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Showing posts from September, 2023

दिनकर जयंती

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आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की जयंती है ।  भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी एवं पद्य भूषण से सम्मानित दिनकर जी रश्मिरथी, उर्वशी, कुरुक्षेत्र, संस्कृति के चार अध्याय जैसी महान कृतियों के रचयिता रहे ।  आपको शत शत नमन! उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनकी प्रसिद्ध रचना - ‘जियो जियो अय हिंदुस्तान’   जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं,  हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक,  धीर, वीर, गंभीर, अचल। हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के,  सुरभि स्वर्ग की लेते हैं। हम हैं शान्तिदूत धरणी के,  छाँह सभी को देते हैं। वीर - प्रसू माँ की आँखों के  हम नवीन उजियाले हैं गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के  हम रखवाले हैं। तन मन धन तुम पर कुर्बान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम सपूत उनके जो नर थे  अनल और मधु मिश्रण, जिसमें नर का तेज प्रखर था,  भीतर था नारी का मन! एक नयन संजीवन जिनका,  एक नयन था हालाहल, जितना कठिन खड्ग था  कर में उतना ही अंतर कोमल। थर-थर तीनों लोक काँपते थे  जिनकी ललकारों पर, स्वर्ग नाचता था रण में  जिनकी पवित्र तलवारों पर हम उन वीरों की सन्तान, जियो ज

पसंद और लगाव

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 पसंद और लगाव  कहा जाता है, राग, अनुराग स्नेह, प्रेम, लगाव प्रकृति के जीवंत रंग हैं।  ये रंग हम सभी की जिंदगी के अनेक भावों को दर्शाते हैं। जीवन के विशाल रंगमंच पर जीवन के ये रंग ज़िंदगी को यादगार बनाते हैं।  आमतौर पर हम सभी को ये शब्द एक जैसे लगते है।  पर इनके भाव एवं चरित्र में व्यापक अंतर है।  बात करते है पसंद और लगाव की।  हालंकि ये दोनों शब्द आपस में अभिन्नता से जुड़े हुए है। क्योंकि पसंद से ही लगाव की उपज होती है। यानि लगाव की प्राथमिक सीढ़ी पसंद ही है। किसी ने क्या खूब कहा है लगन बने लगाव की तो बयार बहे बदलाव की । परंतु यदि भाव की व्यापकता में जाए तो पसंद और लगाव में बड़ा फर्क दिखता है।  पर इसे विडम्बना ही कहेंगे कि लोग आजकल पसंद की ओर ज्यादा मुड़ते जा रहे हैं।  आमतौर पर यह देखा जाता है कि इंसान को कोई भी पसंदीदा/ मनचाही चीज यदि मिल जाए तो वह इसके महत्व को भूलने लग जाता है। ऐसे में पसंद को पाने की तीव्र लालसा हमें अंधी दौड़ की ओर ही धकेलती है। जहां सब कुछ है, मगर प्रेम नहीं है।  बतौर उदाहरण आज पूर्वी भारत में व्यापकता के साथ मनाया जाने वाला आस्था का त्यौहार हरितालिका व्रत 'ती

अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।

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 #अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।  यह विचारणीय है कि हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा-भाषी भाषाओं के मामलों में तथ्य से ज्यादा कथ्य को लेकर परेशान रहते है। हम कथ्य के पीछे ही अपनी अधिक ऊर्जा व्यय करते है। जबकि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं की मजबूती के लिए यह जरूरी है कि सभी भाषा प्रेमी तथ्य के लिए कार्य करें । केवल मंचों पर हिंदी के समर्थन से कुछ नहीं होगा। भाषाओं की मजबूती के लिए तथ्यों की मजबूती अधिक आवश्यक है। साथ ही, हम सभी को यह भी समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेजी लिखने मात्र से कोई हिंदी या भाषा द्रोही नहीं हो जाता और ना ही हिंदी लिखने से कोई अंग्रेजी द्रोही हो जाता है। जरूरी यह है कि हम सभी अपनी भाषाओं  से प्रेम करें, अपने बच्चों में हिंदी एवं स्वभाषाओं के मजबूत संस्कार डालें। गिरमिटिया देश इस हेतु नमनीय है कि उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी भारतीयता की पहचान को सबसे ऊपर रखा।  हिंदी हमारी भारतीयता की पहचान है। पसंद और लगाव में बड़ा अन्तर है।  अंग्रेजी हम पसंद तो कर सकते हैं पर हिंदी से लगाव अधिक जरूरी है। अट: हम सभी अपनी भाषाओं से प्रेम करें ।  मगर य

हिंदी दिवस पर मन की बातें

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 पता नहीं क्यूँ 'हिंदी दिवस' के अवसर पर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढी काकी' की याद आ जाती है। आप में से कइयों को सोशल मीडिया में अक्सर दो चुटकुले अक्सर दिखाई  पड़ते हैं -  1. भारत के भाषिक गुलाम और अंग्रेजी के अंध अनुचर अक्सर हिंदी भाषा एवं उसकी शब्दावली को कठिन कहकर इसे हास्य-व्यंग्य का हिस्सा बनाकर खुद को ही मसखरा सिद्ध करते हैं। उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि वे अपनी ही भाषा की अपमान कर रहे है । जो उनके पंथ, परंपरा, देश-समाज की, भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत भाषा है। जिसे जन व नीति निर्माताओं ने राष्ट्रभाषा से राजभाषा बनाया। तो क्या यह भारतीय संविधान, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का अपमान नहीं है?  बहुधा यह देखा जाता है कि मूढ़तावश या हीनता बोध से ग्रसित हिंदी द्रोही ट्रेन के लिए लौहपथगामिनी जैसे निरर्थक शब्दों  का प्रयोग करते है। पता नहीं ऐसे मूर्ख कौन-से विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करके आए हैं? यह हिंदी का शाब्दिक अपमान तो हैं ही, साथ ही उस भाव का भी अपमान है जिस भाव के तहत हिंदी ने सबको एक सूत्र में पिरोया। क्या यह पिरोना बिना हिंदी के

आचार्य विनोबा भावे का अवदान- भूदान आंदोलन, सामाजिक व भाषिक चेतना के प्रति अवदान

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 भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के प्रेरणास्रोत आचार्य विनोबा भावे की १४९वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन!  आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी हुई है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँहमाँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे हैं।  जिससे भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती-सी जा रही है। हर पैसे वाला ज़मींदार बनना चाहता है। ग्राम, समाज के प्रति चेतना भी शिथिल पड़ती जा रही है। ज़्यादातर केवल भौतिक निवेश के लिए जमीन ख़रीद रहें हैं। कृषि भूमि छीज रही है।   बड़ी-बड़ी जोतें बढ़ते परिवार के साथ छोटी होती गई।  समय के साथ जमीन का बंटवारा होता गया और छोट-छोटी जोतों में खेती करना अव्यवहारिक।  खेती अनपढ़, अज्ञानी और कमज़ोर पेशा बनकर मात्र रह गया। ग्राम पलायन से भी कई सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हुई। लोग गांव छोड़कर रोजगार तलाशने शहर चले गये। इससे चालाक भूमाफिया वर्ग सक्रिय हुआ और उन छोटी-छोटी कृषि भूमियों को लोभ, लालच व सपने दिखाकर, औने-पौने दामों में खरीदकर वहाँ अमानक कॉलोनियां बसाई जा रही हैं। परिणामस्वरूप लोग अपने ही गांव में बेघर, बेज

भारत

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 आज कल भारत और इण्डिया की बड़ी चर्चा है। सबके अपने तर्क है, वितर्क है, कुतर्क है, विमर्श है। इण्डिया पर किंतु-परंतु हो सकते हैं पर भारत तो अपने-आप में विशिष्ट भाव है।  ‘ गायन्ति:  देवा किल गीत किल गीत कानि, धन्यास्तु ने भारत भूमि भागे’ -विष्णुपुराण  अत: निवेदन है  भारत को यूरोपियन या किसी ख़ास विचारधारा के चश्मे से न देखें। भारत हमारी सशक्त पहचान का बोध कराता है और इण्डिया ओढ़ी हुई परंपराओं का।  यह कहा जा सकता है - ‘भारत भाषिक, परम्परागत एवं सांस्कृतिक रूप से एक ईकाई है। हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को भी देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत में रहने वाले किसी पंथ, मज़हब या रिलीजन से जुड़े सभी समुदाय तमाम विभिन्नताओं के बावजूद सांस्कृतिक रूप से एक ही समाज के अंग है। भले विभाजनकारी मानसिकता ने देश को मज़हब विशेष के नाम पर बाँटा परंतु पाकिस्तान आज भी इसी विशाल भारतीय संस्कृति का भाग है। चाहे कोई खिलाफत या अन्य विचारधारा कितना भी भारतीय इस्लाम को तुर्की या सऊदी के साथ जोड़ने का प्रयास कर लें परंतु यह भारतीयता ही है कि इसने इस्लाम को भी भारतीय रंग में रंग दिया।’ भारत सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं !