महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री जयंती और मूल्यबोध




आज गाँधी जयंती है। साथ में लाल बहादुर शास्त्री की भी। ब्रिटिश भारत से आजाद होने के बाद भारत के राष्ट्र नायकों की जयंती पर शत शत नमन! पर यह हम सभी का दुर्भाग्य है कि  दशकों से इनके विचारों को जानबूझकर ढकोसला बनाकर ही परोसा जा रहा है। हमारे शासक, नौकरशाह, पत्रकार, न्यायालय, शिक्षाविद् सामूहिक रूप से ब्रिटिश भारत से आजादी के बाद गांधीजी और शास्त्रीजी के सपनों के भारत के हर लक्ष्य को मटियामेट करने में कोई कर-कसर नहीं छोड़े हुए है।  चाहे हिंदी एवं भारतीय भाषाओं को कलंकित कर अंग्रेजी को बढावा देने की बात हो या कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित न कर भारी उद्योगों की स्थापना की बात हो,  ग्रामीण भारत को अस्तित्वविहीन कर नियोजित शहरों की स्थापना की बात हो, समाज के बुनियादी तत्वों को समाप्त करने  में सहयोग और सत्ता ही मूलमंत्र है।  दरअसल गांधी का खात्मा उनके अनुयायियों ने ही पहले किया। दुर्भाग्य यह रहा है कि जिनकी वजह से वे सत्ता में पहुँचे उन्हीं के उसूलों का खात्मा किया जाना आधुनिक भारत में नैतिकता विहीन समाज की नींव रखने की प्राथमिक सीढ़ी बनी।  पर हमारे  समाज की आदत-सी बन गई है कि हम केवल पुरखों पर माल्यार्पण करते है पर उनके उसूलों, मूल्यों से दूर भागते है। अब ऐसे में महापुरुषों की जयंतियों पर उनके जीवन मूल्यों से सीखना ज़रूरी है।  उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी। 

#गाँधीजी #शास्त्रीजी

#साकेत_विचार

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