कविता- इतिहास
भारत में इतिहास लेखन पर मेरी एक कविता जिसे मैंने चार वर्ष पूर्व लिखा था, आप सभी से पुन: साझा कर रहा हूँ-
इतिहास ..........
इतिहास
भारत की जहालत का
बदनामी का
संपन्नता का
विपन्नता का
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कौन-सा
कुभाषा का
कुविचारों का
या अपने को हीन मानने का
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सौहार्दता की आड़ में
अपने को खोने का
विश्व नागरिक की चाह में
भारतीयता को खोने का
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समरसता की आड़ में अपने को खोने का
इतिहास है क्या
सिकंदर को महान बनाने का
या
समुद्रगुप्त से ज्यादा नेपोलियन को
या
फिर स्वंय को खोकर
दूसरों को पाने का
या
दूसरों को रौंदकर अपनी पताका फहराने का
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आधुनिकता की आड़ में
पुरातनता थोपने का ।
समाज सुधार आंदोलनों को
धार्मिक आंदोलन का नाम देने का
या
कौमियत को धर्म का नाम देने का
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क्या धर्म को विचार का नाम देना आंदोलन है
या फिर
अंग्रेजी दासता को श्रेष्ठता का नाम देना
या फिर सूफीवाद की आड़ में
भक्तिवाद को खोने का
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या फिर
इतिहास है अतीत के पन्नों पर
खुद की इबारत जबरदस्ती लिखने का
या शक्तिशाली के वर्चस्व को स्थापित करने का
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कहते है भारत सदियों से एक है
तो फिर जाति-धर्म के नाम पर
रोटी सेंकना क्या इतिहास है।
क्या देश की सांस्कृतिक पहचान नष्ट करना
इतिहास है?
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यदि यह इतिहास है ?
तो जरूरत है इसे जानने-समझने की
इतिहास है तटस्थता का नाम
तो फिर यह एकरूपता क्यूँ
क्या इतिहास दूसरों के रंगों में रंगने का नाम है
या दूसरों की सत्ता स्थापित करने का ।
©डॉ. साकेत सहाय
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