भारतीय नौसेना की शान - आईएनएस राजपूत

अलविदा *राजपूत*!  कभी तुमने भारतीय नौसेना को नई शक्ति दी थी। आज विदा हो गए। प्रकृति का नियम है -कोई नश्वर नहीं। जो आया है वो जाएगा। इसी कड़ी में आज भारतीय नौसेना का यह अदद *नगीना* इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, पर भारतवासियों के दिलों मे, यादों में सदा अजर-अमर रहेगा।   चार दशक से अधिक समय तक आईएनएस राजपूत ने देश की सेवा की। इस दौरान इसने नौसेना के कई अहम् अभियानों में हिस्सा लिया। 
भारतीय नौसेना का पहला विध्वंसक पोत आइएनएस राजपूत को 41 साल की सेवा के बाद नौसेना की सेवा से आज शुक्रवार को मुक्त किया गया। (वीडियो देखें। । कोविड-19 को देखते हुए नौसेना डाकयार्ड, विशाखापत्तनम में इसे बेहद सादे समारोह में विदाई दी गई। आईएनएस राजपूत मूल रूप से एक रूसी पोत था, जिसका नाम नादेजनी था। इसका अर्थ है ‘उम्मीद’। यह एंटी सबमरीन, एंटी एयरक्राफ्ट हमले में सक्षम है। 


भारतीय नौसेना का यह पहला पोत था,  जिसे थल सेना (राजपूत रेजीमेंट) से संबद्ध किया गया।  इसने नौसेना की पश्चिमी और पूर्वी दोनों कमान के बेड़े में अपनी सेवाएं दी।  या जार्जिया में भारत की नौसेना में शामिल हुआ, कैप्टन गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी इसके पहले कमान अधिकारी (कमांडिंग आफिसर)  थे।  राजपूत श्रेणी के कुल पांच विध्वंसक भारतीय नौसेना की सेवा में रहे, जिनमें से तीन सेवामुक्त हो चुके हैं।  आइएनएस राजपूत के रिटायर होने के बाद राजपूत श्रेणी में आइएनएस-राणा डी-52 व आइएनएस-रणजीत-डी53 ही अब सक्रिय रह गए है। 
आईएनएस राजपूत ने सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  भारतीय शांतिरक्षक बलों की सहायता के लिए श्रीलंका में चलाया गया ऑपरेशन कैक्टस में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।  इसके अतिरिक्त मालदीव में बंधकों की समस्या के समाधान के लिए चलाया गया ऑपरेशन पवन, श्रीलंका के तट पर पैट्रोलिंग ड्यूटी, ऑपरेशन क्रॉसनेस्ट, लक्षद्वीप की तरफ किया गया अभियान भी महत्वपूर्ण रहे। 


आईएनएस राजपूत ने ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के लिए एक परीक्षण बेड़े के रूप में भी कार्य किया। दो पी-20 एम से एकल लांचर (पोर्ट और स्टारबोर्ड) को दो बॉक्सिंग लांचरों से बदल दिया गया था, प्रत्येक में दो ब्रह्मोस सेल थे। पृथ्वी-३ मिसाइल के एक नए संस्करण का मार्च 2007 में राजपूत से ही परीक्षण किया गया था। यह ज़मीन के लक्ष्यों पर हमला करने के साथ टास्कफोर्स या वाहक एस्कॉर्ट के रूप में एन्टी-विमान और एंटी-पनडुब्बी मिसाइल से लॉन्च करने में सक्षम था।  राजपूत  ने वर्ष 2005 में एक सफल परीक्षण के दौरान धनुष बैलिस्टिक मिसाइल को भी ट्रैक किया।
सरकार को भावी पीढ़ी को देश के नौसैनिक इतिहास  के बारे में जानकारी देने हेतु इसे नौसैनिक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित करने पर विचार करना चाहिए। समुंद्र में विसर्जित करने से क्या लाभ? 


तब तक के लिए दिलों में, समुद्र की लहरों में, यादों में 

‘राज करेगा राजपूत’


 -जय हिंद! जय भारत! 



साभार - स्रोत- दैनिक जागरण, अमर उजाला दैनिक


लेखक एवं संकलनकर्ता - डॉ साकेत सहाय

Twitter  @saketsahay


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