अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस
आज अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस है। संयोग से आज छठ पर्व के पहले अर्ध्य का भी दिन। सूर्य इस धरती पर जीवधारा के प्रतीक हैं। एक पिता की भाँति रक्षक। बिना किसी उपेक्षा या अपेक्षा के। पुरुष भी अपने परिवार के लिए सूर्य के समान होते हैं। पर उत्तर आधुनिक समाज इस ‘सूर्य’ को मलिन देखना चाहता है। क्योंकि वह भारतीय परिवार व्यवस्था की सशक्त परंपरा को नष्ट करना चाहता है। कमियाँ बहुत है पर कमी हर जगह है। पर सुधार के नाम पर किसी को प्रताड़ित न करें। केवल अंध मार्ग या वर्चस्व की ख़ातिर पूरी व्यवस्था को पथभ्रष्ट न करें। यहीं कारण है कि आज कई पुरुष अवसाद के शिकार हो रहे हैं । आज क़ानून की आड़ में उत्पीड़न के मिथ्या आरोपों में पुरुषों को फँसाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मुख्य रूप से समाज, समुदाय, परिवार, विवाह एवं बच्चों के देखभाल में उनकी भूमिका, लड़कों और पुरुषों के जीवन, उपलब्धियां और योगदान के स्मरण का एकदिन है। इस दिवस का उद्देश्य पुरुषों के मुद्दों के प्रति बुनियादी जागरूकता को बढ़ावा देना है। इसके साथ ही पुरुषों की सामान्यतया नकारात्मक छवि और उन्हें बहुधा खलनायक के रूप में चित्रित करने के पीछे की वास्तविकता को प्रस्तुत करना भी है। इस दृष्टिकोण को ठीक करने की ज़िम्मेदारी पुरुषों की भी है। साथ ही स्त्रियों को भी पुरुषों के प्रति अपनी स्थापित धारणाओं को बदलना होगा । पूर्वाग्रह को छोड़ना होगा ।
आज अपनी अंध मुखरता के कारण पुरुष वर्ग बड़ी खामोशी से खुद को बदनाम महसूस कर रहा है। इस दिवस पर मूक मजदूर वर्ग, इस तथाकथित अत्याचारी समाज से अपील है कि अपनी कमियों को पहचाने, अपनी खूबियों को जाने। आप समाज के महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप निर्माता नहीं, पर निर्माण के स्तंभ जरूर हैं । समाज आपके बिना चल नहीं सकता। क्योंकि वर्तमान में समाज के बड़े हिस्से की अंधभक्ति में हम भावी पीढ़ी के लड़कों का हश्र वहीं न कर दें जो आज से तीन सदी पूर्व लड़कियों के साथ होता था। आज का यथार्थ यह है कि लडकें भी शोषण का शिकार हो रहे हैं। समाज का मूल स्वभाव है 'सख्तर भक्तों, निर्ममों यमराज'।
आज अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर स्वरचित कविता ‘ पिता’ की याद आई। यह अकाट्य सत्य है कि हम सब माता के ममत्व और पिता की संवेदना पर आधारित हैं । बच्चे माता के गर्भ से जन्म लेते हैं और पिता की आत्मा से, इसलिए पुत्र-पुत्री को आत्मज-आत्मजा कहा जाता है । पूज्य बाबूजी को स्मरण करते हुए अपनी एक रचना साझा कर रहा हूँ जो पिता को समर्पित है। 🙏💐
पिता
यूँ तो दो अक्षरों का मेल
दोनों ही व्यंजन
शायद इसीलिए
भौतिकता के प्रतीक माने जाते
पर इनका त्याग अजर-अमर-अविनाशी
पर पिता होना इतना आसान भी तो नहीं
ईश्वरीय कृपा
पिता यानी पथ-प्रदर्शक, संरक्षक
जिंदगी की पगडंडियों पर संभालने वाले
जिनके बिना जिंदगी बंजर-सी, सूखी-सी
यूँ तो वह दूर से पत्थर, अबोला,
पर पास में ममता, स्नेह की विशाल बरगद –सी छाया
पिता
जिसे हमने दूसरों की नजर से देखा,
कभी अपनी माँ की नजरों से
कभी अपनी स्वार्थ की नजरों से
पर
पिता तो सबसे ऊपर है
क्योंकि वह नश्वर है।
(स्वरचित)
©डा. साकेत सहाय
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