Posts

Showing posts from 2023

आओ चलें थोड़ा

 *आओ चलें थोड़ा*  आओ चलें ! वाहन को घर पे ही छोड़ते हैं - कुछ दूर थोड़ा पैदल चलते हैं - एक नहीं तो आधा किलोमीटर चलते हैं - सवेरे नहीं तो शाम को चलते हैं - काम नहीं है तो बिना काम चलते हैं - केवलं मैंने लिखा ही नहीं किसीने गाया भी है - न हाथी होगा - न घोड़ा होगा - वहाँ तो पैदल ही जाना होगा - तेल बचाइए - सेहत बचाइए - और गुनगुनाते रहिए , " जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम " आओ चलें थोड़ा!

चिट्ठियाँ

Image
 “खो गयी वो......”चिठ्ठियाँ”जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!! “और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी” नन्हें के आने की “खबर” “माँ” की तबियत का दर्द और पैसे भेजने का “अनुनय” “फसलों” के खराब होने की वजह...!! कितना कुछ सिमट जाता था एक “नीले से कागज में”... जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती और “अकेले” में आंखो से आंसू बहाती ! “माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी बच्चों का भविष्य थी और गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां” “डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ़ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!! अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौड़ता है और अक्सर ही दिल तोड़ता है “मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता है... सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में जैसे “मकान” सिमट गए फ्लैटों में जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में “चूल्हे” सिमट गए गैसों में और इंसान सिमट गए पैसों में।

साहित्य का अर्थ

Image
चित्रकार इमरोज या इंद्रजीत जी के निधन के बाद बाजार एवं चर्चा पोषित लेखनी के समर्थक लिक्खाड़ों से सोशल मीडिया ‘अनसोशल’ होता जा रहा है। साहित्य प्रेमियों, बाज़ार से भी अलग एक अनुशासित दुनिया है। अन्यथा😔  साहित्य का अर्थ जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, आजकल लोग बिना मूल को जाने ही केवल अपनी ‘उद्भभावना’ को ही सर्वांग सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि लेखक, पत्रकार वैज्ञानिक ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ ही अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है।  तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करती है।  ऐसे में साहित्य की सशक्त भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है। आवश्यक यह है कि हम सभी  ‘भारतीय दृष्टि, सम्यक सृष्टि’ के भाव बोध को सशक्तता प्रदान करने में सहायक बने।    आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबंध ‘साहित्य की महत्ता’ में कहते है –‘ज्ञान

भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह "

 "भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह " भाषा अभिमान और भाषा दूराग्रह दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। भाषा अभिमान का अर्थ है अपनी भाषा पर गर्व करना और उसे अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ मानना। भाषा दुराग्रह का अर्थ है अपनी भाषा के प्रति पक्षपाती होना और अन्य भाषाओं के प्रति पूर्वाग्रह रखना। संत ज्ञानेश्वर जी ने "ज्ञानेश्वरी" लिखी जो गीता ज्ञान का प्राकृत मराठी अनुवाद था। तत्कालीन पंडितों ने इसका विरोध किया क्योंकि संस्कृत में कैद ज्ञान प्राकृत में प्रकट हुआ था। यह भाषा दुराग्रह का एक उदाहरण है। आधुनिक समय में भी हम भाषा दुराग्रह से ग्रसित हैं। उदाहरण के लिए, भारत में कई लोग अंग्रेजी को अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ मानते हैं। वे अंग्रेजी में बात करने वाले लोगों को अधिक शिक्षित और सभ्य मानते हैं। यह भाषा दुराग्रह का एक उदाहरण है। भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह दोनों ही हानिकारक हैं। भाषा अभिमान से भाषाई विविधता का नुकसान होता है। भाषा दुराग्रह से सामाजिक विभाजन और तनाव बढ़ता है। अनुवाद भाषा अभिमान और भाषा दुराग्रह को दूर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अनुवाद के माध्यम से हम विभिन्न भाषाओं के ज्ञ

डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद

Image
 अपनी सादगी एवं सरलता से देश की माटी को सुशोभित करने वाले अद्भुत मेधा शक्ति के धनी राजेंद्र प्रसाद जी ने संविधान निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई।   बिहार के गौरव डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के व्यक्तित्व से नयी पीढ़ी को सादगी एवं सरलता सीखनी चाहिए।  राष्ट्रनायकों की जयंती हमें उनके जीवन गाथा से बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है।   गांधीजी को वास्तव में गांधी बनाने में चंपारण सत्याग्रह की बड़ी भूमिका रही और इसकी पृष्ठभूमि में राजेन्द्र प्रसाद की बड़ी भूमिका थी। आजादी के बाद का सर्वप्रथम भारतीय नागरिक जिनकी कॉपी पर अँग्रेज परीक्षक (एक्जामिनर) ने कोई नं. नहीं दिया सिर्फ लिखा Examinee is better than Examiner तब स्कूल एक्जामिशन बोर्ड बहुत विशाल था कि अब उसके टुकड़े में दो देश बन चुके हैं,बंगलादेश व म्यांमार। उस समय इन दो देशों के अतिरिक्त अब के पं.बंगाल,बिहार,उड़िसा,यू.पी.का मैट्रिक का एक ही बोर्ड था।  डा०राजेन्द्र प्रसाद इस परीक्षा में फर्स्ट क्लाश फर्स्ट आये थे।  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू महात्मा गांधी की निष्ठा, समर्पण और साहस से काफी

अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस

Image
  आज अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस है। संयोग से आज छठ पर्व के पहले अर्ध्य का भी दिन।  सूर्य इस धरती पर जीवधारा के प्रतीक हैं।  एक पिता की भाँति रक्षक।  बिना किसी उपेक्षा या अपेक्षा के।  पुरुष भी अपने परिवार के लिए सूर्य के समान होते हैं।  पर उत्तर आधुनिक समाज इस ‘सूर्य’ को मलिन देखना चाहता है। क्योंकि वह भारतीय परिवार व्यवस्था की सशक्त परंपरा को नष्ट करना चाहता है। कमियाँ बहुत है पर कमी हर जगह है। पर सुधार के नाम पर किसी को प्रताड़ित न करें। केवल अंध मार्ग या वर्चस्व की ख़ातिर पूरी व्यवस्था को पथभ्रष्ट न करें। यहीं कारण है कि आज कई पुरुष अवसाद के शिकार हो रहे हैं ।  आज क़ानून की आड़ में उत्पीड़न के मिथ्या आरोपों में पुरुषों को फँसाया जाता है।  अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मुख्य रूप से  समाज, समुदाय, परिवार, विवाह एवं बच्चों के देखभाल में उनकी भूमिका, लड़कों और पुरुषों के जीवन, उपलब्धियां और योगदान  के स्मरण का एकदिन है। इस दिवस का उद्देश्य पुरुषों के मुद्दों के प्रति बुनियादी जागरूकता को बढ़ावा देना है। इसके साथ ही पुरुषों  की सामान्यतया नकारात्मक छवि और उन्हें बहुधा खलनायक के रूप में चित्रित क

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को श्रद्धांजलि और सामाजिक अव्यवस्था

Image
विनम्र श्रद्धांजलि!  महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की आज पुण्यतिथि है। उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आंइस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी।  स्वर्गीय वशिष्ठ नारायण सिंह इस देश व विशेष रूप से बिहार प्रदेश की दुर्व्यवस्था के शिकार होकर 40 वर्षों से अधिक मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित रहे और असमय ही यह देश उनकी प्रतिभा, ज्ञान के उपयोग से वंचित रहा। इसे किसका दुर्भाग्य माना जाए? अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक। अति पिछड़ा या महादलित। कांग्रेस या राजद बीजेपी या जेडीयू। इस हमाम में सभी नंगे खड़े नज़र आयेंगे।  उनकी अकाल मृत्यु इस देश की व्यवस्था में व्याप्त अनैतिकता एवं असमानता पर बहस एवं विरोध की मांग करती है। शिक्षा में इलीट समझे जाने वाले लोग किस प्रकार से कमजोर व दलित (कृपया इसे किसी जाति समूह से न जोड़े)  लोगों का शोषण करते है  उनकी ' मृत्यु गाथा" 🥲 इस ओर इशारा करती है।   वक्त की मांग है कि शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप एवं वर्गभेद समाप्त हो। सभी को समान अवसर मिले। साथ ही देशी भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने हेतु हम सभी अपने अपने स्तर पर कार्य करें । प्रदेश की सरकार केवल विभाजनकारी

महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और मूल्यबोध

Image
आज गाँधी जयंती है। साथ में लाल बहादुर शास्त्री की भी। ब्रिटिश भारत से आजाद होने के बाद भारत के राष्ट्र नायकों की जयंती पर शत शत नमन! पर यह हम सभी का दुर्भाग्य है कि  दशकों से इनके विचारों को जानबूझकर ढकोसला बनाकर ही परोसा जा रहा है। हमारे शासक, नौकरशाह, पत्रकार, न्यायालय, शिक्षाविद् सामूहिक रूप से ब्रिटिश भारत से आजादी के बाद गांधीजी और शास्त्रीजी के सपनों के भारत के हर लक्ष्य को मटियामेट करने में कोई कर-कसर नहीं छोड़े हुए है।  चाहे हिंदी एवं भारतीय भाषाओं को कलंकित कर अंग्रेजी को बढावा देने की बात हो या कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित न कर भारी उद्योगों की स्थापना की बात हो,  ग्रामीण भारत को अस्तित्वविहीन कर नियोजित शहरों की स्थापना की बात हो, समाज के बुनियादी तत्वों को समाप्त करने  में सहयोग और सत्ता ही मूलमंत्र है।  दरअसल गांधी का खात्मा उनके अनुयायियों ने ही पहले किया। दुर्भाग्य यह रहा है कि जिनकी वजह से वे सत्ता में पहुँचे उन्हीं के उसूलों का खात्मा किया जाना आधुनिक भारत में नैतिकता विहीन समाज की नींव रखने की प्राथमिक सीढ़ी बनी।  पर हमारे  समाज की आदत-सी बन गई है कि हम केवल पुरखों पर

दिनकर जयंती

Image
आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की जयंती है ।  भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी एवं पद्य भूषण से सम्मानित दिनकर जी रश्मिरथी, उर्वशी, कुरुक्षेत्र, संस्कृति के चार अध्याय जैसी महान कृतियों के रचयिता रहे ।  आपको शत शत नमन! उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनकी प्रसिद्ध रचना - ‘जियो जियो अय हिंदुस्तान’   जाग रहे हम वीर जवान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम प्रभात की नई किरण हैं,  हम दिन के आलोक नवल, हम नवीन भारत के सैनिक,  धीर, वीर, गंभीर, अचल। हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के,  सुरभि स्वर्ग की लेते हैं। हम हैं शान्तिदूत धरणी के,  छाँह सभी को देते हैं। वीर - प्रसू माँ की आँखों के  हम नवीन उजियाले हैं गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के  हम रखवाले हैं। तन मन धन तुम पर कुर्बान, जियो जियो अय हिन्दुस्तान! हम सपूत उनके जो नर थे  अनल और मधु मिश्रण, जिसमें नर का तेज प्रखर था,  भीतर था नारी का मन! एक नयन संजीवन जिनका,  एक नयन था हालाहल, जितना कठिन खड्ग था  कर में उतना ही अंतर कोमल। थर-थर तीनों लोक काँपते थे  जिनकी ललकारों पर, स्वर्ग नाचता था रण में  जिनकी पवित्र तलवारों पर हम उन वीरों की सन्तान, जियो ज

पसंद और लगाव

Image
 पसंद और लगाव  कहा जाता है, राग, अनुराग स्नेह, प्रेम, लगाव प्रकृति के जीवंत रंग हैं।  ये रंग हम सभी की जिंदगी के अनेक भावों को दर्शाते हैं। जीवन के विशाल रंगमंच पर जीवन के ये रंग ज़िंदगी को यादगार बनाते हैं।  आमतौर पर हम सभी को ये शब्द एक जैसे लगते है।  पर इनके भाव एवं चरित्र में व्यापक अंतर है।  बात करते है पसंद और लगाव की।  हालंकि ये दोनों शब्द आपस में अभिन्नता से जुड़े हुए है। क्योंकि पसंद से ही लगाव की उपज होती है। यानि लगाव की प्राथमिक सीढ़ी पसंद ही है। किसी ने क्या खूब कहा है लगन बने लगाव की तो बयार बहे बदलाव की । परंतु यदि भाव की व्यापकता में जाए तो पसंद और लगाव में बड़ा फर्क दिखता है।  पर इसे विडम्बना ही कहेंगे कि लोग आजकल पसंद की ओर ज्यादा मुड़ते जा रहे हैं।  आमतौर पर यह देखा जाता है कि इंसान को कोई भी पसंदीदा/ मनचाही चीज यदि मिल जाए तो वह इसके महत्व को भूलने लग जाता है। ऐसे में पसंद को पाने की तीव्र लालसा हमें अंधी दौड़ की ओर ही धकेलती है। जहां सब कुछ है, मगर प्रेम नहीं है।  बतौर उदाहरण आज पूर्वी भारत में व्यापकता के साथ मनाया जाने वाला आस्था का त्यौहार हरितालिका व्रत 'ती

अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।

Image
 #अंग्रेजी का विरोध नहीं, #अंग्रेजियत का विरोध जरूरी है।  यह विचारणीय है कि हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा-भाषी भाषाओं के मामलों में तथ्य से ज्यादा कथ्य को लेकर परेशान रहते है। हम कथ्य के पीछे ही अपनी अधिक ऊर्जा व्यय करते है। जबकि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं की मजबूती के लिए यह जरूरी है कि सभी भाषा प्रेमी तथ्य के लिए कार्य करें । केवल मंचों पर हिंदी के समर्थन से कुछ नहीं होगा। भाषाओं की मजबूती के लिए तथ्यों की मजबूती अधिक आवश्यक है। साथ ही, हम सभी को यह भी समझने की आवश्यकता है कि अंग्रेजी लिखने मात्र से कोई हिंदी या भाषा द्रोही नहीं हो जाता और ना ही हिंदी लिखने से कोई अंग्रेजी द्रोही हो जाता है। जरूरी यह है कि हम सभी अपनी भाषाओं  से प्रेम करें, अपने बच्चों में हिंदी एवं स्वभाषाओं के मजबूत संस्कार डालें। गिरमिटिया देश इस हेतु नमनीय है कि उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी भारतीयता की पहचान को सबसे ऊपर रखा।  हिंदी हमारी भारतीयता की पहचान है। पसंद और लगाव में बड़ा अन्तर है।  अंग्रेजी हम पसंद तो कर सकते हैं पर हिंदी से लगाव अधिक जरूरी है। अट: हम सभी अपनी भाषाओं से प्रेम करें ।  मगर य

हिंदी दिवस पर मन की बातें

Image
 पता नहीं क्यूँ 'हिंदी दिवस' के अवसर पर कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'बूढी काकी' की याद आ जाती है। आप में से कइयों को सोशल मीडिया में अक्सर दो चुटकुले अक्सर दिखाई  पड़ते हैं -  1. भारत के भाषिक गुलाम और अंग्रेजी के अंध अनुचर अक्सर हिंदी भाषा एवं उसकी शब्दावली को कठिन कहकर इसे हास्य-व्यंग्य का हिस्सा बनाकर खुद को ही मसखरा सिद्ध करते हैं। उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि वे अपनी ही भाषा की अपमान कर रहे है । जो उनके पंथ, परंपरा, देश-समाज की, भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत भाषा है। जिसे जन व नीति निर्माताओं ने राष्ट्रभाषा से राजभाषा बनाया। तो क्या यह भारतीय संविधान, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का अपमान नहीं है?  बहुधा यह देखा जाता है कि मूढ़तावश या हीनता बोध से ग्रसित हिंदी द्रोही ट्रेन के लिए लौहपथगामिनी जैसे निरर्थक शब्दों  का प्रयोग करते है। पता नहीं ऐसे मूर्ख कौन-से विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करके आए हैं? यह हिंदी का शाब्दिक अपमान तो हैं ही, साथ ही उस भाव का भी अपमान है जिस भाव के तहत हिंदी ने सबको एक सूत्र में पिरोया। क्या यह पिरोना बिना हिंदी के

आचार्य विनोबा भावे का अवदान- भूदान आंदोलन, सामाजिक व भाषिक चेतना के प्रति अवदान

Image
 भूदान आंदोलन के जनक, नागरी लिपि परिषद के प्रेरणास्रोत आचार्य विनोबा भावे की १४९वीं जयंती पर भावपूर्ण नमन!  आज जब देश में रीयल एस्टेट की आड़ में कृषि जोत ख़रीदने की होड़ लगी हुई है। हर कोई ज़मीर से अधिक ज़मीन ख़रीदने की होड़ में शामिल है। अब किसान भी मुँहमाँगी क़ीमत पर अपनी ज़मीन बेच रहे हैं।  जिससे भारतीय ग्रामीण परंपरा की नींव दरकती-सी जा रही है। हर पैसे वाला ज़मींदार बनना चाहता है। ग्राम, समाज के प्रति चेतना भी शिथिल पड़ती जा रही है। ज़्यादातर केवल भौतिक निवेश के लिए जमीन ख़रीद रहें हैं। कृषि भूमि छीज रही है।   बड़ी-बड़ी जोतें बढ़ते परिवार के साथ छोटी होती गई।  समय के साथ जमीन का बंटवारा होता गया और छोट-छोटी जोतों में खेती करना अव्यवहारिक।  खेती अनपढ़, अज्ञानी और कमज़ोर पेशा बनकर मात्र रह गया। ग्राम पलायन से भी कई सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हुई। लोग गांव छोड़कर रोजगार तलाशने शहर चले गये। इससे चालाक भूमाफिया वर्ग सक्रिय हुआ और उन छोटी-छोटी कृषि भूमियों को लोभ, लालच व सपने दिखाकर, औने-पौने दामों में खरीदकर वहाँ अमानक कॉलोनियां बसाई जा रही हैं। परिणामस्वरूप लोग अपने ही गांव में बेघर, बेज

भारत

Image
 आज कल भारत और इण्डिया की बड़ी चर्चा है। सबके अपने तर्क है, वितर्क है, कुतर्क है, विमर्श है। इण्डिया पर किंतु-परंतु हो सकते हैं पर भारत तो अपने-आप में विशिष्ट भाव है।  ‘ गायन्ति:  देवा किल गीत किल गीत कानि, धन्यास्तु ने भारत भूमि भागे’ -विष्णुपुराण  अत: निवेदन है  भारत को यूरोपियन या किसी ख़ास विचारधारा के चश्मे से न देखें। भारत हमारी सशक्त पहचान का बोध कराता है और इण्डिया ओढ़ी हुई परंपराओं का।  यह कहा जा सकता है - ‘भारत भाषिक, परम्परागत एवं सांस्कृतिक रूप से एक ईकाई है। हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को भी देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत में रहने वाले किसी पंथ, मज़हब या रिलीजन से जुड़े सभी समुदाय तमाम विभिन्नताओं के बावजूद सांस्कृतिक रूप से एक ही समाज के अंग है। भले विभाजनकारी मानसिकता ने देश को मज़हब विशेष के नाम पर बाँटा परंतु पाकिस्तान आज भी इसी विशाल भारतीय संस्कृति का भाग है। चाहे कोई खिलाफत या अन्य विचारधारा कितना भी भारतीय इस्लाम को तुर्की या सऊदी के साथ जोड़ने का प्रयास कर लें परंतु यह भारतीयता ही है कि इसने इस्लाम को भी भारतीय रंग में रंग दिया।’ भारत सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं ! 

इस्म्त चुगताई उर्दू और देवनागरी लिपि

Image
 २१ अगस्त, १९१५ को जन्मी हिंदी-उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई ‘इस्मत आपा’ के नाम से मशहूर उर्दू भाषा प्रयोग पर कहती थीं ‘वक़्त के साथ उर्दू दम तोड़ देगी अगर इसके साहित्य को देवनागरी में नहीं लिखा गया।’ अनुभवी बात कही थीं, उन्होंने। वास्तव में हिंदी-उर्दू एक है। कहा भी जा सकता है “उर्दू भाषा की देशी लिपि ‘देवनागरी’ है। देवनागरी लिपि में भी यदि उर्दू को लिखा जाए तो यह तथ्य प्रमुखता से स्थापित होगा कि हिंदी-उर्दू एक है और धीरे-धीरे षड्यन्त्र के तहत स्थापित की गई भाषिक द्रोह की दीवार भी  टूटेगी।   वैसे भी भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के साथ-साथ उर्दू भाषा का विकास भी शुरू होता  है । यह भाषा दक्षिण में जाकर दक्खिनी का नाम लेती है और फिर  उत्तर में आकर रेख्ता के नाम से प्रचलित हो  जाती है। यहाँ से साहित्यिक उर्दू भाषा का विकासक्रम शुरू हो जाता है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उर्दू और हिंदी दोनों एक भाषा है। आधुनिक युग में अंग्रेजों ने शैक्षिक और राजनीतिक कारणों से उर्दू भाषा को हिंदी से अलग देखने का यत्न किया ।  #साकेत_विचार #हिंदी_उर्दू #भाषा #लिपि #देवनागरी  जय हिंद! जय हिंदी!!

तुलसीदास

Image
 रामचरित मानस के रचियता हिंदी साहित्य के महान संत कवि गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन 🙏🏻🌺🌺🌸 #तुलसीदास  #साकेत_विचार

चंद्रयान-३ पर कविता

Image
 चंद्रयान 3 का चंद्रमा की  सतह पर सफलतापूर्वक अवतरण !!! आज सभी भारतीय गौरवान्वित हैं!!! वन्दे मातरम्! एक कविता  संस्कृति की पालना  भारत से  आज मिल ही गई राखी, चन्दामामा को  भेजी थी भारत माँ ने जो बड़े प्रेम से, अपने उज्ज्वल सुपुत्र विक्रम के हाथों विक्रम! ज्ञान, धैर्य व आत्मविश्वास  के साथ वर्षों से प्रतीक्षित  अपने मामा के आंगन  जब उतरा  तो १३९ करोड़ भारतीयों का रक्षा सूत्र  था इसके पास  और गुणी वैज्ञानिकों का मस्तिष्क सच में विक्रम  अपने मामा से यही कह रहा होगा, भारत का हर बच्चा चांद को  मामा के रूप में अब तक जानता था,  दूर गगन  से उसकी शीतलता को  अनुभूत भी करता था पर वह सब सपना था पर आज  सपना साकार हुआ जय हो वसुन्धरा की जय हो चन्दामामा की जय हिंद! जय भारत!! 🇮🇳 मिशन चंद्रयान 3 🙏 डॉ साकेत सहाय #कविता #साकेत_विचार #chandrayan3

विभाजन विभीषिका दिवस

Image
 ‘युगवार्ता' के ताजा अंक में मेरा आलेख ‘ विभाजन की विभीषिका #भारत_विभाजन #साकेत_विचार

शिव-शक्ति प्वाइंट और शिव

Image
 शिव-शक्ति प्वाइंट आज देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी ने चंद्रमा के जिस स्थान पर भारत द्वारा प्रक्षेपित चन्द्रयान-3 #Chandrayaan3 उतरा, उसे ‘शिव शक्ति' प्वाइंट का नाम देकर राष्ट्र व समाज के आडंबरविहीन सनातन आस्था के प्रतीक भगवान ‘शिव-शंकर’ के प्रति उचित ही आस्था व श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपराओं का निर्वहन किया  है।  अंतरिक्ष मिशन के संपर्क बिंदु को एक नाम दिए जाने की वैज्ञानिक परंपरा रही है। अत: चंद्रमा के जिस हिस्से पर हमारा चंद्रयान उतरा है भारत ने उस स्थान के भी नामकरण का निर्णय लिया है।  जिस स्थान पर चंद्रयान 3 का मून लैंडर विक्रम उतरा है, अब उस प्वाइंट को ‘शिव शक्ति’ के नाम से जाना जाएगा।  शिव राष्ट्र की आध्यात्मिक  चेतना के महादेव हैं।  यह नाम पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा थोपे गए विश्व इतिहास को विस्मृत कर  भारत के स्वर्णिम अतीत, राष्ट्रीय चरित्र, पुरा पुरुष को जागृत करने का संकल्प सिद्ध होगा। भगवान  शिव सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार इस समस्त जगत के आदि कारक माने जाते हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। जगत के प्रारंभिक ग्रंथों में

उपन्यास स्म्राट प्रेमचंद जी को नमन

Image
उपन्यास  सम्राट, अपनी  लेखनी के माध्यम  से ग्रामीण पृष्ठभूमि एवं शहरी समाज की  वास्तविकता  को  चित्रित करने  वाले, समाज  को  अपनी लेखनी से जागृत करने वाले प्रेमचंद जी लिखते हैं " मैं एक मजदूर हूँ।  जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने  का कोई हक नहीं।"  वास्तव में लेखन के प्रति उनका यह समर्पण ही उन्हें भारतीय साहित्य में विशिष्टता प्रदान करता हैं । प्रेमचन्द जी ने हर प्रकार के साहित्य का सृजन किया, इसलिए वे साहित्य- शिल्पी कहे गए।  सर्जनात्मक साहित्य के साथ-साथ प्रेमचंद का वैचारिक साहित्य बेहद समृद्ध है। हिंदी पत्रकारिता में हंस के रूप में उनके उल्लेखनीय योगदान को भला कौन भूल सकता है। प्रेमचंद अपने संपूर्ण वैचारिकी में पाठकों को जगाते हैं । उन्हें आदर्श राष्ट्र राज्य की प्राप्ति हेतु संघर्ष करने हेतु उद्वेलित करते हैं । प्रेमचन्द का साहित्य यथार्थवादी रहा । वे हिंदी के यथार्थ से भी परिचित थे,इसीलिए उन्होंने हिंदी में जमकर लेखन किया। उनके भाषा विषयक निबंध और टिप्पणियाँ राष्ट्रभाषा हिंदी की विशिष्टता को  समग्रता से समझने में  सहायक हैं ।  मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके जन

हिंदी : राष्ट्रभाषा

Image
अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। पर यह भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। इस प्रकार से हिंदी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए। वैसे भी  फ़ारसी भाषा में हिंदी का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। अर्थात् हिंदी सदियों से इस देश की जनभाषा, लोकभाषा, तीर्थभाषा, संपर्क भाषा आदि उपनामों से अलंकृत होकर ब्रिटिश पराधीनता से मुक्ति की वाहक भाषा बनकर उभरी। फिर स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुईं।  इन सभी के बावजूद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हमने हिंदी की सेवा की। कुछ लेखकों/पत्रकारों को तो यह भी लगता है कि हिंदी का वजूद ही उनकी वजह से हैं । मगर वे यह भूल जाते हैं कि हिंदी या मातृभाषाओं की वजह से ही हम सभी का अस्तित्व हैं । हिंदी सदियों से भारत की अखंडता की बुनियाद को  सशक्त करने का कार्य कर रही हैं ।  ऐसे में यह स्वाभाविक है  कि हिंदी का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की नींव में हिंदी का योगदान है।  भाषाएँ, बोलियाँ हमारी माँ के समान है इनसे किसी का क्या बैर? भाषाएँ, बोलिय

कलाम साहब की पुण्यतिथि पर नमन🙏

Image
  आज मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध अबुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम जी की पुण्यतिथि है।  रामेश्वरम, तमिलनाडु में जन्मे कलाम साहब भारतीय मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं।  भारत के पूर्व राष्ट्रपति कलाम की जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं ।  चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का समग्र व्यक्तित्व भारतीय अध्यात्म को समर्पित रहा।  सभी के प्रिय कलाम जी का विज्ञान की दुनिया से चलकर दुनिया के सबसे बड़े एवं प्राचीन लोकतंत्र की भूमि के प्रथम नागरिक के पद पर आसीन होना, किसी भी आम भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर देता है। आपको शत-शत नमन!🙏🌺 #कलाम #राष्ट्रपति #साकेत_विचार

कारगिल विजय दिवस

Image
  कारगिल विजय दिवस (26 जुलाई ) -वीर शहीदों को शत्-शत् नमन! 💐🙏 आज देश 24वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है। आज का यह विशेष दिन भारतीय सेना के वीर सैनिकों की बहादुरी, शौर्य एवं पराक्रम को नमन करने का दिन है। कारगिल विजय दिवस के दिन पूरा भारत कारगिल युद्ध के नायकों की बहादुरी और वीरता को श्रद्धांजलि देता है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में देश के बहादुर सैनिकों ने नापाक पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध का कोड नाम ऑपरेशन विजय दिया गया था । कारगिल युद्ध 60 दिनों से अधिक चला।  26 जुलाई, 1999 को भारत ने पाकिस्तान को पराजित कर कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की। 26 जुलाई के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से क़ब्ज़ाई गई चौकियों पर तिरंगा फहराया था।  कारगिल विजय दिवस के इस अवसर पर शहीद सैनिकों को नमन करते हुए वीर सपूतों को समर्पित है कुछ पंक्तियाँ -  समर्पित है यह प्राण भारतमाता के लिए,  यह देह बना है इसी माटी से  इस देह  से आती है वतन की सुगंध  वतन के काम आए यह सुगंध यह सपना है हर सैनिक का देश की सीमाएँ सुरक्षित रहें यह संकल्प है हर सैनिक का।  कारगिल

बिहार बिहान में साक्षात्कार

 डीडी बिहार (दूरदर्शन, बिहार)  के प्रशंसित एवं चर्चित कार्यक्रम ‘बिहार बिहान’ में मेरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित जो भाषा, संचार, साहित्य और संस्कृति को लेकर समर्पित रहा है से जुड़े विविध आयामों पर एक बार फिर लाइव अपनी बात रखने का अवसर कल यानी १३ जुलाई, २०२३ को मिला।   पूरा  साक्षात्कार इस यूट्यूब लिंक में  आप सभी के अवलोकनार्थ -    https://youtu.be/EIr-YpZCKtg

संदेश मिठाई

Image
  शब्दों की खोज" "संदेश"       बंगाली मिठाई  संदेश সন্দেশ [शोंदेश] का नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि इसे किसी अच्छी खबर या संदेश के साथ खाया या उपहार में दिया जाता था।  संदेश अपने पहले अवतार में अलग था।  यह डेयरी मुक्त था और नारियल और चीनी से बना था। "संदेश" नाम भारत के बंगाल में एक लोकप्रिय मिठाई है, जो विशेष रूप से बंगाली व्यंजनों के साथ जुड़ी  है।  "संदेश" शब्द की व्युत्पत्ति का पता संस्कृत से लगाया जा सकता है, जो एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है। संदेश : Monier Williams Sanskrit-English Dictionary (2nd Ed. 1899)     communication of intelligence,  message,  information,  errand,  direction,  command,  order to  a present, gift a partic.  kind of sweetmeat   संस्कृत में, "संदेश"  शब्द का अर्थ है "संदेश" या "संचार।"  मीठे व्यंजन को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि पारंपरिक रूप से इसका उपयोग विशेष अवसरों और त्योहारों पर संदेश या शुभकामनाएं देने के माध्यम के रूप में किया जाता था।  संदेश आमतौर पर ताज़ा पनीर (छेना) और चीनी से बनाय

चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

Image
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (अंग्रेज़ी: Chandradhar Sharma 'Guleri, जन्म: 7 जुलाई, 1883; मृत्यु: 12 सितम्बर, 1922) हिन्दी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार थे। बीस वर्ष की उम्र के पहले ही उन्हें जयपुर की वेधशाला के जीर्णोद्धार तथा उससे सम्बन्धित शोधकार्य के लिए गठित मण्डल में चुन लिया गया था और कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने "द जयपुर ऑब्ज़रवेटरी एण्ड इट्स बिल्डर्स" शीर्षक से अंग्रेज़ी ग्रन्थ की रचना की। मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर नामक गाँव के वासी ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पंडित शिवराम शास्त्री राजसम्मान पाकर जयपुर (राजस्थान) में बस गए थे। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मीदेवी ने सन् 1883 में चन्द्रधर को जन्म दिया। घर में बालक को संस्कृत भाषा, वेद, पुराण आदि के अध्ययन, पूजा-पाठ, संध्या-वंदन तथा धार्मिक कर्मकाण्ड का वातावरण मिला और मेधावी चन्द्रधर ने इन सभी संस्कारों और विद्याओं आत्मसात् किया। जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर भारत धर्म महामंडल के विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया था। पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी का यहाँ तक कहना था कि वे पाँच वर्ष मे

साहित्यकार नागार्जुन

 प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार बाबा नागार्जुन को नमन! बिहार के मधुबनी जिले में जन्मे बैद्यनाथ मिश्र उर्फ‘बाबा नागार्जुन’ने अपनी मातृभाषा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से लिखा। काशी प्रवास में उन्होंने ‘वैदेह’ उपनाम से भी रचनाएँ लिखी। पाली सीखने के लिए वे श्रीलंका के बौद्ध मठ पहुंचे और यहीं  'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया। कबीर और निराला की श्रेणी के अक्खड़ लेखक नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली, संस्कृत एवं बांग्ला में मौलिक रचनाएँ एवं अनुवाद कार्य किया।आपने अपनी फकीरी व बेबाकी से अपनी अनोखी साहित्यिक पहचान बनाई।      नागार्जुन की एक कविता सुबह-सुबह   सुबह-सुबह तालाब के दो फेरे लगाए   सुबह-सुबह रात्रि शेष की भीगी दूबों पर नंगे पाँव चहलकदमी की   सुबह-सुबह हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए माघ की कड़ी, सर्दी के मारे   सुबह-सुबह अधसूखी पत्तियों  का कौड़ा तापा आम के कच्चे पत्तों का जलता, कडुआ कसैला सौरभ लिया   सुबह-सुबह गँवई अलाव के निकट घेरे में बैठने बतियाने का सुख लूटा   सुबह-सुबह आंचलिक बोलियों का मिक्सचर कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा सुबह-सुबह   स्रोत – नागार्जुन रचना सं

ओम जय जगदीश हरे के रचयिता- श्रद्धाराम फिल्लौरी को नमन

 विश्व के कोने-कोने में सनातन समाज द्वारा पूर्ण श्रद्धा के साथ गायी जाने वाली आरती "ओम जय जगदीश हरे" के रचनाकार पंडित श्रद्धाराम फिलौरी की आज 133वीं पुण्य तिथि है।  पंजाब के फिलौर नामक ग्राम में 30 सितंबर , 1837 को उनका जन्म हुआ था।  उनके द्वारा लिखित "भाग्यवती" नामक उपन्यास को अनेक विद्वानों द्वारा हिन्दी का पहला उपन्यास माना जाता है।  वे एक ज्योतिर्विद् और आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे।  उन्होंने महाभारत के उद्धरणों के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था।  युवाओं पर उनके बढ़ते प्रभाव को देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें उनके गांव से निष्कासित कर दिया था। एक ईसाई पादरी फादर न्यूटन के प्रस्ताव पर सरकार ने उनका निष्कासन रद्द कर दिया था।  44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून, 1881 को वे इस संसार से विदा हुए।  1870 में उनकी रचित अमर रचना "ओम जय जगदीश हरे" आज भी जन-जन में लोकप्रिय है।  उनके इस योगदान को मैंने वर्ष 2020 में आप सभी के सामने लाने का प्रयास किया था।  आज पुनः आप सभी से साझा कर रहा हूँ।  “ओम जय जगदीश हरे" के इस अमर रचनाकार और हिंदी के

देवी प्रसाद चौधरी और पटना का शहीद स्मारक

Image
आज महान चित्रकार स्वर्गीय देवी प्रसाद राय चौधरी जी की जयंती है। आपकी प्रसिद्ध कृति है पटना का शहीद स्मारक । चित्रकार, मूर्तिकार एवं ललित कला अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष देवी प्रसाद चौधरी का जन्म 15 जून, 1899 को अविभाजित भारत के मीरपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। आप भारत सरकार से वर्ष 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित कला साधक हैं।  विधान सभा भवन के पास स्थित पटना के शहीद स्मारक से भला आज कौन नहीं परिचित है। इस स्मारक में 7 वीर पुरुषों की कांस्य प्रतिमा लगी है। देवी प्रसाद जी के इस प्रमुख चित्र “शिल्प शहीद स्मारक” की स्थापना 1956 ईस्वी में पटना सचिवालय के बाहर की गई थी। इसमें  7 युवाओं को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के प्रयास में अपने प्राणों का बलिदान करते दिखाया गया है।  भारत छोड़ो आंदोलन-1942 के दौरान पटना सचिवालय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के संकल्प के साथ एक जुलूस आगे बढ़ रहा था तभी अंग्रेजों ने उस पर गोली चला दी और इस घटना में 7 युवक शहीद हो गए । देवी प्रसाद ने इस घटना को मूर्ति शिल्प में जीवित कर दिया । इस शिल्प में प्रथम युवक राष्ट्रीय ध्वज लिए आगे बढ़ रहा है एक युवक घायल अवस्था में गिरते हु

भाषिक औपनिवेशिकता

Image
यह स्थापित सत्य है कि इस देश में सबसे ज्यादा बोली एवं समझी जाने वाली भाषा हिंदी है।  अतः देशहित में भाषा के नाम पर सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों के माध्यम से स्वार्थपरक धारणाएं स्थापित की जानी तुरंत बंद की जाए। क्या दही प्रिंट करके व्यवस्था ने कोई गुनाह किया था?  वैसे व्यवहारिकता तो यही है कि इस देश में हर चीज पर राज्य विशेष की भाषा तथा हिंदी में ग्राहक सूचना प्रिंट होनी चाहिये। परंतु यह दुर्भाग्य है कि इस देश में हर चीज में राजनीतिक एजेंडा के तहत भाषा, जाति और पंथ को घसीटा जाता है। कब तक किसी आप संघ की राजभाषा हिंदी का अपमान करेंगे?  कभी भाषा को पंथ से जोड़कर कुतर्क प्रस्तुत करेंगे । भाषाएं राष्ट्रीय संस्कृति से जुड़ी होती हैं। कभी हिंदी-उर्दू का विवाद, कभी हिंदी की बोलियों के नाम राजनीतक रोटी सेंकना तो कभी हिंदी और भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ा कर अंग्रेजी को आगे करना। हिंदी-उर्दू को ही लें तो यह है कि उर्दू और हिंदी हमारी अपनी  भाषाएं है।  मात्र लिपि का अंतर है। इतिहास  पढ़ लीजिये जान-बूझकर षड्यंत्र के तहत उर्दू को फारसी लिपि में लिखा जाने लगा।  यदि देश पर तुर्क-मुगल-अंग्रेजों द्वार

राष्ट्रभाषा हिन्दी और राजनीतिक दोहरापन

Image
   हिंदी ब्रिटिश गुलामी से आजादी के बाद से ही नेतृत्व के कुबुद्धि की वजह से  ग़ुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेजी से पराजित होकर भारतीय भाषाओं की सौतन बनकर उभरती है या षड्यंत्र के तहत उभारी जाती है। भले ही हिंदी सौतन हो या नहीं । एक समस्या यह भी है हिंदी को लेकर जान-बूझकर काल्पनिक धारणाएं प्रस्तुत की जाती हैं । जिनसे किसी का भला नहीं होने वाला । क्षणिक राजनीति को यदि छोड़ दें तो भी हिंदी का जिन नेताओं ने, लोगों ने, ब्यूरोक्रेसी ने पूर्व में विरोध किया उन्हीं लोगों ने हिंदी की मलाई भी खूब काटी ।  हिंदी को लेकर तमाम लोग इनमें वैसे भी लोग शामिल है जिन्हें वैसे तो हिंदी की क ख ग नहीं आती पर बात जब विरोध की आती है तो ऐसे लोग भाषा विशेषज्ञ बन जाते हैं परंतु वे भी हिंदी पढ़ते है अपनी जरूरत के लिए।  एक बार फिर तमिलनाडु सरकार ने राजनीतिक लाभ एवं दुराग्रह के तहत भारत सरकार की एक प्रमुख बीमा कम्पनी द्वारा संविधान सम्मत और सरकारी दिशानिर्देश के अनुरूप जारी परिपत्र का विरोध कर संघवाद की नीति के प्रति अवमानना ही प्रदर्शित की है जोकि देशहित में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।  केंद्र सरकार के कार्यालयों की भाषा न