फ़ारसी-भाषा में संस्कृत-भाषा की प्रशस्ति

 *फ़ारसी-भाषा में संस्कृत-भाषा की प्रशस्ति*

 / شتایش زبان 

سانسکریت  در زبان پارسی

(हिन्दी अनुवाद संलग्न)


दिल बे बाला मी रसद अज़ नर्दबाने-संस्कृत

ज़िन्दगी गुल मी गुशायद बा बयाने-संस्कृत

دل به بالا می رسد از نردبان سانسکریت

زندگی گُل می گُشاید با بیان سانسکریت

शम्से व्यासो कालिदासो वालमीको गुप्तपाद

मी दरख़्शद दरमियाने आसमाने-संस्कृत

شمسِ ویاس و کلِداس و والمیک و گُپتپاد

می درخشد درمیان آسمان سانسکریت

वाज़ेगाने-तो हमे पाइन्दे ओ जावीद बाद 

सद सलामे गर्म बर हर आशिकाने संस्कृत

واژه گانِ تو همه پاینده و جاوید باد 

صد سلامِ گرم بر هر عاشقان سانسکریت

दर जहाने शेरो दानिश अज़ कमालश रा मपुर्स

ता सुरैया तीर मी आरद कमाने-संस्कृत 

در جهانِ شعر و دانش از کمالش را مپرس

تا ثریا تیر می آرد کمانِ سانسکریت

हर ज़बाने हिन्द बा ईन् चश्मे अश दम मी ज़नद

मी चकद आबे-हयातज़ वाज़ेगाने-संस्कृत

هر زبانِ هند با این چشمه اش دم می زند

می چکد آب حیات از واژه گان سانسکریت

जान् मुअत्तर मी शवद दिल बागबानी मी कुनद

मी परद ख़ुश्बूये गुल-हा अज़ दहाने-संस्कृत

جان معطر می شود  دل باغبانی می کند

می پرد خوشبو ی گلها از دهان سانسکریت

अज़ ज़माने बास्तानी ता हनूज़ आईनेवार

हर कसी रा नूर बख़्शद आस्ताने-संस्कृत

از زمانِ باستانی تا هنوز آینه وار

هر کسی را نور بخشد آستان سانسکریت

गिर्दे-ख़ुर्शीदश कि मी गर्दीम मा चुन मुश्तरी 

ईन् क़दर मस्ती बियारद अर्ग़वाने-संस्कृत 

گردِ خورشیدش که می گردیم ما چون مشتری

این قدر مستی بیارد عرغوان سانسکریت

हर कि बा राहश बरायद मी परद दर बूस्तान् 

सर कुनद मैदाने-ग़म बा पुर्तवाने-संस्कृत

هر که با راهش براید می پرد در بوستان

سر کند میدانِ غم با پُرتوان سانسکریت

दर ज़बाने पारसी शेरम निशानी मी देहद

 शाकिरश हस्तम व बाशम पासबाने संस्कृत

در زبان پارسی شعرم نشانی می دهد

شاکرش هستم و باشم پاسبان سانسکریت

--سرویش سرمست

-- सर्वेश त्रिपाठी "सरमस्त बहराइची"


1-  हृदय सर्वोत्कृष्ट ऊंचाई तक पहुंचता है ; संस्कृत भाषा की सीढ़ी से

 ज़िन्दगी फूल खिलाने लगती है, संस्कृत भाषा के वचनों से । 


2- व्यास, कालिदास, वाल्मीकि और अभिनवगुप्त (गुप्तपाद) का सूरज , 

चमकता रहता है संस्कृत के विशाल आसमान में। 


3- (अय संस्कृत) तुम्हारी सम्पूर्ण शब्द-सम्पदा सदैव सुस्थिर और जीवन्त रहे,

मेरा गर्मजोशी भरा सैकड़ों सलाम है ; हर संस्कृत-प्रेमी को।


4- कविता और चिंतन-परम्परा के क्षेत्र में उसके कमाल, उसकी उत्कृष्टता को मत पूछो,

कि संस्कृत के धनुष की कमान ,सुरैया (सबसे ऊंचा तारा) तक तीर चलाती है


5- भारत की हर भाषा इसके सरचश्मे (स्रोत/सोते) से ही अपने प्राण पाती है,

टपकता रहता है ,जीवन का रस/ अमृत; संस्कृत के प्रत्येक शब्द से।


6- प्राण पवित्र हो उठते हैं, हृदय उपवन सजाने लगता है,बागबानी करने लगता है,,; 

उड़ती रहती हैं अनन्त फूलों की ख़ुशबुएँ : संस्कृत भाषा के मुख से


7- प्राचीनतम समय से आज तक एक आईने /सत्योदघाटक की तरह ,

हर किसी को ज्ञान का प्रकाश देती रहती है , ; संस्कृत की चौखट


8- हम सभी उसके सूरज के चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं, एक मङ्गल-ग्रह की तरह

इस तरह का आत्मिक और झुमा देने वाला आनन्द प्रदान करती है : संस्कृत की लाल-मदिरा। 


9- जो भी उसके रास्ते पर आता है, उड़ने लगता है वह खुशबुओं के उपवन में,

जीत लेता है वह दुखों, अवसादों के सभी युद्ध : संस्कृत की अपार सामर्थ्य और पराक्रम से। 


10- फ़ारसी भाषा मे लिखी हुई मेरी यह कविता, इस बात की निशानदेही कर रही है कि

मैं उसका (संस्कृत भाषा का)  कृतज्ञ  हूँ, और सदैव ही उसका अनुयायी रहूंगा।


*(साभार- सर्वेश त्रिपाठी जी, बहराइच)*

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