साहित्य का अर्थ


चित्रकार इमरोज या इंद्रजीत जी के निधन के बाद बाजार एवं चर्चा पोषित लेखनी के समर्थक लिक्खाड़ों से सोशल मीडिया ‘अनसोशल’ होता जा रहा है। साहित्य प्रेमियों, बाज़ार से भी अलग एक अनुशासित दुनिया है। अन्यथा😔 

साहित्य का अर्थ

जिस प्रकार जड़ के बिना पौधा सूख जाता है, उसी प्रकार मूल के अभाव में लिखा हुआ साहित्य भी निरर्थक होता है। दुर्भाग्यवश, आजकल लोग बिना मूल को जाने ही केवल अपनी ‘उद्भभावना’ को ही सर्वांग सत्य मानने लगे है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि लेखक, पत्रकार वैज्ञानिक ज्ञान एवं सार्थक समझ के साथ ही अपनी मूल परंपरा, विरासत को जाने-समझे। जिस प्रकार जड़ का अस्तित्व पौधे से पहले होता है उसी प्रकार साहित्य का स्थायित्व भी उसके मूल पर टिका हुआ है।  तभी वह भावी पीढ़ी को मार्गदर्शित करने में सक्षम हो सकेगा। नकारात्मकता राष्ट्र, समाज की गति को बाधित करती है।  ऐसे में साहित्य की सशक्त भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है। आवश्यक यह है कि हम सभी  ‘भारतीय दृष्टि, सम्यक सृष्टि’ के भाव बोध को सशक्तता प्रदान करने में सहायक बने।   

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने निबंध ‘साहित्य की महत्ता’ में कहते है –‘ज्ञान-राशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। ‘  इन्हीं गुण-तत्त्वों के कारण भारतीय परंपरा एवं इतिहास में साहित्य को विशिष्ट स्थान प्राप्त है।  हमारा इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, कला, तर्क आदि सभी कुछ का नाम साहित्य है।  

साहित्य वहीं सफल होता है जिसकी पृष्ठभूमि में मनुष्यता है, संवेदना है, सच्चाई है।  एक साहित्यकार कालजयी होता है। तुलसीदास जी ने मर्यादा और कर्तव्य बोध को सबसे ऊपर रखा।  यही तुलसीदासजी के साहित्य के स्थायी अमरता का तत्त्व बोध है।  साहित्य हमें व्यापक दृष्टि देता हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम ऐसे साहित्य का सृजन करें जो सार्वकालिक हो, समदृष्टि रखें और हमारी संस्कृति को व्यापक दृष्टि प्रदान करता हो।  भावी पीढ़ी को दिशा देने हेतु इस साहित्य का अनुसरण किया जाना बेहद जरूरी है।  आज के साहित्यकारों, इतिहासकारों को इसे जानने-समझने की आवश्यकता है कि साहित्य देश एवं संस्कृति को जानने-समझने का सशक्त माध्यम है।  जिसमें संतुलन हो, समग्रता हो, सशक्तता हो, भावी पीढी के जानने-समझने की सोच हो। भारत अपनी समृद्ध परंपरा, संस्कृति के बल पर ही सदियों से दुनिया को राह दिखाता रहा है अब इसे मजबूत रखने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है।  


साहित्य का अर्थ 

साहित्य चेतना है

साहित्य उमंग है

साहित्य जागृति है

साहित्य तरंग है। 

साहित्य वेदना है

वेदना को समझने

की संवेदना है। 

………………….

साहित्य पशुता में 

मानवता का रंग

समाज की संवेदना

दिलों की अरमान 

जीवन के पंख की उड़ान 

………………….

रिश्तों की उड़ान 

माँ के लिए बच्चों की उड़ान 

देश के निवासियों की पहचान 

पिता के लिए परिवार की समृद्धि का नाम 

भाई के लिए बहन की खुशी 

बहन के लिए भाई की समृद्धि

पति के लिए पत्नी का प्यार

पत्नी के लिए पति की खुशी

यही साहित्य है। 

……………

साहित्य 

पत्थर से पत्थर रगड़ कर हुई 

आग के आविष्कार का नाम है

कृषक के पसीने से

सिंचित फसल का नाम है 

चिकित्सक के शोध का

भाव बोध है

……………

साहित्य 

प्रभु द्वारा शबरी के जूठे बेर का

प्रेम बोध है

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता 

विक्रम और वैताल के

धैर्य और चातुर्य का मेल

अकबर के प्रश्न

बीरबल के समाधान का नाम

है साहित्य

……………

साहित्य रंग है

साहित्य भाव है

साहित्य जीवन बोध है।

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©डॉ साकेत सहाय


धन्यवाद, प्रणाम , नमस्कार ।

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Comments

अच्छी परिभाषा। प्राकृतिक प्रदूषण की तरह साहित्य में भी सांस्कृतिक प्रदूषण बढ़ा है। धारावाहिक और चलचित्रों में नैतिकता का पतन देखा जा सकता है
जी, पढ़ने एवं आपकी टिप्पणी के लिए आभार
बहुत सारगर्भित लेख। काव्यांश भी लाजवाब। हार्दिक बधाई 🌹🌹

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