अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।
#अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।
यह विचारणीय है कि हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा-भाषी भाषाओं के मामलों में तथ्य से ज्यादा कथ्य को लेकर परेशान रहते है। हम कथ्य के पीछे ही अपनी अधिक ऊर्जा व्यय करते है। जबकि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं की मजबूती के लिए यह जरूरी है कि सभी भाषा प्रेमी तथ्य के लिए कार्य करें । केवल मंचों पर हिंदी के समर्थन से कुछ नहीं होगा। भाषाओं की मजबूती के लिए तथ्यों की मजबूती अधिक आवश्यक है। साथ ही, हम सभी को यह भी समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेजी लिखने मात्र से कोई हिंदी या भाषा द्रोही नहीं हो जाता और ना ही हिंदी लिखने से कोई अंग्रेजी द्रोही हो जाता है। जरूरी यह है कि हम सभी अपनी भाषाओं से प्रेम करें, अपने बच्चों में हिंदी एवं स्वभाषाओं के मजबूत संस्कार डालें। गिरमिटिया देश इस हेतु नमनीय है कि उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी भारतीयता की पहचान को सबसे ऊपर रखा। हिंदी हमारी भारतीयता की पहचान है। पसंद और लगाव में बड़ा अन्तर है। अंग्रेजी हम पसंद तो कर सकते हैं पर हिंदी से लगाव अधिक जरूरी है। अट: हम सभी अपनी भाषाओं से प्रेम करें । मगर यह न सोचें कि हम इसकी सेवा कर रहे है क्योंकि भाषाएँ माँ समरूप होती है और माँ की सेवा कोई कर ही नही सकता। भाषाएँ प्रकृति की जीवंतता हेतु प्राणतत्व है और प्राणतत्व की शुद्धता हेतु सभी का सहयोग जरूरी हैं।
अतः #अंग्रेजी का विरोध न करें #अंग्रेजियत का विरोध करें।
#साकेत_विचार
#भाषा
सादर,
डा. साकेत सहाय
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