  आपके लिए हिंदी सेवा सर्वोपरि रही। अपनी व्यक्तिगत सुख-सुविधा के लिए आपने कभी चेष्टा नहीं की।  आपके द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 कही जाती है। विश्वविद्यालय सेवा से दूर रहकर भी हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में आपका प्रमुख स्थान है। आपने हिंदी-विरोधियों से उस समय लोहा लिया, जब हिंदी का संघर्ष उर्दू और हिंदुस्तानी से था। आपके लिए हिंदी भाषा का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न था। भाषा विवाद ने इस प्रश्न को जटिल बनाकर उलझा दिया था। आपके शब्दों में उर्दू के बोलबाले का स्वरूप यों था- 'उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है, हिंदी को उर्दू आती ही नहीं और उर्दू के लोग, उनकी कुछ न पूछिये। उर्दू के विषय में उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका

राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन

एक अपील राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन दूर हो जाति और धर्म के क़हर से आज पूरा भारतीय उप महाद्वीप ही पीड़ित है। धर्म और भाषा के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश भी जाति और धर्म की पीड़ा से कहाँ मुक्त हुए?  दुर्भाग्य से वोट की राजनीति ने एक प्रकार से इसे सामाजिक महामारी का रूप दे दिया है। अब तो बिहार सरकार के मुखिया ने धर्मवाद के बाद जाति जनगणना के बहाने जातिवाद पर मुहर भी लगा दी है।  ताकि, पहले से लिखित रूप में धर्म, अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा वर्ग, जाति, जनजाति, भाषा, बोली के नाम पर बँटा हुआ समाज और विभाजित दिखें और वोट की फ़सल कटती रहे। इस तथ्य को समझना बेहद ज़रूरी है कि सामाजिक विभाजन औपनिवेशिक व्यवस्था का सबसे बड़ा हथियार था । आज़ादी के बाद वोट की राजनीति ने भी इस देश को विभाजित करने का सबसे बड़ा हथियार हिंदुओं को जाति, वर्ण भेद के आधार पर बांटने की व्यवस्थागत शुरुआत को और तूल दी। प्रारंभ बौद्ध जैन सिक्ख से होकर दलित तक। साथ ही मुस्लिम, ईसाई भी, जिसमें ज्यादातर इसी मिट्टी से उपजे है उन्हें भी यहाँ की परंपरा, भाषा, जिसमें संस्कृति, संस्कार से काट दो। अंग्रेजी एवं अंग्

कविता- इतिहास

 भारत में इतिहास लेखन पर मेरी एक कविता जिसे मैंने चार वर्ष पूर्व लिखा था, आप सभी से पुन: साझा कर रहा हूँ-                                            इतिहास .......... इतिहास भारत की जहालत का बदनामी का संपन्नता का विपन्नता का ................................  कौन-सा कुभाषा का कुविचारों का या अपने को हीन मानने का .............................. सौहार्दता की आड़ में अपने को खोने का विश्व नागरिक की चाह में भारतीयता को खोने का .................................... समरसता की आड़ में अपने को खोने का इतिहास है क्या सिकंदर को महान बनाने का या समुद्रगुप्त से ज्यादा नेपोलियन को या फिर स्वंय को खोकर दूसरों को पाने का या  दूसरों को रौंदकर अपनी पताका फहराने का ............................... आधुनिकता की आड़ में  पुरातनता थोपने का । समाज सुधार आंदोलनों को  धार्मिक आंदोलन का नाम देने का   या कौमियत को धर्म का नाम देने का  ............................. क्या धर्म को विचार का नाम देना आंदोलन है  या फिर  अंग्रेजी दासता को श्रेष्ठता का नाम देना  या फिर सूफीवाद की आड़ में भक्तिवाद को खोने का .................

हिंदी प्रयोग के नाम पर राजनीति

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यह स्थापित सत्य है कि इस देश में सबसे ज्यादा बोली एवं समझी जाने वाली भाषा हिंदी है।  अतः देशहित में भाषा के नाम पर सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों के माध्यम से स्वार्थपरक धारणाएं स्थापित की जानी तुरंत बंद की जानी चाहिए।। क्या दही के पैकेट पर दही शब्द प्रिंट करके व्यवस्था ने कोई गुनाह किया था?   वैसे व्यवहारिकता तो यही है कि इस देश में हर चीज पर राज्य विशेष की भाषा तथा हिंदी में ग्राहक सूचनायें प्रिंट होनी चाहिये। परंतु यह दुर्भाग्य है कि इस देश में कि हर चीज में राजनीतिक एजेंडा के तहत भाषा, जाति और पंथ को घसीटा जाता है। कब तक यह देश संघ की राजभाषा हिंदी का अपमान करेगा? कभी भाषा को पंथ से जोड़कर कुतर्क प्रस्तुत करेंगे।   कभी हिंदी-उर्दू का विवाद, कभी हिंदी की बोलियों के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकना  तो कभी हिंदी और भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर अंग्रेजी को आगे करना।  जबकि  भाषाएं तो राष्ट्रीय संस्कृति से जुड़ी होती हैं, राष्ट्रीय संस्कृति की परिचायक होती हैं। अब हिंदी-उर्दू को ही लें।  उर्दू और हिंदी दोनों हमारी अपनी  भाषाएं है।  मात्र लिपि का अंतर है। इतिहास  पढ़ लीजिये, जान-बूझकर षड्य

हनुमान जयंती

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  आज हनुमान जयंती है। हनुमानजी सर्वप्रिय देवता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त के रूप में आप सर्व पूजनीय है। आज ही के दिन माता अंजनी की गोद में बजरंग बली बालरूप में प्रकट हुए थे। यह अद्भुत संयोग है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी पर प्रभु श्रीराम जन्मे और उनके अनन्य भक्त पूर्णिमा की तिथि को।  राम भक्त हनुमान जी निर्भयता, विश्वास के देवता हैं। यह उनका स्वयं एवं प्रभु के ऊपर विश्वास ही था जो पृथ्वी की जीवन धारा के प्रतीक सूर्य को मुंह में रख लेने से लेकर समुद्र लांघने, ताड़का वध तक के काम उनसे करवा देता है। डर के आगे जीत है। डर को जीतने की कला में वे निपुण हैं। हनुमान जी से यह सीखा जा सकता है कि जिसने भी उनके मन में भय पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी बुद्धि और शक्ति के बल पर उनको हरा कर आगे बढ़ गए। डर को जीतने का पहला प्रबन्धन सूत्र हनुमान जी से सीखा जा सकता है कि अगर आप विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना चाहते हैं तो बल और बुद्धि दोनों से काम लेना आना चाहिए। जहां बुद्धि से काम चल जाए वहां बल का उपयोग नहीं करना चाहिए।  रामचरित मानस के सुंदरकांड का प्रसंग है सीता की खोज मे

महावीर जयंती

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  आप सभी को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामना!  बिहार की धरा पर अवतरित होकर संपूर्ण धरा को अपने जीवन और विचार से प्रेरित करने वाले भगवान महावीर स्वामी को शत शत नमन!  जैन पंथ के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने सत्य, अहिंसा, त्याग, संयम और अपरिग्रह का संदेश पूरे विश्व को दिया।  विश्व को ‘अहिंसा परमो धर्म: ‘ का पाठ पढ़ाने वाले महावीर स्वामी का संदेश आज भी मानवता के लिए प्रकाश स्तंभ है।  आइए, उन्माद, हिंसा, युद्ध, के अमानवीय पथ का शमन करते हुए अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकले। साथ ही उनके सबसे बड़े संदेश शाकाहार को जीवन में अपनाए।  सादर,  डॉ साकेत सहाय ०४.०४.२०२३ #महावीर_जयंती #भगवान_महावीर #साकेत_विचार