गौहर जान

 

एक जमाने में अमीरों की महफ़िल में गौहर जान का जलवा हुआ करता था । गौहर कलकत्ता की प्रसिद्ध गायिका और नर्तकी थी । 1905 में ग्रामोफोन पर गाना रेकॉर्ड करवाने वाली वह भारत की प्रथम कलाकार भी थीं । उस जमाने की वह एकमात्र करोड़पति कलाकार थीं । उनकी फीस साधारण आदमियों के वश की बात नहीं थी । 13 साल की उम्र में वह रेप का शिकार हो गयी थीं । 

गौहर के जलवों के बारे में सुनकर मध्य प्रदेश के दतिया रियासत के महाराज भवानी सिंह बहादुर ने उसको दतिया आने का न्योता भेजा। गौहर का उस समय बहुत नाम था इसलिए वह मनचाहा दाम मिलने पर भी हर जगह गाने के लिए नहीं जाती थी। दरभंगा, मैसूर, हैदराबाद, कश्मीर के रियासतों में गौहर अपना प्रदर्शन दे चुकी थी। सब बड़ी रियासतें थीं और दतिया एक छोटी सी रियासत। उसको अपने सम्मान के अनुसार नहीं लगा ऐसे छोटे रियासत में जाना, उसने मना कर दिया। महाराज को गौहर का न कहना इतना बुरा लगा कि उन्होंने इस बात को आन पर ले लिया। बंगाल के ब्रिटिश गवर्नर उनके दोस्त थे। उनके रसूख़ का इस्तेमाम करते हुए उन्होंने गौहर जान के ऊपर दबाव बनाया कि दतिया में युवराज के राज्याभिषेक का आयोजन है, उसमें उनको जाकर गाना था। अंग्रेज़ साहब को गौहर मना नहीं कर सकती थी। लेकिन दतिया जाने के लिए उसने अपनी शर्तें रखी। उसने कहा कि उसके लिए एक स्पेशल ट्रेन भेजी जाए। महाराज मान गए और उन्होंने 11 कोच का ट्रेन गौहर जान के लिए भिजवाया। गौहर के साथ 111 लोग गए, जिनमें दस धोबी, चार नाई, बीस ख़िदमतगार, पाँच घोड़े, पाँच साईस, पाँच दासियाँ तथा दुअन्नी और चवन्नी नामक दो शिष्याएँ थीं। इसी से उसके रुतबे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 

गौहर पहुँची तो उसने पाया कि दतिया को राज्याभिषेक के लिए ख़ूब सजाया गया था। उसको एक विशाल बंगले में ठहराया गया और दतिया में रहने के दौरान 2000 रुपए प्रतिदिन का उसका मानदेय तय किया गया। राज्याभिषेक के दिन एक के बाद एक जाने माने गायक-गायिकाओं का प्रदर्शन हुआ। वहाँ जब बड़ी संख्या में अलग अलग रियासतों के राजाओं-राजकुमारों को गौहर ने देखा तो वह समझ गई कि दतिया कोई छोटी रियासत नहीं थी। उसने ग़लत समझ लिया था। ख़ैर, उस दिन उसके गाने का मौक़ा ही नहीं आया। गौहर हैरान। उसको लगा कि महाराज शायद उसको अकेले में सुनना चाहते होंगे, लेकिन कई दिन हो गए रोज़ उसके लिए महंगे तोहफ़े आते, और मानदेय भी समय पर मिल जाता। लेकिन गाने का मौक़ा नहीं आया। जब उसने महाराज के पास संदेश भिजवाया तो महाराज ने मिलने से तो मना कर दिया लेकिन उसका मानदेय दोगुना कर दिया। कई सप्ताह गुजर गए। गौहर बेचैन होने लगी।

एक दिन जब सुबह के समय महाराज घोड़े पर सवार होकर सैर के लिए जाने वाले थे तो गौहर ने जाकर उनके पाँव पकड़ लिए और कहा कि मुझे माफ़ कर दीजिए महाराज, मैं अभिमान में आ गई थी। गौहर ने कहा कि एक कलाकार के लिए इससे ज़्यादा अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता कि उसको बुलाया तो जाए लेकिन अपनी कला के प्रदर्शन का मौक़ा न दिया जाए। मुझे पैसे नहीं चाहिए। मुझे जिस काम के लिए यहाँ बुलाया गया है उसको दिखाने का मौक़ा दिया। 

तब जाकर गौहर जान को दतिया में गाने का मौक़ा मिला। और उसके बाद छह महीने तक वह दतिया रियासत में रही और अपनी बेहतरीन गायकी का प्रदर्शन करती रही। 

गौहर की तस्वीर माचिस के डिब्बी के ऊपर छपती थी और उसके नाम के पिक्चर पोस्टकार्ड बिकते थे। उस दौर में कहा जाता था- 'गौहर के बिना महफ़िल जैसे शौहर के बिना दुल्हन।'

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