लाल बहादुर शास्त्री - पंजाब नैशनल बैंक के कर्त्तव्यनिष्ठ ग्राहक






आज महान देशभक्त, भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की १२१वीं जयंती है।  भारत-पाक युद्ध में जय जवान! जय किसान! का उद्घोष करने वाले शास्त्रीजी की जयंती पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को शत शत नमन! आज बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि वे पंजाब नैशनल बैंक के निष्ठावान ग्राहक भी रहे। इस पुण्य अवसर पर शास्त्री जी से जुड़ा यह संस्मरण हम सभी के लिए प्रेरक कथा की भांति है। 

तथ्य यह है कि अपनी सादगी भरी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री जी ने लाल बहादुर शास्त्री जी के ताशकंद में हुए असामयिक निधन के बाद पीएनबी से लिए गए कार लोन की बची हुई ₹5,000 की राशि को सरकार से ऋण माफ़ी की मिली पेशकश को मना कर अपनी बची हुई पेंशन राशि से चुकाई थी। यह उनके कर्तव्यनिष्ठा का शानदार उदाहरण है। शास्त्री जी के कार ख़रीदने से जुड़े वाक़ये को सुनकर हम सभी बहुत कुछ सीख सकते हैं। 

यह घटना वर्ष 1964 की है। चूँकि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी शास्त्री जी के पास अपना घर तो क्या एक कार तक नहीं थी। 

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के पास मुगलसराय में हुआ था। उनके बचपन का नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था।  बाद में संस्कृत में स्नातक की योग्यता के बाद वे ‘शास्त्री’ कहलाए। लाल बहादुर शास्त्री के पिता शरद प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे। जब वे मात्र डेढ़ साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी मां, रामदुलारी देवी, जो अभी बीस वर्ष की थीं, अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता के घर चली गईं। जहां उनका लालन- पालन अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में हुआ और वे ‘गुदड़ी के लाल’ कहलाए। 

शास्त्री जी अपनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा के बल पर देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचे। प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार उनके बच्चों ने उलाहना दिया कि अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं, अब हमारे पास अपनी कार होनी चाहिए। शास्त्री जी के पास अपनी कोई कार नही थी और उनके बच्चे कभी-कभी स्कूल जाने के लिए शास्त्री जी के पीएमओ की कार का भी इस्तेमाल करते थे। परंतु लाल बहादुर शास्त्री जी किसी भी तरह के निजी कार्य के लिए इसके नियमित प्रयोग की अनुमति नहीं देते थे और घर में बच्चों को एक कार की ज़रूरत थी। उस ज़माने में एक फ़िएट कार का मूल्य ₹12,000 होता था। तब शास्त्री जी ने अपने एक सचिव से कहा कि ज़रा देखें कि उनके बैंक खाते में कितने रुपये हैं? तब उनका बैंक बैलेंस था ₹7,000 । जब बच्चों को पता चला कि शास्त्री जी के पास कार ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि कार मत ख़रीदिए। 

लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि वो बाक़ी के पैसे बैंक से लोन लेकर जुटाएंगे। परिवार के पसंद की ख़ातिर शेष बची राशि के लिए शास्त्री जी ने भारत के स्वदेशी बैंक पंजाब नैशनल बैंक में ₹5,000 के ऋण हेतु आवेदन किया, जिसकी मंजूरी उसी दिन उन्हें मिल गई। 

दुर्भाग्य से एक साल बाद ही लोन चुकाने से पहले ही उनका निधन हो गया। उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं श्रीमती इंदिरा गाँधी ने सरकार की तरफ़ से उनके ऋण को माफ़ करने की पेशकश की लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया । बैंक की इस बची हुई ॠण राशि को लाल बहादुर शास्त्री जी के असामयिक निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री जी ने अपनी पेंशन से कार की सारी किस्तें चार साल में चुका दी। 

शास्त्री जी और उनका परिवार जहाँ-जहाँ भी गया, वह कार उनके साथ गया।  वर्तमान में यह कार दिल्ली में लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति में स्थापित संग्रहालय में रखी हुई है और दूर- दूर से लोग इसे देखने आते हैं। 

उनके कार से जुड़ा एक और संस्मरण है जब वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके बेटे अनिल शास्त्री दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ रहे थे।  उस ज़माने में अभिभावक-शिक्षक(पैरेंट्स-टीचर) बैठक (मीटिंग) नहीं हुआ करती थी। हाँ अभिभावकों को छात्र का  परिणाम पत्र (रिपोर्ट कार्ड)  लेने के लिए ज़रूर बुलाया जाता था। शास्त्री जी ने भी तय किया कि वो अपने बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने उनके स्कूल जाएंगे। स्कूल पहुंचने पर वो स्कूल के गेट पर ही उतर गए। हालांकि सुरक्षा गार्ड ने कहा कि वो कार को स्कूल के परिसर में ले आएं, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 

शास्त्री जी से जुड़े ये संस्मरण उनके प्रेरक व्यक्तित्व होने के अनुकरणीय उदाहरण हैं। 

सादर नमन🙏🌺

डॉ साकेत सहाय

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