तर्क और प्रज्ञा का संबंध

आज एक समूह में तर्क पर बहस हो रहा था । मेरे मन में तर्क से आगे ‘प्रज्ञा’ के संबंध में कुछ भाव उपजें, जिसे आप सभी से साझा कर रहा हूँ।

तर्क और प्रज्ञा का संबंध -

तर्क जिसे हम अंग्रेजी में लॉजिक या रीजनिंग के नाम से जानते हैं । पश्चिमी परंपरा तर्क में विश्वास करती है । इसीलिए आज की शिक्षा पद्धति तर्कवादी बनाने में अधिक विश्वास करती है । यहीं कारण है कि हम सब हर चीज में अंतहीन तर्क ढूंढते हैं और निष्कर्ष भी अपने संज्ञान में विद्यमान तथ्यों और नियमों के आधार पर  निकालते हैं । विद्वान तर्क को बौद्धिक प्रक्रिया मानते हैं जिसमें भावनाओं, नैतिकता या अनुभव का स्थान कम होता है।इसीलिए आज चार किताबें पढ़कर लोग विद्वान हो जाते हैं। भारतीय ज्ञान पद्धति शिक्षित व्यक्ति को ही ज्ञानी नहीं मानती। कबीरदास जी ने कहा भी है “पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “

तर्क में केवल तथ्यों पर आधारित हम निष्कर्ष निकालते हैं। तर्क से आगे की प्रक्रिया है -प्रज्ञा जिसे हम अंग्रेजी में विजडम कहते हैं । 

प्रज्ञा या विजडम में व्यक्ति अनुभव, ज्ञान, तर्क, नैतिकता और करुणा को मिलाकर सही निर्णय लेता है। प्रज्ञा जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण का विस्तार करती है। प्रज्ञा केवल सोचने की नहीं, सही करने की क्षमता है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा झूठ बोल रहा है, तो हमारा तर्क कहता है – उसे दंड दो।

लेकिन हमारी प्रज्ञा पहले कारण, परिस्थितियों को समझने और फिर निर्णय लेने की क्षमता का विस्तार करती है। आजकल पैरेंटिंग में भी हम  विजडम या प्रज्ञा का प्रयोग कम ही करते हैं । 

सादर 

डॉ साकेत सहाय

#साकेत_विचार #तर्क #प्रज्ञा 

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