कक्षा एक की कविता पर बवाल और विचार
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी ) की कक्षा-१ पाठ्यपुस्तक में दी गई बाल कविता ‘आम की टोकरी’ पर सोशल मीडिया के विविध मंचों पर घमासान मचा हुआ है वह भी उस कविता पर जो एक दशक से भी अधिक समय से पढ़ाई जा रही है। आपत्ति कविता में आए आंचलिक शब्द प्रयोग के प्रति हैं। बहुत सारे समाज के जागरुक एवं प्रबुद्ध लोग विचारधारा के अनुसार इस कविता की व्याख्या कर रहे हैं। जो निहायत ही अनुचित हैं। मेरे विचार से उदारीकरण के बाद का भारतीय समाज हर चीज में झंडाबरदार बनता नज़र आता है।
मेरा बेटा अभी कक्षा-२ में है। पिछले साल मैंने स्वयं इस कविता क़ो पढ़ा। इसमें मेरे समझ से असली समस्या गुणात्मकता की कमी को माना जा सकता है। परंतु इतनी छोटी आयु के बच्चे को आप रोचक तरीक़े से ही पढ़ा सकते हैं। हालाँकि अंग्रेज़ी में भी इसी प्रकार की कविता है। इस पोस्ट के साथ संलग्न अंग्रेज़ी कविता पर भी इसी प्रकार की आपत्ति व्यक्त करने वाले कर सकते हैं। वास्तव में इन दोनों कविताओं को रोचक होने के कारण शामिल किया गया है। शेष प्रश्न अपनी जगह हैं। पर शब्द की नकारात्मक व्याख्या ग़लत सोच का परिणाम है। अब उस सोच का क्या करें जिन्हें कक्षा शब्द पर भी आपत्ति हो सकती है।
आप सभी के समक्ष विमर्श के लिए निम्न विचार प्रस्तुत है -
‘हिंदी सबकी है’ कहने वाले पाठ्यपुस्तकों में आंचलिक शब्दों के प्रयोग का विरोध क्यों करते है?
भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित पाठ्यक्रम बने । इसका समर्थन कितने लोग करते हैं? क्योंकि हम स्वयं अपनी जड़ों से कटे हुए हैं।
बच्चों के पाठ्यक्रम निर्माण में रोचकता भी महत्वपूर्ण है। शब्द अश्लील या अस्पृश्य नहीं होते, हमारी सोच महत्त्वपूर्ण होती है।
उदाहरण के लिए अंग्रेज़ी की कविता में लिखा है If I were a dog यह कौन सी शब्दावली है।
एक महत्वपूर्ण बात
यदि इस कविता की मूल समस्या को तटस्थ भाव से देखें तो इसमें गुणात्मकता शून्य है। ज्ञान ही मनुष्य को संस्कारवान बनाता है। पश्चिमी शिक्षा पद्धति ज्ञानार्जन हेतु किंडर गार्डेन शिक्षा पद्धति को एकमात्र स्रोत मानती है और हमारी शिक्षा पद्धति भी इसी की अनुगामी है। ऐसे में शेष विमर्श से इतर गुणात्मकता की दृष्टि से यह कविता पाठ्यक्रम के लिए अनुचित है। अंग्रेज़ी में भी यही स्थिति है।
भारतीय समाज की सुदृढ़ता के लिए यह जरुरी है कि भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित पाठ्यक्रम बने । इसका समर्थन कितने लोग करते हैं? क्योंकि हम स्वयं अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं।
कभी हम बाल पाठ्यक्रम में नचिकेता और ध्रुव क़ो पढ़ते थे और अब ? जैसा बोयेंगे, वहीं काटेंगे।
बच्चों के पाठ्यक्रम निर्माण में रोचकता, आंचलिकता के साथ सबसे महत्वपूर्ण बेहतर संस्कार देना ही प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए।
सादर
दोनों कविताओं का मूल पृष्ठ नीचे दिया जा रहा है। आप सभी के विचार आमंत्रित है ।
सादर
डॉ साकेत सहाय
#साकेत_विचार
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