राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन

एक अपील

राजनीति और मीडिया के माध्यम से जातिगत विभाजन दूर हो

जाति और धर्म के क़हर से आज पूरा भारतीय उप महाद्वीप ही पीड़ित है। धर्म और भाषा के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश भी जाति और धर्म की पीड़ा से कहाँ मुक्त हुए?  दुर्भाग्य से वोट की राजनीति ने एक प्रकार से इसे सामाजिक महामारी का रूप दे दिया है। अब तो बिहार सरकार के मुखिया ने धर्मवाद के बाद जाति जनगणना के बहाने जातिवाद पर मुहर भी लगा दी है।  ताकि, पहले से लिखित रूप में धर्म, अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा वर्ग, जाति, जनजाति, भाषा, बोली के नाम पर बँटा हुआ समाज और विभाजित दिखें और वोट की फ़सल कटती रहे।


इस तथ्य को समझना बेहद ज़रूरी है कि सामाजिक विभाजन औपनिवेशिक व्यवस्था का सबसे बड़ा हथियार था । आज़ादी के बाद वोट की राजनीति ने भी इस देश को विभाजित करने का सबसे बड़ा हथियार हिंदुओं को जाति, वर्ण भेद के आधार पर बांटने की व्यवस्थागत शुरुआत को और तूल दी। प्रारंभ बौद्ध जैन सिक्ख से होकर दलित तक। साथ ही मुस्लिम, ईसाई भी, जिसमें ज्यादातर इसी मिट्टी से उपजे है उन्हें भी यहाँ की परंपरा, भाषा, जिसमें संस्कृति, संस्कार से काट दो। अंग्रेजी एवं अंग्रेजों ने यही रणनीति अपनाई । अब हम इस साजिश को अपनी नियति एवं मूढ़ता  की वजह से इतिहास का अंग मानकर स्वीकार कर रहे है। 

भारत तब तक एक रहेगा जब तक इसकी  मूल संस्कृति जिंदा रहेगी। अफगानिस्तान, पाकिस्तान से भारतीयता समाप्त हो गई । अतः यह ज़रूरी है कि हम सब एक हो। हिंदुओं में व्यवस्थागत रूप से जातिगत विभाजन दूर हो। इस हेतु सामाजिक पहल हो। इसी माटी के मुस्लिम, ईसाईयों को भी यहाँ की परंपरा, संस्कृति से जोड़ने के प्रयास उसी प्रकार से हो, जैसे इनके पुरखों के समय होता था। और सबसे अधिक ज़रूरी है कि हिंदु मुस्लिम सिक्ख ईसाई से पहले हम सभी भारतीय बने।


मैंने पिछले साल ही जनवरी, 2022 में चुनाव आयोग, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय सभी को इस बात के लिए अनुरोध किया था कि मीडिया चैनलों द्वारा जातिगत वोटों के आँकड़े दिखाना ग़लत है।  मैं आप सभी से वह पत्र साझा कर रहा हूँ। 


सेवा में, 

मुख्य न्यायाधीश 

सर्वोच्च न्यायालय 

नई दिल्ली 


विषय - माननीय मुख्य न्यायाधीश  से चुनावी सर्वेक्षण या अन्य मदों में मीडिया माध्यमों तथा राजनीतिक दलों द्वारा सनातन समाज  को विभाजित किए जाने पर तत्काल रोक हेतु अनुरोध पत्र 


आदरणीय महोदय/महोदया, 


विषयगत संबंध में सादर अनुरोध है कि चुनाव आयोग द्वारा  पांच राज्यों में निर्वाचन प्रक्रिया की शुरुआत की जा चुकी है ।  इसी के साथ चुनावी सर्वेक्षणों की शुरूआत भी हो चली है। खेद की बात यह है कि इसमें अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह भारतीय संविधान का अपमान है। 


महोदय, मीडिया चैनलों, राजनीतिक दलों एवं अन्य संगठनों के इस कृत्य से सामाजिक विभाजन को बल मिलता है। साथ ही इस कुप्रयास से सामाजिक कोढ़ के रूप में कुख्यात जातिगत विभाजन का भी प्रसार होता है। इससे संविधान के उद्देशिका के बोध वाक्य 'हम भारत के लोग' को भी हानि पहुंचती है।  


महोदय, चुनाव लोकतांत्रिक परंपरा का समृद्ध हिस्सा है। इसमें दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाना किसी भी सभ्य समाज द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता ।  चुनाव में जनता पार्टियों या विचारधारा के आधार पर  वोट डालती है। पर,  मीडिया माध्यमों, राजनीतिक दलों द्वारा नेताओं के टिकट को जाति या धर्मं से तौलकर प्रसारित करना किसी अस्वस्थ परंपरा के प्रसार का भाग लगता है।  जो कि सरासर निंदनीय है। इसे हम भारतीयता का अपमान भी मान सकते है। 


मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह इस खेल में सबसे आगे शामिल हैं।  चुनावी आधार पर हिंदू या किसी भी संप्रदाय को विभाजित करना धर्मनिरपेक्ष परंपरा के भी  विरूद्ध है।  यह सब अधिकांश चुनावों में देखा जाता है।  महोदय,  भारत में चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश ।


महोदय, से विनम्र अनुरोध है कि भारतीयता के मूल प्रसार में यह आवश्यक है इस प्रकार के रिपोर्टों पर माननीय न्यायालय  तुरंत संज्ञान लें और तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगाएं।


भवदीय ,


डॉ साकेत सहाय 

लेखक एवं शिक्षाविद् 

संपर्क- hindisewi@gmail.com 


प्रतिलिपि- माननीय मुख्य चुनाव आयुक्त, नयी दिल्ली को प्रेषित 


©डॉ साकेत सहाय

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