बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस और आगे


‘बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस’ पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामना ! बैंकर राष्ट्र के आर्थिक समुन्नति की महती जिम्मेवारी निभाता है। 

19 जुलाई 1969 ही वह दिन था, जो भारतीय वित्त, बैंकिंग व वाणिज्यिक इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।  जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने वंचितों के आर्थिक हितों की सुरक्षा एवं आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक ही झटके में 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कदम उठाया। उस समय यह कदम पूँजीपतियों की शक्तियों के संकेंद्रण को रोकने, विभिन्न क्षेत्रों में बैंक निधियों के उपयोग में विविधता लाने और उत्पादक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय बचत को जुटाने के उद्देश्य से किया गया था।  बाद में 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिससे यह 20 राष्ट्रीयकृत बैंकों में बदल गया। जिसका व्यापक असर राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के रूप में दिखा। बाद में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सशक्त अर्थव्यवस्था हेतु कई वित्तीय सुधार किए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रहा वंचितों के लिए जन-धन योजना, मुद्रा योजना और पेंशन और बीमा योजना। इन योजनाओं को लागू करने में बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। विमुद्रीकरण में बैंक कर्मियों ने आर्थिक सिपाही की भाँति देश के आर्थिक मोर्चे पर अपनी ज़ोरदार भूमिका निभाई। वर्ष 2020 में बैंकों का समामेलन वृद्धिशील अर्थव्यवस्था को देखते हुए किया गया। 

इस दीर्घ सफ़र में बैंकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को समाज के वंचित व मध्यमवर्गीय लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार की गई ऋण व अग्रिम योजनाओं के साथ संचालित किया, साथ ही साथ औद्योगिक क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक ऋण दिया।  वृहत सामाजिक उद्देश्यों के लिए किसानों, लघु उद्योगों, कारीगरों और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए बैंकिंग प्रणाली में ऋण की आपूर्ति सामाजिक रूप से वांछनीय वर्गों पर केंद्रित थी।  बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने देश के सभी क्षेत्रों में बैंकों का विस्तार सुनिश्चित किया। विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में।  वित्तीय समावेशन ने समाज में वंचितों एवं निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के आर्थिक समुन्नति के द्वार खोले। मोदी सरकार ने बैंकिंग को ख़ास से आम बनाया। 

समय के साथ भारतीय बैंकिंग उद्योग ने प्रतिस्पर्धा, दक्षता, उत्पादकता के नए क्षितिज में प्रवेश किया है।  उदारीकरण ने बैंकों के समक्ष चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ दोनों के राह खोले। जैसे, जन धन ने सामान्य लोगों तक बैंकिंग तो विमुद्रीकरण ने डिजिटल बैंकिंग की दिशा में महत्वपूर्ण दिशा दिखाई। 

वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था की चुनौतियों ने बैंकों के देशी स्वरूप को बदलने को बदलने में योगदान दिया है। अब बैंकिंग ऋण-जमा व ग्राहक सेवा व सम्बंध से अधिक - अनुपालन, तीव्र लाभ, उत्पाद बिक्री व मानक पर ज़ोर आधारित होती जा रही है।  जिससे सरकारी बैंक  दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे है। इससे बैंकों की मूल पहचान खतरे में है जिसे समझना आवश्यक है। 

बैंकिंग में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव कोर बैंकिंग के बाद  भी नित नए प्रौद्योगिकी नवाचार जारी रहे। अब बैंक,  इंटरनेट बैंकिंग, डिजिटल बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग के साथ इस सहस्राब्दी वाली डिजिटल पीढ़ी के साथ कदम मिला रहे है। 

आज पारंपरिक बैंकिंग के समक्ष नए युग की फिन टेक कंपनियों द्वारा लाई गई सेवाओं के वितरण में उच्च गति वाली मोबाइल सेवाओं और प्रौद्योगिकी नवाचार के आगमन के साथ बैंकिंग को बेहद प्रतिस्पर्धी और "अस्तित्व के साथ संघर्ष " वाली स्थिति में ला खड़ा किया है। 

अब नीति आयोग एवं अन्य अर्थव्यवस्था के जानकारों द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 5 दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद, यह विचार अपनाने पर जोर दिया जा रहा है कि बैंकों का सरकारी स्वामित्व वर्तमान परिदृश्य में उपयुक्त नहीं हो सकता है।  "सरकार को बैंकिंग व्यवसाय  में नहीं होना चाहिए"  आदि-आदि। ऐसी सोच उदारीकरण के बाद सभी सरकारों का रहा है। चाहे वह वामपन्थ समर्थित ही क्यों न रहा हो। आए दिन मीडिया में कुछ सरकारी बैंकों के निजीकरण की खबरें आती रहती हैं। यह कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करता है। सरकार सुधार करें पर निजीकरण अंतिम विकल्प न हो।  प्रतिस्पर्धा का विकल्प या अंतिम विकल्प भी निजीकरण कदापि हो भी नहीं सकता । 

भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सरकार और भारतीय रिज़र्व  बैंक द्वारा शुरू किए गए आगामी परिवर्तन चाहे जो भी हों, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 1969, 1980 तथा 2014 से 2020 तक  बैंकों के राष्ट्रीयकरण के परिणामस्वरूप ग्रामीण आबादी के जीवन स्तर में विभिन्न स्तरों पर व्यापक सुधार परिलक्षित हुआ है।

आइये हम सभी बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस के अवसर पर शपथ लें कि बैंकों के राष्ट्रीयकृत स्वरूप की रक्षा करेंगे और आम जनमानस को बेहतर सेवा प्रदान करने के साथ भी यह भी प्रेरित करेंगे कि वे भी राष्ट्रीयकृत बैंकों को राष्ट्रीय गौरव और राष्ट्रीय अस्मिता का  मान देंगे। 

इस अवसर पर चंद लाइनें बैंकर्स एवं समर्पित ग्राहकों के लिए-

'लाख बाधाएँ आएं 

मगर

हम नित कर्म पथ पर अग्रसर रहेंगे,

‘कर्म ही जीवन’ है

इस जीवन उद्देश्य को हमने अपनाया है

अर्थ क्षेत्र के योद्धा है हम

राष्ट्र के सामाजिक पथ पर हमने अर्थ-क्रांति की ठानी है,

लाख बाधाएँ आएं मगर

हम देशहित में आगे बढ़ते रहेंगे!

©डॉ. साकेत सहाय

लेखक व शिक्षाविद्

संप्रति पंजाब नैशनल बैंक में मुख्य प्रबंधक(राजभाषा) हैं। 

संपर्क-hindisewi@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

भारतीय मानक ब्यूरो (बी आई एस) में व्याख्यान

लाल बहादुर शास्त्री - कर्त्तव्यनिष्ठ और सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी

प्रयागराज कुंभ हादसा-एक अनहोनी थी, जो घट गई।