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Showing posts from May, 2021

यादें जीवन की

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 यादें !  कभी न भूलने वाली ।  वक्त के महत्व को बताने वाली  ।  समय पीछे जा नहीं सकता  इसे महसूस कराने वाली  जीवन नश्वर है इसे  याद दिलाने वाली  अपने-आप को महसूस कराने वाली यादें हैं तो हम और आप है यादें है तो जीवन हैं  यादें  बीते पल की आज के कठिन पल की जो सहेजेंगीं हमारा भविष्य भी किसी के लिए यादें  जीने का ज़रिया है उसके सपनों को पूरा करने का उसके लिए सब कुछ खोने का  उसकी यादों में सब कुछ पाने का कुछ यादें देती हैं ऐसे पल जिसे याद करके कभी  आप मुस्कुराएंगे भी और किसी को याद करके  रोएंगे भी पर रोना-हँसना ही तो है जीवन  अतः यादों को संजो कर रखिए! बहुत काम आएंगी यादें है तो  आपकी आँखों में ख़ुशी  और ग़म के पल भी.... @डाॅ साकेत सहाय प्रस्तुत तस्वीर शहीद मेजर विभूति ढौंढियाल की पत्नी निकिता कौल ढौंढियाल के सैन्य कमीशन के समय की है। जब शहीद की पत्नी से एसएसबी साक्षात्कार के समय यह प्रश्न पूछा गया यह सुंदर जवाब मिला।  प्रस्तुत कविता समर्पित हैं शहीदों के त्याग और निष्ठा को🙏 #साकेत_विचार https://m.economictimes.com/news/defence/inspiring-pulwama-martyr-major-vibhuti-shankar-dhoundiyals-wife-

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता और हिंदी पर विमर्श

  https://twitter.com/swarajyahindi/status/1398935710846001156?s=21

हिंदी पत्रकारिता दिवस

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हिंदी  पत्रकारिता दिवस  आज ही के दिन, आज से 195 वर्ष पूर्व  30 मई, 1826 को ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता यानी आधुनिक भाषाई वर्गीकरण के हिसाब से ‘ग' क्षेत्र से राष्ट्रभाषा हिंदी के पहले समाचार पत्र  'उदन्त मार्तंड की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल ने की थी।  तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है।  हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों  की आवाज बनकर उभरी है। हालांकि इसके पक्ष एवं विपक्ष में विमर्श किए जा सकते हैं । मैंने अपने शोध प्रबंध ‘भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और हिंदी -१९९० के दशक के बाद: एक समीक्षात्मक अध्ययन तथा पुस्तक- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है। कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य,  संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार, संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हिंदी ने एक नयी राष्ट्रीय संस्कृति को जन्म दिया है। जिसकी परिकल्पना हमारे राष्ट्र निर्माताओं

जीवन शिक्षण

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 👌🏿  *एक अदभुत कथा.*  👌🏿 एक आदमी ने एक पक्षी को, एक बूढ़े पक्षी को एक जंगल में पकड़ लिया था।  👌🏿 उस बूढ़े पक्षी ने कहा: मैं किसी भी तो काम का नहीं हूं, देह मेरी जीर्ण-जर्जर हो गई, जीवन मेरा समाप्त होने के करीब है, न मैं गीत गा सकता हूं, न मेरी वाणी में मधुरता है, मुझे पकड़ कर करोगे भी क्या? लेकिन यदि तुम मुझे छोड़ने को राजी हो जाओ, तो मैं जीवन के संबंध में तीन सूत्र तुम्हें बता सकता हूं। 👌🏿 उस आदमी ने कहा: भरोसा क्या कि मैं तुम्हें छोड़ दूं और तुम सूत्र बताओ या न बताओ? 👌🏿 उस पक्षी ने कहा: पहला सूत्र मैं तुम्हारे हाथ में ही तुम्हें बता दूंगा। और अगर तुम्हें सौदा करने जैसा लगे, तो तुम मुझे छोड़ देना। दूसरा सूत्र मैं वृक्ष के ऊपर बैठ कर बता दूंगा। और तीसरा सूत्र तो, जब मैं आकाश में ऊपर उड़ जाऊंगा तभी बता सकता हूं। 👌🏿 बूढ़ा पक्षी था, सच ही उसकी आवाज में कोई मधुरता न थी, वह बाजार में बेचा भी नहीं जा सकता था। और उसके दिन भी समाप्तप्राय थे, वह ज्यादा दिन बचने को भी न था। उसे पकड़ रखने की कोई जरूरत भी न थी। उस शिकारी ने उस पक्षी को कहा: ठीक, शर्त स्वीकार है, तुम पहली सलाह, पहली एडव

दक्षिण में हिंदी गाने के रंग

इस वीडियो से दक्षिण में हिंदी फ़िल्म और गानों की लोकप्रियता का सहज अंदाज़ा लगाय जा सकता हैं। इस रोचक वीडियो का आनंद लें और कलाकार की कला को सलाम करें। 

जीवन शिक्षण हेतु एक प्रेरक वीडियो

अपने ब्लॉग के सम्मानित पाठकों के लिए सोशल मीडिया से प्राप्त जीवन शिक्षण आधारित एक प्रेरक वीडियो साभार साझा कर रहा हूँ।  सादर साकेत सहाय

पंडित नेहरू

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 अध्यात्म, संस्कृति, संस्कार, ज्ञान की भाव भूमि भारतवर्ष जो पिछले २०० सालों से अधिक की औपनिवेशिक शासन व्यवस्था से अपना सब कुछ भूल-सा गया था, उसे स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में दिशा देने वाले वो भी तब जब बंटवारे के दंश से उपजे पाकिस्तानी जहर से देश कराह रहा था, गरीबी, अशिक्षा, विकराल स्थिति में थी,   इन विपरीत परिस्थितियों में देश को प्रगति पथ पर ले जाने वाले, सशक्त आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू को उनकी पुण्य तिथि पर शत-शत नमन !  सादर ©डॉ साकेत सहाय

भारतीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा

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 खबर है कि अब अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE ) ने इंजीनियरिंग की डिग्री सात भारतीय भाषाओं में पढ़ने-पढ़ाने की इजाजत दी है। ये भाषाएँ हैं : हिंदी, मराठी, गुजराती, बंगाली, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम। यह इसी २०२०-२१ के सत्र से लागू होगा। यह स्वागत योग्य कदम है। आशंकाएं तो होंगी लेकिन कभी पहला कदम तो उठाना ही पड़ेगा। वास्तव में यदि भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाना है तो हमें प्राथमिंक कक्षाओं के साथ ही, उच्च शिक्षा पर भी ध्यान देना होगा। लोग उच्च शिक्षा को लक्ष्य करके ही स्कूली शिक्षा में भाषा माध्यम चुनते हैं। अगर अपनी भाषा में पढ़कर तकनीकी डिग्रियां उच्च शिक्षा में मिलेंगी और उनकी उपयोगिता सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरी या प्रतियोगिताओं में भी होंगी, तो लोग स्कूली शिक्षा में भी अपनी भाषा का चयन करने लगेंगे। अभी तो यह सोचते हैं कि हिंदी माध्यम से पढ़ा भी लिया तो क्या फायदा? आगे तो अंग्रेजी माध्यम में ही जाना पड़ेगा। इस कदम को यदि गुणात्मक रूप से लागू किया गया तो देश के गरीब , वंचित एवं मध्यमवर्गीय बच्चों की प्रतिभा, रचनात्मकता सामने आएगी। संविधान का आदर करते हुए सभी इसमें सहयोग कर

फ़ारसी-भाषा में संस्कृत-भाषा की प्रशस्ति

 *फ़ारसी-भाषा में संस्कृत-भाषा की प्रशस्ति*  / شتایش زبان  سانسکریت  در زبان پارسی (हिन्दी अनुवाद संलग्न) दिल बे बाला मी रसद अज़ नर्दबाने-संस्कृत ज़िन्दगी गुल मी गुशायद बा बयाने-संस्कृत دل به بالا می رسد از نردبان سانسکریت زندگی گُل می گُشاید با بیان سانسکریت शम्से व्यासो कालिदासो वालमीको गुप्तपाद मी दरख़्शद दरमियाने आसमाने-संस्कृत شمسِ ویاس و کلِداس و والمیک و گُپتپاد می درخشد درمیان آسمان سانسکریت वाज़ेगाने-तो हमे पाइन्दे ओ जावीद बाद  सद सलामे गर्म बर हर आशिकाने संस्कृत واژه گانِ تو همه پاینده و جاوید باد  صد سلامِ گرم بر هر عاشقان سانسکریت दर जहाने शेरो दानिश अज़ कमालश रा मपुर्स ता सुरैया तीर मी आरद कमाने-संस्कृत  در جهانِ شعر و دانش از کمالش را مپرس تا ثریا تیر می آرد کمانِ سانسکریت हर ज़बाने हिन्द बा ईन् चश्मे अश दम मी ज़नद मी चकद आबे-हयातज़ वाज़ेगाने-संस्कृत هر زبانِ هند با این چشمه اش دم می زند می چکد آب حیات از واژه گان سانسکریت जान् मुअत्तर मी शवद दिल बागबानी मी कुनद मी परद ख़ुश्बूये गुल-हा अज़ दहाने-संस्कृत جان معطر می شود  دل باغبانی می کند می پرد خوشبو ی گلها از دهان سانسکر

कक्षा एक की कविता पर बवाल और विचार

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 राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी ) की कक्षा-१ पाठ्यपुस्तक में दी गई बाल कविता  ‘आम की टोकरी’ पर सोशल मीडिया के विविध मंचों पर घमासान मचा हुआ है वह भी उस कविता पर जो एक दशक से भी अधिक समय से पढ़ाई जा रही है। आपत्ति कविता में आए आंचलिक शब्द प्रयोग के प्रति हैं। बहुत सारे समाज के जागरुक एवं प्रबुद्ध लोग विचारधारा के अनुसार इस कविता की व्याख्या कर रहे हैं। जो निहायत ही अनुचित हैं। मेरे विचार से उदारीकरण के बाद का भारतीय समाज हर चीज में झंडाबरदार बनता नज़र आता है।  मेरा बेटा अभी कक्षा-२ में है। पिछले साल मैंने स्वयं इस कविता क़ो पढ़ा। इसमें मेरे समझ से असली समस्या गुणात्मकता की कमी को माना जा सकता है। परंतु इतनी छोटी आयु के बच्चे को आप रोचक तरीक़े से ही पढ़ा सकते हैं। हालाँकि अंग्रेज़ी में भी इसी प्रकार की कविता है। इस पोस्ट के साथ संलग्न अंग्रेज़ी कविता पर भी इसी प्रकार की आपत्ति व्यक्त करने वाले कर सकते हैं। वास्तव में इन दोनों कविताओं को रोचक होने के कारण शामिल किया गया है। शेष प्रश्न अपनी जगह हैं। पर शब्द की नकारात्मक व्याख्या ग़लत सोच का परिणाम है। अब उस सोच का

भारतीय नौसेना की शान - आईएनएस राजपूत

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अलविदा *राजपूत*!  कभी तुमने भारतीय नौसेना को नई शक्ति दी थी। आज विदा हो गए। प्रकृति का नियम है -कोई नश्वर नहीं। जो आया है वो जाएगा। इसी कड़ी में आज भारतीय नौसेना का यह अदद *नगीना* इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, पर भारतवासियों के दिलों मे, यादों में सदा अजर-अमर रहेगा।    चार दशक से अधिक समय तक आईएनएस राजपूत ने देश की सेवा की। इस दौरान इसने नौसेना के कई अहम् अभियानों में हिस्सा लिया।  भारतीय नौसेना का पहला विध्वंसक पोत आइएनएस राजपूत को 41 साल की सेवा के बाद नौसेना की सेवा से आज शुक्रवार को मुक्त किया गया। (वीडियो देखें। । कोविड-19 को देखते हुए नौसेना डाकयार्ड, विशाखापत्तनम में इसे बेहद सादे समारोह में विदाई दी गई।  आईएनएस राजपूत मूल रूप से एक रूसी पोत था, जिसका नाम नादेजनी था। इसका अर्थ है ‘उम्मीद’। यह एंटी सबमरीन, एंटी एयरक्राफ्ट हमले में सक्षम है।  भारतीय नौसेना का यह पहला पोत था,  जिसे थल सेना (राजपूत रेजीमेंट) से संबद्ध किया गया।  इसने नौसेना की पश्चिमी और पूर्वी दोनों कमान के बेड़े में अपनी सेवाएं दी।  या जार्जिया में भारत की नौसेना में शामिल हुआ, कैप्टन गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी इ

भाषा, साहित्य और सम्मान

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आज के अमृत विचार में मेरे फ़ेसबुक वाल से   http://epaper.amritvichar.com/clip/11426

नभ: स्पृशं दीप्तम!

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अक्सर हम भारत सरकार के विविध कार्यालयों के ध्येय वाक्य को देखते है। ध्येय वाक्य उस संस्था की प्रतिनिधि ध्वनि होती है। आइए जानते है आज भारतीय वायु सेना के ध्येय वाक्य- नभ: स्पृशं दीप्तम!  के बारे में -  नभ: स्पृशं  दीप्तम!   अर्थात् गर्व के साथ आकाश की ऊँचाइयों को छूने का संकल्प।  भारतीय वायु सेना के ध्येय वाक्य का मूल स्रोत -  गीता अध्याय-11 श्लोक-24 / Gita Chapter-11 Verse-24 नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् । दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।।24।। हे विष्णो[1] ! आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाये हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्त:करण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ ।।24।। Lord, seeing your form reaching the heavens, effulgent, multi-coloured, having its mouth wide open and possessing large flaming eyes, I, with my inmost self frightened, have lost self-control  साभार- भारतकोश संकल्पना- डॉ साकेत सहाय #साकेत_विचार

भारत की बिटिया - पहली महिला फ़्लाइट टेस्ट इंजीनियर

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 नभ स्पृशम् दीप्तम!  भारत के आधुनिक इतिहास में स्त्री सशक्तिकरण का स्वर्णिम दिन हम सभी के लिए यह बेहद गर्व, प्रसन्नता एवं सम्मान का क्षण हैं।  भारतीय वायु सेना की स्क्वाड्रन लीडर आश्रिता वी ओलेटी, देश की *पहली महिला उड़ान परीक्षण इंजीनियर (Female  Flight Test Engineer. ) बनी।   आश्रिता ने प्रतिष्ठित वायु सेना टेस्ट पायलट स्कूल से स्नातक किया है,  उल्लेखनीय है कि वायु सेना का यह टेस्ट पायलट स्कूल पूरी दुनिया के सात ऐसे विश्वविद्यालयों में शामिल है जहाँ यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है।  वर्ष 1973 में प्रारंभ हुए इस पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले केवल 275 स्नातक ही हुए हैं और आश्रिता ओलेटी भारतीय वायु सेना के इतिहास में पहली ऐसी महिला अधिकारी बन गई हैं, जिन्होंने कड़े प्रशिक्षण के बाद इस पाठ्यक्रम को पूरा किया है। उड़ान परीक्षण इंजीनियर प्रयोक्ता संगठनों में शामिल करने के लिए नए विमानों एवं प्रणालियों का मूल्यांकन करते हैं।  भारत में उपयोग किए जाने से पूर्व अधिकांश नए विमान प्रकारों और महत्वपूर्ण हवाई प्रणालियों में एएसटीई का प्रमाणन लिया जाना अनिवार्य है। स्क्वाड्रन

भाषा, साहित्य और सम्मान विशेष - सुमित्रानंदन पंत

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आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त जी की जयंती है। उनके कृतित्व को शत-शत नमन!  कभी अमिताभ बच्चन के पिता, हिंदी के प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर ही अपने पुत्र का नाम  'अमिताभ' रखा, जिसका अर्थ है कभी न मिटने वाली आभा। आज हम सभी इस आभा से परिचित हैं।  हिंदी एवं भारतीय भाषा प्रेमियों को भी अपने भाषा चिंतकों, साहित्यकारों के आभा एवं कार्य को सम्मान देना होगा। उसका प्रसार करना होगा। यह आभा है - भारतीय भाषाओं की शाब्दिक एकरूपता की। वास्तव में सभी भारतीय भाषाएं आपस में घुली-मिली हुई है। क्योंकि संस्कृत भाषा सभी की मूल स्रोत है।  साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण  है - देश की भाषाई एवं सांस्कृतिक अभिन्नता की।  जिसके कारण शब्द और भाव लगभग एक समान होते है। यही कारण है कि ब्रिटिश पराधीनता के समय इस महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व को देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक एकता के लिए महात्मा गांधी से लेकर सभी राष्ट्रनायकों ने हिंदी के प्रयोग व इसे अपनाने पर जोर दिया था। इस शाब्दिक एकरूपता रूपी आभा के प्रसार के लिए देवनागरी लिपि के प्रसार की महती आवश्यकता है। कभी आचार्य  

खबरों में पुस्तक

डॉ. साकेत सहाय,को ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ के लिए ‘साहित्य श्री कृति सम्मान’ https://hindimedia.in/dr-saket-sahay-sahitya-shri-kriti-samman-for-electronic-media-bhashakic-rites-and-culture/

लेखक साकेत सहाय को मिला साहित्य श्री कृति सम्मान

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  https://delhibulletin.in/the-union-ministry-of-culture-awarded-the-electronic-media-book-written-by-saket-sahai-one-and-a-half-lakh-cash-and-souvenirs-received-in-the-award/

पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भाषिक संस्कार एवं संस्कृति साहित्य श्री कृति सम्मान से सम्मानित

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 देश के जाने-माने लेखक डॉ. साकेत सहाय,  को उनकी प्रथम पुस्तक ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति’ के लिए दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 का ‘साहित्य श्री कृति सम्मान’ प्राप्त हुआ है। जिसके तहत उन्हें स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र एवं ₹१,५०,००० (१ लाख ५० हज़ार रुपए मात्र) प्रदान किए जाएँगे। विधिवत सम्मान समारोह कोरोना काल के बाद आयोजित किया जाएगा। लेखक ने इस पुरस्कार को माता-पिता, गुरूजनों, परिजनों, मित्रों, स्नेही जनों को समर्पित किया।  लेखक भाषा-समाज एवं संस्कृति के प्रति समर्पित एवं प्रतिबद्ध लेखन प्रेम के लिए स्वयं के भीतर विद्यमान दृढ़-संकल्प का श्रेय अपने स्वर्गीय पिता को देते है। वे कहते हैं यह संकल्प शक्ति ही है कि पहले सैन्य सेवा और अब बैंकिंग सेवाओं में रहते हुए भी वे लेखन कर पाते हैं।  डॉ साकेत सहाय कहते हैं व्यक्ति की सफलता-असफलता  में माता-पिता, गुरूजनों का बहुत बड़ा योगदान होता है और साहित्य लेखन तो समाज के सहयोग के बिना असंभव है। पत्रकारिता, मीडिया भी समाज से अलग हो नहीं सकता। जो पत्रकारिता समाज, भाषा, परम्परा एवं संस्कृति

अली मदार्न खान

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 इस विपरीत समय में #भारतीय_साहित्य और #संस्कृति की सौहार्दता का शानदार उदाहरण  साभार -  #शिव_स्तुति - मूल कवि - #अली_मर्दांन_खान  हिंदी अनुवाद - डॉ. शशि शेखर तोषखानी।  (साभार-कश्मीर संदेश, मार्च, २०१३)  साभार नागरी संगम अंक -अक्तूबर-दिसंबर, २०२० #साकेत_विचार

सड़के खाली है कोरोना काल पर कविता

 पिछले साल कोरोना के शुरुआती दौर में राष्ट्र कवि दिनकर जी की पुण्य तिथि पर लिखी थीं, जो आज भी   प्रासंगिक हैं |   दिनकर जी वास्तव  में भारतवर्ष की महान संस्कृति, परंपरा, इतिहास के समन्वय पथ के अनुगामी सारथी थे |  दिनकर जी युग चारण कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।  कविता के बारे में वे कहते है - अच्छी कविता की पहचान यह है कि उसे पढ़कर मनुष्य के ह्रदय में एक प्रकार की बेचैनी या जागृति स्फुरित होती है और उसका मन भीतर-ही-भीतर किसी यात्रा या पर्यटन पर निकाल पड़ता है।  यह आवश्यक नहीं है कि यह यात्रा या पर्यटन उन्हीं अर्थों तक सीमित रहे, जो कविता के शब्दों में सन्निहित हैं।  असली वस्तु शब्दों के अर्थ नहीं, संकेत हैं और संकेत तो शब्द दूर तक दिया करते हैं | उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें नमन करते हुए प्रस्तुत है मेरी कविता-  आप सभी की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी ।   सड़कें खाली हैं ………………… सड़कें खाली हैं ..  सूनी हैं …  महानगर और नगर की  शहर और कस्बों की  गाँवों के पगडंडियों की । पर  बत्तियाँ जल रही हैं  कीट, पतंगें, पशु-पक्षी  सब दिख रहे हैं  नहीं दिख रहा तो बस  आदमी  जो मानव से दानव बनने चला

मातृ दिवस और वृद्धाश्रम

 माँ, पिता और गुरु  इस धरा पर भगवान के  भेजे गए  दूत हैं।   आज हम सभी जो कुछ भी है उसमें  इन तीनों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।  आज मातृ दिवस पर माँ को नमन्। वैसे तो भारतीय संस्कृति में माँ, पिता और गुरु के लिए कोई विशेष दिन नहीं होता क्योंकि इस धरा पर हम सभी का अस्तित्व ही इन तीनों से है और हम भारतीय तो माँ-बाप दोनों को अभिन्न मानते है।  हर दिन इन्हीं का है।  हमारे शास्त्रों में कहा गया है।  श्लोक- पद्मपुराण सृष्टिखंड (47/11) में कहा गया है- सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।  मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।  अर्थात् माता सर्वतीर्थमयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं अत: हम सभी को सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता। आइए दिखावे से इतर माँ-बाप का सम्मान करें। उन्हें प्रेम और अधिकार दें। अन्यथा मातृ दिवस का नाटक बंद करें।  इ

शिक्षा और संस्कार

 जब शिक्षा का मतलब केवल रोजगार और पैसा कमाना बन जाए तो इसी प्रकार के दिन देखने पड़ेंगे। इसलिए बच्चों को संस्कार और अपनी माटी से प्रेम करने की शिक्षा देना बेहद जरूरी है। वर्ना यह एक संकेत हैं। इस प्रकार के सामाजिक पतन हेतु विद्यालयों से नैतिक शिक्षा की समाप्ति एक बहुत बड़ा कारण है।  अब हमारे लिए न संस्कार का अर्थ है, न परंपरा का, न संस्कृति का।  जिस समाज में इंसान से अधिक महत्वपूर्ण उसके पद, पैसा और रसूख़ का हो वहां इस प्रकार के दिन देखने ही पड़ सकते है।  पढ़-लिख के इंजीनियर, डाक्टर, जज, कलक्टर होना शायद सबसे आसान काम है पर ज्ञानवान होना ज़्यादा कठिन।  कोई पुत्र अपने पिता का शव न ले, अपने पद का दुरुपयोग करके दूसरे को इस हेतु अधिकृत करे इससे घोर निंदनीय कृत्य और क्या हो सकता है। मृत्यु और महामारी से हर कोई भयभीत है। पर अपने संस्कार? इस कुकृत्य से मानवता शर्मिंदा है।  #संस्कार #साकेत_विचार

पुस्तक संस्कृति

उत्तर आधुनिक भारतीय किताबें खरीदकर तो कम ही पढ़ते हैं इसीलिए कवर पेज देखकर खुश हो लेते हैं और वो विदेशी हो तो क्या कहना?  जिनकी हिंदी कमजोर है वो भी इतिहास का बखान हिंदी में करके किसी की चिंदी-चिंदी कर डालते हैं और जिनकी अंग्रेजी खराब है वो भी अंग्रेजी देखकर खुश हो लेते हैं । सांस्कृतिक विकृति का परिणाम है जन-सामान्य का पुस्तकों से दूर जाना, जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है #पुस्तक_संस्कृति #साकेत_विचार 

जीवन का अनुभव

   http://epaper.amritvichar.com/media/2021-02/magazine.pdf महाराजा दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था और वह था श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिया गया श्राप.... दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण कुमार के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था... (कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है) श्रवण कुमार के पिता ने ये श्राप दिया था कि ''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा.....'' दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा.... (तभी तो उसके शोक में मैं तड़प-तड़प के मरूँगा) यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया.... ऐसी ही एक घटना वानरराज सुग्रीव के साथ भी हुई.... वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे.... तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे

कविवर सोहनलाल द्विवेदी

 आज ही के दिन राष्ट्रकवि पं सोहनलाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) का अवतरण हुआ था। आपने अपनी प्रेरक रचनाओं से हिंदी को एक नया आकाश दिया। आपकी इन पंक्तियों ने देश के करोड़ों युवाओं को प्रेरित किया हैं ।  'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती  कोशिश करने वालों की हार नहीं होती' उनकी एक और रचना- श्रद्धेय सोहनलाल द्विवेदी जी ने राष्ट्र की नयी पीढ़ी के निर्माण का साहित्यसृजन किया ।उनकी रचनाएँ सामयिक और सार्वकालिक महत्व की है ।गाँधीजी से संबंधित भी उनकी कविताएँ है ,उनमें ..युग पुरुष..उल्लेखनीय है,1956 में पढ़ी उसकी कुछ पंक्तियाँ पढ़िये.. चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े.. कोटि पग उसी  ओर। जिसके सिर पर निज.. धरा हाथ उसकेसिर रक्षक.. कोटि हाथ। जिस पर निज मस्तक झुकादिया.. झुक गये उसी पर .. कोटि माथ।।उनकी कृतियाँ हमेशा पठनीय और प्रसंगिक रहेंगी ।सादर नमन आपकी रचनाएँ ओज और चेतना से भरपूर थीं।आपने 'वीर तुम बढ़े चलो' जैसी बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं हैं। वर्ष 1969 में भारत सरकार ने आपके कृतित्व को पद्मश्री से सम्मानित किया। #समृद्धभारत #समृद्धहिंदी

हसरत मोहानी और इंक़लाब ज़िंदाबाद

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 अवाम् को 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा देने वाले शायर हसरत मोहानी की पुण्यतिथि पर नमन🌷 हसरत मोहानी का पूरा नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन तख़ल्लुस हसरत था। उनका जन्म मोहान, ज़िला उन्नाव में 1875 को हुआ था।  उनके पिता का नाम सय्यद अज़हर हुसैन था। हसरत मोहानी ने आरंभिक ज्ञानार्जन घर पर ही प्राप्त किया और वर्ष 1903 में अलीगढ़ से स्नातक किया। प्रारंभ ही से उन्हें शायरी का शौक़ था और वे अपना कलाम तसनीम लखनवी को दिखाने लगे। वर्ष 1903 में अलीगढ़ से एक पत्रिका उर्दू-ए- मुअल्ला संपादन किया। जो ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ था। 1904 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। 1905 में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक द्वारा चलाए गए स्वदेशी आंदोलन में भी भाग लिया। 1907 में उन्होंने अपनी पत्रिका में "मिस्त्र में ब्रितानियों की पालिसी" के नाम से लेख छापी। जो ब्रिटिश सरकार को बहुत खली और हसरत मोहानी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। । 1919 के खिलाफत आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया। 1921 में उन्होंने "इन्कलाब ज़िदांबाद" का नारा अपने कलम से लिख

आचार्य रघुवीर और हिंदी

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 आचार्य रघुवीर जी की पुण्यतिथि पर शत-शत नमन💐 आज उनकी आत्मा रो रही होगी हमारी स्वभाषा के प्रति हीनता-बोध के कारण😒  डॉ रघुवीर जीवनपर्यन्त अंग्रेजी के एकाधिकार के विरुद्ध सभी भारतीय भाषाओं के संयुक्त मोर्चे के निर्माण की दिशा में कार्यरत रहे।  यह अलग प्रसंग है कि आज भी उनका यह स्वप्न अधूरा है और ब्रिटिशों से मात्र रक्त आधार से अलग अंग्रेज़ीप्रेमी भारतीय का आज भी अनैतिक राज चालू है। यह घोर पीड़ा का विषय है कि आज़ादी मिलने के ७४ वर्ष के भीतर ही जो हिंदी संपूर्ण देश में एकमेव रूप से स्वीकार्य थीं और देश की प्रमुख भाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुई थी, उसे हमारे सत्ता-प्रधानों ने आज उत्तर भारत की भाषा के रूप में  उपस्थित करने का कुत्सित प्रयास किया है। आचार्य रघुवीर महान भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्‌, राजनीतिक नेता तथा भारतीय धरोहर के मनीषी थे। उन्होंने कोशकार, शब्दशास्त्री के रूप में एक तरफ़ जहां कोशों की रचना कर राष्ट्रभाषा हिंदी का शब्दभण्डार संपन्न किया, तो वहीं दूसरी तरफ़ एशिया और पूरी दुनियामें फैली भारतीय संस्कृति की खोज कर उसका संग्रह एवं संरक्षण किया। उन्होने 4 लाख शब्दों वाला अंग्रेज