कविवर सोहनलाल द्विवेदी

 आज ही के दिन राष्ट्रकवि पं सोहनलाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) का अवतरण हुआ था। आपने अपनी प्रेरक रचनाओं से हिंदी को एक नया आकाश दिया। आपकी इन पंक्तियों ने देश के करोड़ों युवाओं को प्रेरित किया हैं । 


'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती 

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती'



उनकी एक और रचना-


श्रद्धेय सोहनलाल द्विवेदी जी ने राष्ट्र की नयी पीढ़ी के निर्माण का साहित्यसृजन किया ।उनकी रचनाएँ सामयिक और सार्वकालिक महत्व की है ।गाँधीजी से संबंधित भी उनकी कविताएँ है ,उनमें ..युग पुरुष..उल्लेखनीय है,1956 में पढ़ी उसकी कुछ पंक्तियाँ पढ़िये..

चल पड़े जिधर दो डग

मग में चल पड़े..

कोटि पग उसी  ओर।

जिसके सिर पर निज..

धरा हाथ उसकेसिर रक्षक..

कोटि हाथ।

जिस पर निज मस्तक झुकादिया..

झुक गये उसी पर ..

कोटि माथ।।उनकी कृतियाँ हमेशा पठनीय और प्रसंगिक रहेंगी ।सादर नमन


आपकी रचनाएँ ओज और चेतना से भरपूर थीं।आपने 'वीर तुम बढ़े चलो' जैसी बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं हैं। वर्ष 1969 में भारत सरकार ने आपके कृतित्व को पद्मश्री से सम्मानित किया।




#समृद्धभारत #समृद्धहिंदी

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