शिक्षा और संस्कार
जब शिक्षा का मतलब केवल रोजगार और पैसा कमाना बन जाए तो इसी प्रकार के दिन देखने पड़ेंगे। इसलिए बच्चों को संस्कार और अपनी माटी से प्रेम करने की शिक्षा देना बेहद जरूरी है। वर्ना यह एक संकेत हैं। इस प्रकार के सामाजिक पतन हेतु विद्यालयों से नैतिक शिक्षा की समाप्ति एक बहुत बड़ा कारण है। अब हमारे लिए न संस्कार का अर्थ है, न परंपरा का, न संस्कृति का। जिस समाज में इंसान से अधिक महत्वपूर्ण उसके पद, पैसा और रसूख़ का हो वहां इस प्रकार के दिन देखने ही पड़ सकते है। पढ़-लिख के इंजीनियर, डाक्टर, जज, कलक्टर होना शायद सबसे आसान काम है पर ज्ञानवान होना ज़्यादा कठिन। कोई पुत्र अपने पिता का शव न ले, अपने पद का दुरुपयोग करके दूसरे को इस हेतु अधिकृत करे इससे घोर निंदनीय कृत्य और क्या हो सकता है। मृत्यु और महामारी से हर कोई भयभीत है। पर अपने संस्कार? इस कुकृत्य से मानवता शर्मिंदा है।
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