शहीद अशफ़ाक उल्ला खां को नमन


 आज भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी शहीद अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान की जयंती है।  उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल जैसे परम मित्र के साथ जेल में फॉंसी की प्रतीक्षा करते अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान को अपनी ज़िंदगी की अंतिम रात तक बस इस बात का अफ़सोस रहा कि मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने हेतु मैं एक ही बार पैदा क्यों हो सका।  उनके कुछ विचार-

‘कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।’

‘दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं, खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।’


चंद और पंक्तियाँ, जिसे मैंने भाव दिया है-


बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं " माँ, मैं मातृभूमि की रक्षा के लिए फिर जन्म लूँगा, 

फिर जन्म लेकर भारतमाता को स्वतंत्र कराऊँगा।

माँ, मेरा भी मन है पर अपने मजहब की 

रीतियों से बंध जाता हूँ,

सुना है माँ मुसलमान पूर्नजन्म नहीं लेते

अल्लाह से यहीं दुआ है

मुझे स्वर्ग के बदले 

भारत माँ के सपूत के रूप में 

एक और जन्म ही दे दें….


यही जज़्बा भारत को भारत बनाता है। 


जय हिंद! जय भारत!!

#साकेत_विचार

#अशफ़ाक

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