हिंदी : राष्ट्रभाषा


अक्सर सुनते है हिंदी फ़ारसी भाषा का शब्द है। पर यह भाषा आर्यभाषा, अपभ्रंश, लौकिक संस्कृत के रूप में उत्तर वैदिक काल से ही अस्तित्व में रही। इस प्रकार से हिंदी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए। वैसे भी  फ़ारसी भाषा में हिंदी का अर्थ होता है हिंद देश के निवासी। अर्थात् हिंदी सदियों से इस देश की जनभाषा, लोकभाषा, तीर्थभाषा, संपर्क भाषा आदि उपनामों से अलंकृत होकर ब्रिटिश पराधीनता से मुक्ति की वाहक भाषा बनकर उभरी। फिर स्वाधीनता प्राप्ति के बाद राष्ट्रभाषा से राजभाषा के पद पर आसीन हुईं।  इन सभी के बावजूद कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हमने हिंदी की सेवा की। कुछ लेखकों/पत्रकारों को तो यह भी लगता है कि हिंदी का वजूद ही उनकी वजह से हैं । मगर वे यह भूल जाते हैं कि हिंदी या मातृभाषाओं की वजह से ही हम सभी का अस्तित्व हैं । हिंदी सदियों से भारत की अखंडता की बुनियाद को  सशक्त करने का कार्य कर रही हैं ।  ऐसे में यह स्वाभाविक है  कि हिंदी का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व की नींव में हिंदी का योगदान है।  भाषाएँ, बोलियाँ हमारी माँ के समान है इनसे किसी का क्या बैर?

भाषाएँ, बोलियाँ प्रकृति  की जीवंतता हेतु  प्राणतत्व होती है और प्राणतत्व की शुद्धता हेतु हम सभी को प्रयासरत अवश्य होना चाहिए। 

#साकेत_विचार

#हिंदी। #शास्त्रीय_भाषा

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