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Showing posts from June, 2022

सहिष्णु भारत

 चलनी चलल सूप के बोले । जेकरा में बहत्तर छेद।। इस्लामिक संगठन, पाकिस्तान,  तालिबान के लिए जिनके यहां दूसरे पंथ को मानने वालों की हैसियत दोयम दर्ज़े की है और तो और वो भी बोल रहे है जिन्होंने एक धर्म विशेष से घृणा के नाम पर वहाँ के मूल निवासियों को ही बाहर धकेल दिया।  इस देश में सबका सम्मान रहा है होना  भी चाहिए ।  ईश्वर के सभी दूत पूज्यनीय है। यही मानव धर्म है। इसी मानव धर्म के सबक़ ने दुनिया के समक्ष यह दिखाया है कि कैसे धर्म विशेष के नाम पर बँटवारे के बाद भी इस  देश का समाज समरस की भावना के साथ जीता है। लाख ज़ख़्म मिले, पर सहिष्णुता क़ायम रही। इस देश की परंपरा, संस्कृति, मूल्य के आराध्य शिव, राम, कृष्ण का अपमान भी सहिष्णु समाज ने सहन किया।  यह देश महादेव ‘शिव’  का है जो सबके कल्याण में रत रहते है। यह हमारा धर्म है कि ईश्वर के सभी दूतों का सम्मान हो और यह मूल भावना सर्व समाज में होनी चाहिए। पर यह भी विचारणीय है कि कश्मीर में आए दिन हो रही हत्याओं का वहाँ की कश्मीरियत कभी खुलकर विरोध नहीं करती। इस देश ने विभाजन और षड्यंत्र का ज़हर बहुत पीया है, अब ज़रूरत है इस देश में भारतीयता का सम्मान

पर्यावरण, लोकभाषा और संस्कृति

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 पर्यावरण, लोकभाषा और संस्कृति दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है- "दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः। दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।" आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस अवसर पर भारतीयता की मूल प्रकृति को दर्शाने वाली लोकभाषा एवं संस्कृति से बृहत्तर समाज की दूरी को लेकर मेरे मन में कुछ चिंतन उभरते हैं। आज़ादी के अमृत वर्ष पर क्या यह इस देश का दुर्भाग्य नहीं है कि इस देश की राष्ट्रीय प्रकृति के अनुरूप इसकी अपनी कोई भाषा सरकारें या व्यवस्था अभी तक स्वीकार नही कर पायी है।  साथ ही इस देश की व्यवस्था और समाज ने भी अपनी लोकभाषाओं को तिरस्कृत कर। त्याज्य दिया है। जिस कारण हम आज भी भाषाई एवं वैचारिक तौर पर ग़ुलाम की भाँति है।  पर्यावरण संरक्षण हेतु भी हमारे विचार उधार से शासित होते है। जबकि हमारी संस्कृति में भूमि, जल, आकाश की तमाम महिमाएँ हैं। फिर हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण की निर्मिति में गिरावट क्यों? यह प्रश्न निश्चय ही विचारणीय है।   प्रसिद्ध पर्यावरणविद् स्वर्गी

अभिमन्यु अनत- मॉरीशस के प्रेमचन्द

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आज मॉरीशस के ‘प्रेमचन्द’ के रूप में ख्यात साहित्यकार अभिमन्यु अनत जी की पुण्यतिथि है। वे मॉरीशस के हिन्दी कथा-साहित्य के सम्राट  माने जाते हैं। उनका जन्म ०९ अगस्त,  १९३७ को मॉरीशस के उत्तर प्रान्त में स्थित त्रियोले गांव में हुआ था।  उन्होंने अपनी उच्च-स्तरीय उपन्यास एवं कहानियों के माध्यम से मॉरीशस को विश्व हिन्दी साहित्य के मंच पर प्रतिष्ठित किया।  सजग, प्रतिबद्ध और कर्मठ रचनाकार रहे अभिमन्यु अनत अपनी कहानियों को अपने समय के बयान के तौर पर लिखते हैं। हिंदी प्रेम के कारण उन्होंने मॉरीशस की संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में भी हिंदी साहित्य को प्रतिष्ठित किया। हिंदी साहित्य के इतिहास में उनके कृतित्व के कारण उनके युग को मॉरीशस के साहित्याकाश में ‘अभिमन्यु अनत युग ' के रूप  जाना जाता है। ११वें विश्व हिंदी सम्मेलन से कुछ ही माह पूर्व उनका देहावसान हुआ था। जिसकी छाया सम्मेलन पर भी पड़ी।   उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘कैक्टस के दांत', 'नागफनी में उलझी सांसें', 'गूँगा इतिहास', 'देख कबीरा हांसी', 'इंसान और मशीन', 'जब कल आएगा यमराज', 'लहरों की बेटी',

नरगिस दत्त- एक महान अदाकारा

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 भारतीय सिनेमा जगत को अपने मार्मिक एवं जीवंत अभिनय से गौरवान्वित करने वाली नरगिस जी का आज जन्मदिन है। अपनी शानदार अदाकारी से सिने प्रेमियों के दिलों पर वे दशकों तक राज करती रही। अपने अभिनय से वे प्रत्येक भूमिका में जान डाल देती थीं।   नरगिस एक हिन्दू पिता की संतान थीं तथा वाराणसी शहर से उनका नजदीकी नाता था। पहली बार प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक महबूब खान ने उन्हें अपनी फिल्म 'तकदीर' में अवसर दिया था। वर्ष 1949 में राज कपूर के साथ उनकी कई शानदार फ़िल्में बरसात, अंदाज आईं जिनकी सफलता ने उन्हें स्थापित  अभिनेत्रियों की श्रेणी में अग्रिम प॔क्ति में ला खड़ा किया।    निर्माता, निर्देशक, अभिनेता राज कपूर के साथ उन्होंने लगभग 55 फिल्मों में साथ काम किया। वर्ष 1956 में आई फिल्म 'चोरी-चोरी' उन दोनों के जोड़ी की अंतिम फिल्म थी। वर्ष 1957 में महबूब खान की ही फिल्म 'मदर इंडिया' में नरगिस ने प्रसिद्ध अभिनेता सुनील दत्त की मां की भूमिका निभाई । फिल्म की शूटिंग के दौरान ही अचानक लगी आग के वक्त अपनी जान जोखिम में डालकर सुनील दत्त ने उन्हें मरने से बचाया था । इस घटना के ब