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Showing posts from July, 2022

मुंशी प्रेमचंद

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उत्कृष्ट साहित्य की रचना तभी होगी, जब प्रतिभा संपन्न लोग तपस्या की भावना लेकर साहित्य क्षेत्र में आएंगे।-प्रेमचंद।  आज उनकी जयंती है। प्रेमचंदजी का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव  में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई।  13 साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था। सन 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे शिक्षक नियुक्त हो गए, और 1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और शिक्षा विभाग में इन्स्पेक्टर नियुक्त हुए। वे आर्य समाज से प्रभावित थे और विधवा-विवाह का समर्थन करते थे। उन्होंने स्वयं भी बाल-विधवा शिवरानी देवी से 1906 में दूसरा विवाह किया। 1910 में उनकी रचना- सोज़े वतन, जो धनपत राय के नाम से लिखी गयी थी, को जनता को भड़काने वाला कह कर, उसकी सारी प्रतियाँ सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयी थीं, और साथ ही आगे ना लिखने की हिदायत दी गयी थी।  तब

धैर्य

 एक शिक्षक ने क्लास के सभी बच्चों को एक एक खूबसूरत टॉफ़ी दी और फिर कहा..."बच्चो ! आप सब को दस मिनट तक अपनी टॉफ़ी नहीं खानी है और ये कहकर वो क्लास रूम से बाहर चले गए।" कुछ पल के लिए क्लास में सन्नाटा छाया था, हर बच्चा उसके सामने पड़ी टॉफ़ी को देख रहा था और हर गुज़रते पल के साथ खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था। दस मिनट पूरे हुए और वो शिक्षक क्लास रूम में आ गए। समीक्षा की। पूरे वर्ग में सात बच्चे थे, जिनकी टाफियाँ जस की तस थी,जबकि बाकी के सभी बच्चे टॉफ़ी खाकर उसके रंग और स्वाद पर टिप्पणी कर रहे थे।  शिक्षक ने चुपके से इन सात बच्चों के नाम को अपनी डायरी में दर्ज कर लिए और नोट करने के बाद पढ़ाना शुरू किया। इस शिक्षक का नाम प्रोफेसर वाल्टर मशाल था। कुछ वर्षों के बाद प्रोफेसर वाल्टर ने अपनी वही डायरी खोली और सात बच्चों के नाम निकाल कर उनके बारे में खोज बीन शुरू किया।  काफ़ी मेहनत के बाद , उन्हें पता चला कि सातों बच्चों ने अपने जीवन में कई सफलताओं को हासिल किया है और अपनी अपनी फील्ड में सबसे सफल है। प्रोफेसर वाल्टर ने अपने बाकी वर्ग के छात्रों की भी समीक्षा की और यह पता चला कि उनमें से

स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

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  स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ नारे के प्रणेता महान स्वाधीनता सेनानी बाल गंगाधर तिलक जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन! अहमदनगर में हुई लोकमान्य तिलक की ऐतिहासिक बैठक   31 मई और 1 जून 1916 को लोकमान्य तिलक अहमनगर शहर में थे।  वह होमरूल आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अहमदनगर आए थे।  31 मई को तिलक ने कपड़ा बाजार क्षेत्र में ऐतिहासिक बैठक की।   अहमदनगर की इस सभा में लोकमान्य तिलक ने "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करूंगा" के नारे लगाए।  ब्रिटिश सरकार ने इन सभी भाषणों को आपत्तिजनक घोषित किया और लोकमान्य के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर किया था।

बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस और आगे

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‘बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस’ पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना ! बैंकर राष्ट्र के आर्थिक समुन्नति की महती जिम्मेवारी निभाता है।  19 जुलाई 1969 ही वह दिन था, जो भारतीय वित्त, बैंकिंग व वाणिज्यिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।  जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वंचितों के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक ही झटके में 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया। उस समय यह कदम पूँजीपतियों की शक्तियों के संकेंद्रण को रोकने, विभिन्न क्षेत्रों में बैंक निधियों के उपयोग में विविधता लाने और उत्पादक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय बचत को जुटाने के उद्देश्य से किया गया था।  बाद में 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिससे यह 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों में बदल गया। जिसका व्यापक असर राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के रूप में दिखा। बाद में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु कई वित्तीय सुधार किए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रहा वंचितों के लिए जन-धन योजना, मुद्रा योजना और पेंशन और बीमा योजना। इन योजनाओं को ल

श्रम का महत्व-अब्राहम लिंकन

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  अमेरिका के अमेरिका #बनने की एक छोटी सी कहानी  अब्राहम_लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची! सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला #भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा- मिस्टर_लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन_लिंकन_किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे!  उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी #आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई #शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते #मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की #मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर #गर्व है! सीनेट में उनके ये #तर्कवादी भाषण से #सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इ

आदतें संस्कार का पता बता देती हैं।

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आदतें संस्कार का पता बता देती हैं... एक राजा के दरबार मे एक अजनबी इंसान नौकरी मांगने के लिए आया। उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई,  तो वो बोला,  "मैं आदमी हो चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ। राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया।  चंद दिनों बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा,  उसने कहा, "नस्ली नही  हैं ।" राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा.. उसने बताया, घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।  राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?"  "उसने कहा "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं।😊 राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और अंडे बतौर इनाम भिजवा दिए।  और उसे रानी के महल में तैनात कर दिया।  चंद दिनो बाद , राजा ने उस से रानी के बारे में राय मांगी, उसने कहा, "तौर तर

गौहर जान

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  एक जमाने में अमीरों की महफ़िल में गौहर जान का जलवा हुआ करता था । गौहर कलकत्ता की प्रसिद्ध गायिका और नर्तकी थी । 1905 में ग्रामोफोन पर गाना रेकॉर्ड करवाने वाली वह भारत की प्रथम कलाकार भी थीं । उस जमाने की वह एकमात्र करोड़पति कलाकार थीं । उनकी फीस साधारण आदमियों के वश की बात नहीं थी । 13 साल की उम्र में वह रेप का शिकार हो गयी थीं ।  गौहर के जलवों के बारे में सुनकर मध्य प्रदेश के दतिया रियासत के महाराज भवानी सिंह बहादुर ने उसको दतिया आने का न्योता भेजा। गौहर का उस समय बहुत नाम था इसलिए वह मनचाहा दाम मिलने पर भी हर जगह गाने के लिए नहीं जाती थी। दरभंगा, मैसूर, हैदराबाद, कश्मीर के रियासतों में गौहर अपना प्रदर्शन दे चुकी थी। सब बड़ी रियासतें थीं और दतिया एक छोटी सी रियासत। उसको अपने सम्मान के अनुसार नहीं लगा ऐसे छोटे रियासत में जाना, उसने मना कर दिया। महाराज को गौहर का न कहना इतना बुरा लगा कि उन्होंने इस बात को आन पर ले लिया। बंगाल के ब्रिटिश गवर्नर उनके दोस्त थे। उनके रसूख़ का इस्तेमाम करते हुए उन्होंने गौहर जान के ऊपर दबाव बनाया कि दतिया में युवराज के राज्याभिषेक का आयोजन है, उसमें उनको ज