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Showing posts from 2022

लीलावती

 गणितज्ञ #लीलावती का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने नहीं सुना है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो पेड़ के पत्ते तक गिन लेती थी। शायद ही कोई जानता होगा कि आज यूरोप सहित विश्व के सैंकड़ों देश जिस गणित की पुस्तक से गणित पढ़ा रहे हैं, उसकी रचयिता भारत की एक महान गणितज्ञ महर्षि भास्कराचार्य की सुपुत्री लीलावती है। आज गणितज्ञों को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में लीलावती पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।  आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था। दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में #भास्कराचार्य नामक गणित एवं ज्योतिष विद्या के बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष गणना से जान लिया था कि ‘वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।’ उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। उस समय जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था। एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब

चुनाव -२०२४

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 2024  का चुनाव! अधिकांश मीडिया संगठनों, पत्रकारों द्वारा भारतीय समाज को विशेष रूप से हिंदू समाज को जातिगत भेदभाव के आधार पर बांटा जाता है। यह गलत है। दलित, ओबीसी, अगड़ों के आधार पर चुनावी मतों का निर्धारण किया जाता है। नेताओं के टिकट तय किये जाते हैं । यह गलत है। भारतीयता का अपमान है। मीडिया जिसे चौथा खंभा माना जाता है वह भी इस खेल में शामिल हैं। आज दलित , अगड़ा कोई नही है सब पैसों का खेल हैं । जो संपन्न है वह अगड़ा है और जो वंचित  है वह दलित हैं। हमें इस आधार पर हिंदुओं या किसी भी संप्रदाय को विभाजित नही करना चाहिए । मैं यह सब अधिकांश चुनावों में देखता हूँ । इसका प्रबल विरोध होना चाहिये । विकसित भारत  का चुनाव सर्व भारतीय समाज के आधार पर होना चाहिए । न कि दलित, पिछड़ा, ओबीसी, अगड़ी जाति के आधार पर होना चाहिए । भारतीयता की पहचान है -सभी का समावेश । उसमें धर्म, जाति न हो । एक भारतीय नागरिक का विकास पहला उद्देश्य हो। भले ही यह सोच धीरे-धीरे विकसित हो पर जोरदार कोशिश तो हो।  आजादी के पहले अंग्रेजों ने इस देश को विभाजित सोच के आधार पर बाँटा। बाद में वामपंथी, समाजवादी,  दक्षिणपंथी पार्टियो

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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  खड़ी बोली हिंदी की सशक्तता के अहम् हस्ताक्षर तथा हिन्दी पत्रकारिता के आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी  (1864 - 21 दिसम्बर 1938) की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन  ! #द्विवेदी_युग #साकेत_विचार

वस्त्र

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 अभी-अभी गाँव की पगडंडियों पर बैंक के काम से घूमते हुए मन में विचार आए, सोचा आप सभी से साझा कर लूँ। अन्यथा बाद में समय के अभाव में यूँ ही धूल जाएँगे।  वस्त्र सुना था वस्त्र मनुज-मानवी के  होते है आभूषण  इससे पनपे संस्कार  और निर्मित हो एक संस्कृति  पर अब सुना है वस्त्र  धर्म भी है भला  बीच में  कैसे आ  गए धर्म  व  पंथ आए और बीच बाज़ार में  धर्म-परंपरा के नाम पर फेंक दें  बुर्का, हिजाब सब,  सब मिल उतार दें भेद सब, पर लज्जा और सम्मान रखें रखें मान संस्कार का  और न पाले  “पठान” में बिकिनी गर्ल बन जाने का  बाज़ार का सबब वस्त्र संस्कार संस्कृति सभ्यता के होते है  सूचक पर न होते है दबाव,  लालच, भोग,  कुपरंपरा के बोधक।  #साकेत_विचार

पेंशनर दिवस

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आज पेंशनर्स डे है।  17 दिसंबर, 1982 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने श्री डी एस नकारा के पेंशन मामले में एक ऐतिहासिक  निर्णय दिया था । इस फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह फैसला सुनाया था कि “पेंशन न तो कोई उपहार है और न ही इनाम।  बल्कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों का अधिकार है  जिसने लंबे समय तक देश की सेवा की।  सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि कर्मचारी एक सम्मानित जीवन जी सके।” इस फैसले के बाद पेंशन में वेतन की भांति संशोधन किये जाने लगे।  हालाँकि इसी कड़ी में सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों के पेंशन अपडेशन  का मामला  भारत सरकार के पास दीर्घ समय से लम्बित है। इस तारीख़ की उपयोगिता उन सभी लोगों के लिए न्यायपरक पेंशन व्यवस्था लागू करने के रूप में भी है।  परंतु, 01 अप्रैल,  2005 के बाद हुई नियुक्तियों के नौकरीपेशा लोगों के लिए तो सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन योजना लागू की है। जिसकी स्थिति अस्पष्ट है और बाज़ार पर आधारित है। सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों का भी पेंशन लंबे समय से अपडेशन के अभाव में असम्मानजनक है।  साथ ही निजी क्षेत्रों में भी पेंशन की स्थिति दयनीय या न के बराबर है

धर्म-संस्कार

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सिकंदराबाद के निकट पिलखन गाँव की कहानी यह है। 1904 का सन् था, बरसात का मौसम और मदरसे की छुट्टी हो चुकी थी... लड़कियाँ मदरसे से निकल चुकी थी... अचानक ही आँधी आई और एक लड़की की आँखों में धूल भर गई, आँखें बंद और उसका पैर एक कुत्ते पर जा टिका... वह कुत्ता उसके पीछे भागने लगा... लड़की डर गई और दौड़ते हुए एक ब्राह्मण मुरारीलाल शर्मा के घर में घुस गई... जहाँ 52 गज का घाघरा पहने पंडिताइन बैठी थी... उसके घाघरे में जाकर लिपट गई, ‘‘दादी मुझे बचा लो..।’’ दादी की लाठी देख कुत्ता तो वहीं से भाग गया, लेकिन बाद में जहाँ भी दादी मिलती, तो यह बालिका उसको राम-राम बोलकर अभिवादन करने लगी, दादी से उसकी मित्रता हो गई और दादी उसे समय मिलते ही अपने पास बुलाने लगी, क्योंकि दादी को पंडित कृपाराम ने उर्दू में नूरे हकीकत लाकर दी थी, दादी उर्दू जानती थी, परंतु अब आँखें कमजोर हो गई थी, इसलिए उस लड़की से रोज-रोज वह उस ग्रंथ को पढ़वाने लगी और यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा। लड़की देखते ही देखते पंडितों के घर में रखे सारे आर्ष साहित्य को पढ़-पढ़कर सुनाते हुए कब विद्वान बन गई पता ही नहीं, पता तो तब चला, जब एक दिन उसका

देशरत्न जयंती समारोह

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आज दिनांक: 03.12.2022 को पंजाब नैशनल बैंक के बिहार अंचल में अंचल प्रमुख श्री पूर्ण चंद्र बेहरा की अध्यक्षता में भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रमुख सेनानी एवं भारतीय संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 139वीं जयंती समारोह का आयोजन किया गया।  इस अवसर पर अपनी सादगी एवं सरलता से देश की माटी को सुशोभित करने वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद को अंचल प्रमुख एवं स्टाफ सदस्यों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।  समारोह में वक्ताओं ने राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए देश के प्रति उनके त्याग व समर्पण को स्मरण करते हुए उनकी मेधा शक्ति को विशेष रूप से रेखांकित किया। संविधान निर्माण तथा देश की स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालते हुए अंचल प्रमुख ने बताया कि पंजाब नैशनल बैंक को इस बात का गर्व है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति हमारे बैंक की शाखा एक्जीबिशन रोड, पटना के सम्मानित ग्राहक रहे।  सभा का संयोजन करते हुए मुख्य प्रबन्धक (राजभाषा) डॉ साकेत सहाय ने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से उनके योगदान को स्मरण कर

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस

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अं  पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामना!  अंत में काई दिवसों के साथ यह दिवस  भी बड़ी ख़ामोशी के साथ आता और चला जाता है।  विचारणीय यह है कि हर विषय पर मुखर रहने वाला सोशल मीडिया भी मौन रहता है। क्या आज अंध मुखरता के कारण पुरुष वर्ग बड़ी खामोशी के साथ खुद को बदनाम महसूस कर रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे है अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की।   चलो इस मूक मजदूर वर्ग के लिए कोई तो दिवस बना। वरना, यह वर्ग तो झूठी शान में जी रहा है।  समाज में आधी से अधिक आबादी का हिस्सा इस तथाकथित अत्याचारी समाज से अपील है कि अपनी कमियों को पहचाने, अपनी खूबियों को जाने।   आप समाज के महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप निर्माता नहीं, पर निर्माण के स्तंभ जरूर हैं । समाज आपके बिना चल नहीं सकता। क्योंकि वर्तमान में समाज के बड़े हिस्से की अंधभक्ति में हम भावी पीढ़ी के लड़कों का हश्र वहीं न कर दें  जो आज से तीन सदी पूर्व लड़कियों के साथ होता था।  आज  का यथार्थ यह है कि  लडकें भी शोषण का शिकार हो रहे हैं।  समाज का मूल स्वभाव है  'सख्तर भक्तों, निर्ममों यमराज'। समय के साथ सृष्टि की दोनों सृजनात्मक धूरियों में बदलाव परिलक्षित हुए है।

#फूटी_कौड़ी_से_डिजिटल_रुपया_तक

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एक ज़माने में फूटी कौड़ी मुद्रा(करेंसी) की भाँति कार्य करती थी जिसकी क़ीमत सबसे कम होती थी।  उस समय तीन फूटी कौड़ियों से एक कौड़ी बनती थी और दस कौड़ियों से एक दमड़ी।  आज कल की बोलचाल में फूटी कौड़ी को मुहावरे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है ।   कई और भी मुहावरे आप सभी को याद होंगे, यथा,  1. धेले भर की अक्ल नहीं है 2. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए 3. पाई-पाई का हिसाब चुकाना होगा 4. कौड़ियों के भाव बेच दिया 5. इसे बेचकर तो फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी इन वाक्यों एवं मुहावरों को पढ़कर, सुनकर हम सभी के दैनिक जीवन में मुद्राओं की अहमियत भी पता चलता है। समय के साथ इन वाक्यों और मुहावरों के अर्थ हमें समझ आने लगे। यही मुद्राएं जीवन को अलंकृत भी करतीं हैं । आइए इन मुद्राओं का अर्थ समझते हैं - मुद्रा (करेंसी ) का मूल्य  इस प्रकार था- 3 फूटी कौड़ी- 1 कौड़ी 10 कौड़ी - 1 दमड़ी 02 दमड़ी - 1.5 पाई 1.5 पाई - 1 धैला 2 धैला - 1 पैसा 3 पैसे - 1 टका 2 टका - 1 आना 2 आने- दोअन्नी 4 आने - चवन्नी 8 आने - अठन्नी 16 आने - 1 रुपया आइए डिजिटल  रुपया के दौर में इस पुराने दौर को याद कर गौरवान्वित हों😊 #साकेत_विचार #मु

प्रकृति की उपासना और पर्यावरण संरक्षण पर आधारित है छठ

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कुछ और बातें  🚩 कौन हैं छठी मैया जी ?🚩 लोगों में यह एक आम जिज्ञासा यह रही है कि भगवान सूर्य की उपासना के लोक महापर्व छठ में सूर्य के साथ जिन छठी मैया की अथाह शक्तियों के गीत गाए जाते हैं, वे कौन हैं। ज्यादातर लोग इन्हें शास्त्र की नहीं, लोक मानस की उपज मानते हैं। लेकिन हमारे पुराणों में यत्र-तत्र इन देवी के संकेत जरूर खोजे जा सकते हैं।  पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य और षष्ठी अथवा छठी का संबंध भाई और बहन का है। षष्ठी एक मातृका शक्ति हैं जिनकी पहली पूजा स्वयं सूर्य ने की थी। 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार प्रकृति ने अपनी अथाह शक्तियों को कई अंशों में विभाजित कर  रखा है। प्रकृति के छठे अंश को 'देवसेना' कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी है।  देवसेना या षष्ठी श्रेष्ठ मातृका व समस्त लोकों के बालक-बालिकाओं की रक्षिका हैं। इनका एक नाम कात्यायनी भी  है जिनकी पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती रही है। पुराणों में निःसंतान राजा प्रियंवद द्वारा इन्हीं देवी षष्ठी का व्रत करने की कथा है। छठी षष्ठी का अपभ्रंश हो सकता है।  आज भी छठव्रती छठी मैया से संतानों

शहीद अशफ़ाक उल्ला खां को नमन

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 आज भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी शहीद अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान की जयंती है।  उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल जैसे परम मित्र के साथ जेल में फॉंसी की प्रतीक्षा करते अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान को अपनी ज़िंदगी की अंतिम रात तक बस इस बात का अफ़सोस रहा कि मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने हेतु मैं एक ही बार पैदा क्यों हो सका।  उनके कुछ विचार- ‘कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।’ ‘दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं, खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।’ चंद और पंक्तियाँ, जिसे मैंने भाव दिया है- बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं " माँ, मैं मातृभूमि की रक्षा के लिए फिर जन्म लूँगा,  फिर जन्म लेकर भारतमाता को स्वतंत्र कराऊँगा। माँ, मेरा भी मन है पर अपने मजहब की  रीतियों से बंध जाता हूँ, सुना है माँ मुसलमान पूर्नजन्म नहीं लेते अल्लाह से यहीं दुआ है मुझे स्वर्ग के बदले  भारत माँ के सपूत के रूप में  एक और जन्म ही दे दें…. यही जज़्बा भारत को भारत बनाता है।  जय हिंद! जय भारत!! #साकेत_विचार #अशफ़ाक

भारतीय वायु सेना दिवस

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 राष्ट्रीय भाव बोध, संस्कृति,एकता, वैज्ञानिक सोच, अनुशासन, देशहित और राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रसार में भारतीय सशस्त्र सेनाओं  का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।  साथ ही सैन्य संस्थानों की राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार -प्रसार में भी निर्विवाद भूमिका रही है। भारतीय वायु सेना की  90वीं वर्षगाँठ पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!   आज भारतीय वायु सेना का गीत याद आ रहा है...  गीत का भाव देखें ....  'देश पुकारे जब सबको दुख- सुख बाँटे एक समान नीली वर्दी वालों का दल  बढ़ता आगे सीना ......' जय हिंद ! जय हिंदी!! #long_live_IAF #साकेत_विचार

मुंशी प्रेमचन्द की पुण्यतिथि पर स्मरण

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  हिंदी भाषा और साहित्य के रत्न तथा उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की  पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिशः नमन। 💐🙏💐 मुंशी प्रेमचंद की लेखनी आम आदमी, गाँव, समाज, व्यवस्था को समर्पित रहीं।  व्यवस्था, गाँव-देहात की सच्चाई तथा मानवीय मूल्यों का उन्होंने जिस प्रकार से अपनी रचनाओं में सजीव चित्रण किया, वह आज भी प्रासंगिक है। सामाजिक सरोकारों पर उनकी लेखनी विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर और अनुकरणीय है। आज से 100 साल पहले भी जो उन्होंने लिखा, वह आज भी प्रासंगिक है। उनकी हर रचना ऐसे लगती है जैसे आज की कहानी है। नमक का दारोगा, बड़े घर की बेटी, गोदान, गबन... हर रचना जाग्रत।  जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और न ही विचार और न ही प्रगतिशीलता का कोई मॉडल ही उनके समक्ष था। हिन्दी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जी का कद काफी ऊंचा है और उनका लेखन कार्य एक ऐसी विरासत है, जिसके बिना हिन्दी के विकास को अधूरा ही माना जाएगा। भारतीय साहित्य का बहुत-सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा, चाहे वह दलित साहित्य हो या फिर नारी साहित्य, उसकी जड़ें प्रेमचंद के साहित्य में दिख

दशहरा और प्रभु श्रीराम

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  आज दशहरा है।  हर बार की तरह इस बार भी ‘घनघोर स्मार्ट’ काफी कुछ  रावण के समर्थन में  लिख रहे है।  इस प्रकार की कुत्सित सोच के वाले लोगों के लिए रावण, महिषासुर आदर्श हो सकते हैं। अब तो महात्मा गांधी भी इन लोगों के लिए खलनायक है।  दशहरा स्मरण कराता है जन जन के आदर्श श्रीराम की मर्यादा को समझने का। श्रीराम को समझना इतना आसान नहीं, क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम सब नहीं बन सकते। इसीलिए वे ईश्वर कहलाए। राम वास्तव में अपेक्षा, लोभ, स्वार्थ, काम, क्रोध, सांसारिक मोह से परे कर्तव्य और मर्यादा से बंधे पुरुषोत्तम है। उनकी संपूर्ण गाथा मानव के 'मानव' बनने का इतिहास है। #रामगाथा राम !  आपकी गाथा,  आपकी पताका,  आपका शौर्य,  आपका मान,  हमारा अभिमान  आपका सम्मान  हमारा मान  आपकी मर्यादा  हमारा अभिमान  भारत की शान राम  आपकी गाथा किताबों से परे हमारे  संस्कार-संस्कृति से बंधे है। राम  आप हमारे भावों से  आत्मा से  कैसे विलुप्त हो गए? क्या आपका विलुप्त होना  भारतीयता  का  संस्कार का  संस्कृति का मर्यादा का  नष्ट होना नहीं ? राम आप तो चक्रवर्ती  सम्राट थे। आपने दशानन को विजित किया वहीं दशानन जो संसार

पर्व-त्यौहार पर ख़रीद और छोटे दुकानदार

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  इस त्यौहारी मौसम में इनसे खरीदना न भूलें।  ये भारत के असंगठित क्षेत्र की रीढ़ हैं जिनसे भारत के असंख्य परिवारों में मुस्कुराहट आती है, रोटियाँ मिलती है। यहीं भारत को मंदी में भी भारत बनाते है। यही उद्यमशीलता है। जिसे एमएसई क्षेत्र कहते है ।  भारत की बुनियाद इनसे भी है।  आइए इनकी मेहनत को सलाम करें और इनसे ख़रीदारी करें, मोल-तोल भी करें, पर इनकी हंसी के साथ।  आप सभी को दशहरा, दीपावली, छठ की हार्दिक शुभकामना!  #साकेत_विचार #एमएसएमई #MSME

हास्य व्यंग्य कलाकार राजु श्रीवास्तव

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  अपने अभिनय की हँसी से सबको हँसाने वाले 58 वर्षीय चर्चित हास्य कलाकार, अभिनेता राजू श्रीवास्तव का दिल्ली के अखिल भारतीय आर्यूविज्ञान संस्थान में आज निधन हो गया।  कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव पिछले करीब डेढ़ महीने से अस्पताल में भर्ती थे।  बीते १० अगस्त को वे दिल का दौरा पड़ने के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे।  लोकप्रिय हास्य कलाकार और अभिनेता राजू श्रीवास्तव का सफर बेहद संघर्ष भरा था, कभी मुंबई में ऑटो चलाकर वे गुजारा करते थे। गजोधर भैया के नाम से प्रसिद्ध  कानपुर निवासी राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था। उनका जन्म 25 दिसंबर 1963 को हुआ था।  उन्होंने अपने अभिनय से सभी को खूब हंसाया। राजू श्रीवास्तव ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमायी थीं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजावदी पार्टी ने उन्हें कानपुर सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए टिकट लौटा दिया था कि उन्हें पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है।  बाद में उन्होंने उसी साल मार्च 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।  राजू श्रीवास्तव, 1980 के दशक के अंत

हिंदी में शोध और अन्य विचारणीय पहलू

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हिंदी अपने ही बलबूते आम आदमी की ज़ुबान होने के बल पर आगे बढ़ रही है। मेरा यह व्यक्तिगत रूप से मानना है कि हिंदी का सबसे बड़ा अहित इस सोच ने किया है कि यह उत्तर भारत की भाषा है, जबकि इसे उत्तर-दक्षिण के खाँचे से इतर राष्ट्रभाषा के रूप में सशक्त करने की जिम्मेदारी व्यवस्था को लेनी थी। जिसे व्यवस्था ने अंग्रेज़ीयत के कारण नहीं सँभाली और अपने पाप को छुपाने की ख़ातिर हिंदी को भारतीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी बना डाला। अनेक कुतर्क गढ़े ग़ए। स्वभाषा के बिना हर कोई भाषाविद् और तकनीकीविद् होने लगा। पत्रकारिता और सिनेमा जगत ने भी हिंदी को इवेंट की भाषा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ा-बहुत विकास हुआ भी तो हिंदी की आंतरिक शक्ति के बल पर। दूसरी बात हिंदी में जुगाड़ू और चाटुकार लोगों का जमघट बना रहा। अकादमिक जगत में यह बात क़ायम रही कि हिंदी के विकास का ठेका हिंदी के अध्यापकों ने लिया है। वैसे ही जैसे राजभाषा की प्रगति की जिम्मेदारी केवल राजभाषा सेवियों की है पर तकनीक, प्रबंधन या अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग तो केवल अंग्रेज़ी के लिए ही बने हुए है। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों में अंग्रेज़ी के व्याप्त मो

आज के समय में विनोबा भावे की प्रासंगिकता

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  भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे की 127 वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन!  आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँह माँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे है। भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती जा रही है। अब हर पैसे वाला ज़मींदार है। इस होड़ के कारण भूदान आंदोलन के जनक आचार्य विनोबा भावे ज़्यादा याद आ रहे हैं।  आज के हिंदुस्तान में ज्ञानेश उपाध्याय की विशेष प्रस्तुति को पढ़ा। सच में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की विरासतें कमज़ोर पड़ रही है।  आलेख का एक छोटा-सा अंश हमारा शरीर स्वयं ही प्रेम और लगाव की अद्भुत मिसाल है। अंगों में परस्पर अनुपम प्रेम होता है। सब अंग एक दूजे की सेवा में लगे होते हैं ताकि शरीर सुखी रहे ।  सोते हुए में भी एक अंग को दूसरे की फ़िक्र होती है ।  शरीर पर कहीं भी मच्छर बैठ जाए तब तत्काल हाथ उठ जाता है काश! समाज भी शरीर-सा हो जाए, जिसमें सभी को सभी की फिक्र हो लेकिन ऐसा होता नहीं है इसलिए दुख दर्द की अवस्था कही न कही बची-बनी रहती है।  जब प्रेम

राही मासूम रज़ा और हिंदी

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यह सुखद संयोग है कि हिंदी एवं उर्दू के महान कवि,संवाद लेखक, उपन्यासकार एवं महाकाव्य ‘महाभारत’पर आधारित ऐतिहासिक टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ की पटकथा लिखकर अपनी लेखनी को अमर करने वाले डा. राही मासूम रजा की जयंती से देश के संपूर्ण सरकारी  कार्यालयों में हिंदी माह/पखवाड़ा-2022 की शुरूआत हो रही है।  हम सभी ने जगजीत सिंह की आवाज में अमर गीत ‘हम तो है परदेश में, देश में निकला होगा चांद‘ को जरूर सुना होगा।इस मधुर गीत को कलमबद्ध करने वाले डा. राही मासूम रजा ही थे।   इस प्रसिद्ध गीत का भाव बोध हमारी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से प्रेम पर आधारित है।  हम सभी अपनी मिट्टी, भाषा, संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है।बिना इसके मानव का अस्तित्व नहीं है।  हिंदी केवल एक भाषा-मात्र नहीं है वरन्न यह सभी भारतीय भाषाओं, बोलियों का क्रियोलाइजेशन है।  इससे सभी भारतीय प्रेम करते है।  यह राजनीति, संस्कृति, समाज,लोक की भाषा है।इसीलिए यह लोकभाषा, संस्कृति की भाषा, संपर्क की भाषा, राष्ट्रभाषा से होते हुए राजभाषा के पद पर आसीन हुई और अब संचार की भाषा से तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित होकर विश्व भाषा के रूप में उ

पाकिस्तानी जहर

 आज फिर पाकिस्तान से सनातन धर्म के विरुद्ध घृणा की खबरें आईं। यह कितना अफ़सोसजनक बात है कि सुदूर इसरायल-फिलीस्तीन संघर्ष पर आंसू बहाने वाले कथित मानवाधिकारवादी, बुद्धिजीवी अपने ही भारत से 75 साल पहले इस्लाम के नाम पर बंटे पाकिस्तान और भारतीय जवानों के खून से बने बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के नंगे नाच पर मौन रहते हैं ? इनके सहिष्णु  विचार कहाँ चले जाते है? अविभाजित भारत की माटी पर हिंदुओं के कत्ले-आम पर इन सहिष्णु सौदागरों का खून क्यों नही खौलता? आज यह स्थापित सत्य है कि भारत को विभाजित करने का सबसे बड़ा हथियार सनातन धर्म, पंथ, हिंदुओं को जाति, वर्ण, भेद, भाषा  के आधार पर बांट दो। प्रारंभ बौद्ध, जैन, सिक्ख से होकर दलित तक । साथ ही मुस्लिम, ईसाई में से ज्यादातर जो इसी मिट्टी से उपजे है उन्हें भी यहाँ की परंपरा, भाषा, संस्कृति, संस्कार से काट दो। उन्हें इस प्रकार रंग दो की वे सांस्कृतिक रूप से अरब, तुर्क, रोम से प्रभावित हों। अंग्रेजी एवं अंग्रेजों ने यही रणनीति अपनाई । अब हम इस साजिश को अपनी नियति एवं मूढ़ता  की वजह से इतिहास का अंग मानकर स्वीकार कर रहे है।  भारत तब तक एक रहेगा जब तक इस

द हिंदू के कुछ अंश हिंदी में

 प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘द हिंदू’ के कुछ भाग अब हिंदी में…. हिंदी की शक्ति इसके बोलने, समझने वालों की संख्या में निहित है। बाज़ार इसका लाभ अपने कारोबार प्रसार के लिए उठाता रहता है। आज का समाज अपनी ज़रूरतों के लिए हिंदी से लाभ  उठाता है। राजनीति, कला, फ़िल्म, संगीत भी हिंदी का प्रयोग अपने असीम लाभ के लिए ही करती है। आज़ादी के बाद स्वार्थ की यह प्रवृत्ति हावी रही। यही कारण रहा कि हिंदी में एक राष्ट्रीय समाचार पत्र का अभाव अखिल भारतीय स्तर पर खटकता रहा। हिंदी संपर्क, संवाद संबंधी ज़रूरतों की वजह से पूरे देश में व्यवहार्य रही, पर पठन-पाठन में सिमटती रही। एक दशक पूर्व तक बंगाल, उड़ीसा, असम, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना आदि तक में हिंदी की पत्रिकाओं की बिक्री  होती थीं, पर समय, राजनीति और गुणवत्ता के अभाव में इनकी बिक्री कम होती रही। सोशल मीडिया, मोबाइल ने भी इसे कमजोर किया। हिंदी में एक राष्ट्रीय अख़बार का अभाव बना रहा। अब कल की ही बात लें जब मैंने १५ अगस्त की खबरें देखने  के लिए चैनल खोला तो दक्षिण के राज्यों का कवरेज नाममात्र का था, आज़ादी के बाद राष्ट्रभाषा हिंदी के समाचार पात्रों में इस राष

फादर कामिल बुल्के को नमन

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म आज फ़ादर कामिल बुल्के (1 सितंबर 1909 - 17 अगस्त 1982) की पुण्यतिथि है। बेल्जियम के मूल निवासी  बुल्के  भारत मिशनरी के काम से आए थे। परंतु भारत प्रेम ने उन्हें मृत्युपर्यंत हिंदी, तुलसी और वाल्मीकि के भक्त बना दिया।  उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। अकादमिक लिहाज़ से कामिल बुल्के की सबसे मशहूर कृति अँग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश (1968) मानी जाती है।  कामिल बुल्के को भारत सरकार ने सन् 1951 में भारत की नागरिकता प्रदान कर दी। 1934 में ये भारत की ओर निकल गए और नवंबर 1936 में मुंबई पहुँचे। दार्जिलिंग में एक संक्षिप्त प्रवास के बाद, उन्होंने गुमला में पाँच साल तक गणित पढ़ाया। वहीं पर हिंदी, ब्रजभाषा और अवधी सीखी। उन्होंने 1938 में सीतागढ़, हज़ारीबाग में पंडित बदरीदत्त शास्त्री से हिंदी और संस्कृत सीखी। उन्होंने कहा था, "1935 में मैं जब भारत पहुँचा, मुझे यह देखकर आश्चर्य और दुख हुआ, मैंने यह जाना कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से अनजान थे और इंग्लिश में बोलना गर्व की बात समझते थे। मैंने अपने कर्तव्य पर विचार क

राम मंदिर का शिलान्यास और 05 अगस्त का महत्व

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 05 अगस्त, हम सभी के लिए बड़ा ही ऐतिहासिक दिवस हैं । जब श्रीरामचन्द्र अपनी जन्मभूमि से विस्थापित होकर पुनः स्थायी रूप से विराजमान हुए। यह कोई साधारण घटना नहीं रही।  इस परिघटना की भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक पुनरोदय में अभूतपूर्व भूमिका रहेगी।  श्रीराम भारतवासियों के लिए आराध्य मात्र नहीं वरन् हमारी जीवन शैली के प्रतीक हैं । राम जैसे नायक जिस समाज के समक्ष उपस्थित हो उसे दूसरों के समक्ष देखने की क्या आवश्यकता?  श्रीराम भारतीय संस्कृति के प्रणेता हैं । चाहे सुख हो या दुःख श्री राम सभी में प्रेरणा देते हैं । चूँकि वे स्वयं इन परिस्थितियों का सामना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। प्रभु श्रीराम की जीवन लीला के पथ में मर्यादा ही सबसे बड़ा पाथेय रहा। पितृ, मातृ, पति, मित्र, शासक, प्रशासक, नीतिज्ञ आदि के प्रत्येक धर्मपालन में वे सबसे बड़े आदर्श हैं ।  राम हमारी विरासत हैं, उमंग हैं, संस्कृति एवं संस्कार हैं । जिनसे भारतीय सभ्यता-संस्कृति पुष्पपित-पल्लवित हुई। राम को जानने-समझने के लिए यह जरूरी है कि हम रामायण एवं रामचरितमानस दोनों ग्रंथों के जीवन मूल्यों को समझें । समाज जिन आदर्शों एवं मूल्

मैथिलीशरण गुप्त

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 जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।  वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।  हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में भी जाना जाता है ऐसे महान साहित्यकार “मैथिलीशरण गुप्त” (3 अगस्त 1886 - 12 दिसंबर 1964) जी का जन्म दिवस है ।  गुप्त जी ने हिन्दी साहित्य की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज की अमूल्य सेवा की, उन्होंने अपने काव्य में भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति, समाज तथा राजनीति के विषय में नये प्रतिमानों को प्रतिष्ठित किया।  साकेत इनकी महान रचना है जिसमे नारियों की दुरावस्था  के प्रति सहानुभूति झलकती है – अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।  आँचल में है दूध और आँखों में पानी । हिंदी साहित्य ही नही अपितु देश के ऐसे महान कवि को नमन! जिसके काव्य में देश के सभी वर्गों की उपस्थिति की झलक मिलती है...  नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को।

राजर्षि पुरूषोतम टण्डन दास

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 हिंदी के अनन्य सेवक व लेखक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, तेजस्वी वक्ता, समाज सुधारक और महान स्वतंत्रता सेनानी 'भारतरत्न' पुरुषोत्तम दास टंडन जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन !   राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी नेता, समाज सुधारक, कर्मठ पत्रकार तथा तेजस्वी वक्ता थे। उनका जन्म 1 अगस्त, 1882 को इलाहबाद में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय से पूर्ण कर विधि स्नातक की योग्यता हासिल की और 1906 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे, उसी वर्ष इलाहबाद के लिए कांग्रेस के भी प्रतिनिधि चुने गए। 1919 से हुए जालियाँवाला बाग हत्याकांड के लिए बनी कांग्रेस समिति से वे सम्बद्ध रहे, और फिर 1920-21 के असहयोग आंदोलन तथा गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने उच्च न्यायालय की प्रैक्टिस छोड़ दी तथा एक योद्धा की भूमिका का निर्वाह किया। 1937 में चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिला, इसका पूरा श्रेय टंडन जी को गया, 1937 से 1950 तक वे उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रवक्ता रहे और वहाँ के पहले मंत्रिमंडल में विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) चुने गए। वे 1

मुंशी प्रेमचंद

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उत्कृष्ट साहित्य की रचना तभी होगी, जब प्रतिभा संपन्न लोग तपस्या की भावना लेकर साहित्य क्षेत्र में आएंगे।-प्रेमचंद।  आज उनकी जयंती है। प्रेमचंदजी का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव  में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई।  13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था। सन 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे शिक्षक नियुक्त हो गए, और 1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और शिक्षा विभाग में इन्स्पेक्टर नियुक्त हुए। वे आर्य समाज से प्रभावित थे और विधवा-विवाह का समर्थन करते थे। उन्होंने स्वयं भी बाल-विधवा शिवरानी देवी से 1906 में दूसरा विवाह किया। 1910 में उनकी रचना- सोज़े वतन, जो धनपत राय के नाम से लिखी गयी थी, को जनता को भड़काने वाला कह कर, उसकी सारी प्रतियाँ सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयी थीं, और साथ ही आगे ना लिखने की हिदायत दी गयी थी।  तब

धैर्य

 एक शिक्षक ने क्लास के सभी बच्चों को एक एक खूबसूरत टॉफ़ी दी और फिर कहा..."बच्चो ! आप सब को दस मिनट तक अपनी टॉफ़ी नहीं खानी है और ये कहकर वो क्लास रूम से बाहर चले गए।" कुछ पल के लिए क्लास में सन्नाटा छाया था, हर बच्चा उसके सामने पड़ी टॉफ़ी को देख रहा था और हर गुज़रते पल के साथ खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था। दस मिनट पूरे हुए और वो शिक्षक क्लास रूम में आ गए। समीक्षा की। पूरे वर्ग में सात बच्चे थे, जिनकी टाफियाँ जस की तस थी,जबकि बाकी के सभी बच्चे टॉफ़ी खाकर उसके रंग और स्वाद पर टिप्पणी कर रहे थे।  शिक्षक ने चुपके से इन सात बच्चों के नाम को अपनी डायरी में दर्ज कर लिए और नोट करने के बाद पढ़ाना शुरू किया। इस शिक्षक का नाम प्रोफेसर वाल्टर मशाल था। कुछ वर्षों के बाद प्रोफेसर वाल्टर ने अपनी वही डायरी खोली और सात बच्चों के नाम निकाल कर उनके बारे में खोज बीन शुरू किया।  काफ़ी मेहनत के बाद , उन्हें पता चला कि सातों बच्चों ने अपने जीवन में कई सफलताओं को हासिल किया है और अपनी अपनी फील्ड में सबसे सफल है। प्रोफेसर वाल्टर ने अपने बाकी वर्ग के छात्रों की भी समीक्षा की और यह पता चला कि उनमें से

स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

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  स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ नारे के प्रणेता महान स्वाधीनता सेनानी बाल गंगाधर तिलक जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन! अहमदनगर में हुई लोकमान्य तिलक की ऐतिहासिक बैठक   31 मई और 1 जून 1916 को लोकमान्य तिलक अहमनगर शहर में थे।  वह होमरूल आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अहमदनगर आए थे।  31 मई को तिलक ने कपड़ा बाजार क्षेत्र में ऐतिहासिक बैठक की।   अहमदनगर की इस सभा में लोकमान्य तिलक ने "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करूंगा" के नारे लगाए।  ब्रिटिश सरकार ने इन सभी भाषणों को आपत्तिजनक घोषित किया और लोकमान्य के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर किया था।

बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस और आगे

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‘बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस’ पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना ! बैंकर राष्ट्र के आर्थिक समुन्नति की महती जिम्मेवारी निभाता है।  19 जुलाई 1969 ही वह दिन था, जो भारतीय वित्त, बैंकिंग व वाणिज्यिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।  जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वंचितों के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक ही झटके में 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया। उस समय यह कदम पूँजीपतियों की शक्तियों के संकेंद्रण को रोकने, विभिन्न क्षेत्रों में बैंक निधियों के उपयोग में विविधता लाने और उत्पादक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय बचत को जुटाने के उद्देश्य से किया गया था।  बाद में 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिससे यह 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों में बदल गया। जिसका व्यापक असर राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के रूप में दिखा। बाद में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु कई वित्तीय सुधार किए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रहा वंचितों के लिए जन-धन योजना, मुद्रा योजना और पेंशन और बीमा योजना। इन योजनाओं को ल

श्रम का महत्व-अब्राहम लिंकन

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  अमेरिका के अमेरिका #बनने की एक छोटी सी कहानी  अब्राहम_लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची! सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला #भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा- मिस्टर_लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन_लिंकन_किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे!  उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी #आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई #शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते #मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की #मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर #गर्व है! सीनेट में उनके ये #तर्कवादी भाषण से #सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इ

आदतें संस्कार का पता बता देती हैं।

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आदतें संस्कार का पता बता देती हैं... एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी मांगने के लिए आया। उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई,  तो वो बोला,  "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ। राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया।  चंद दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा,  उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।" राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा.. उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।  राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?"  "उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं।😊 राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए।  और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।  चंद दिनो बाद , राजा ने उस से रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तर