सड़के खाली है कोरोना काल पर कविता

 पिछले साल कोरोना के शुरुआती दौर में राष्ट्र कवि दिनकर जी की पुण्य तिथि पर लिखी थीं, जो आज भी   प्रासंगिक हैं |  

दिनकर जी वास्तव  में भारतवर्ष की महान संस्कृति, परंपरा, इतिहास के समन्वय पथ के अनुगामी सारथी थे |  दिनकर जी युग चारण कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।  कविता के बारे में वे कहते है - अच्छी कविता की पहचान यह है कि उसे पढ़कर मनुष्य के ह्रदय में एक प्रकार की बेचैनी या जागृति स्फुरित होती है और उसका मन भीतर-ही-भीतर किसी यात्रा या पर्यटन पर निकाल पड़ता है।  यह आवश्यक नहीं है कि यह यात्रा या पर्यटन उन्हीं अर्थों तक सीमित रहे, जो कविता के शब्दों में सन्निहित हैं।  असली वस्तु शब्दों के अर्थ नहीं, संकेत हैं और संकेत तो शब्द दूर तक दिया करते हैं |

उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें नमन करते हुए प्रस्तुत है मेरी कविता- 

आप सभी की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी ।  


सड़कें खाली हैं …………………


सड़कें खाली हैं .. 

सूनी हैं … 

महानगर और नगर की 

शहर और कस्बों की 

गाँवों के पगडंडियों की ।


पर 

बत्तियाँ जल रही हैं 

कीट, पतंगें, पशु-पक्षी 

सब दिख रहे हैं 

नहीं दिख रहा तो बस 

आदमी 

जो मानव से दानव बनने चला था 

विज्ञान को विकृत-ज्ञान बनाने पर तुला था 

हथियार को ही सब कुछ मान बैठा था 

परम-पिता को ही चित्त करने चला था 

था तो वह परमात्मा की अपूर्व, अप्रतिम कृति   

पर वहीं सबसे बड़ा विनाशक निकला 


आज सब कुछ है पर एक डर है 

भले आकाश नीला है 

धरती खामोश है 

नदियां साफ है 

पर वे कुछ बोलना चाहती हैं 

क्या कोई इन्हें सुनना भी चाहता है ।


कोरोना एक संकेत है 

हे मानव ! 

सुधर जाओ

अपनी इच्छाओं को अनंत बनाओ 

पर प्रकृति के अनुरूप 

मानव की प्रकृति तो विध्वंसक की नहीं होती 

अत: प्रकृति की सुनो, 

आओ फिर से धरती को स्वर्ग बनाओ  ।

© डॉ साकेत सहाय


#साकेत_विचार

Comments

Popular posts from this blog

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को श्रद्धांजलि और सामाजिक अव्यवस्था

साहित्य का अर्थ

पसंद और लगाव