पुस्तक संस्कृति
उत्तर आधुनिक भारतीय किताबें खरीदकर तो कम ही पढ़ते हैं इसीलिए कवर पेज देखकर खुश हो लेते हैं और वो विदेशी हो तो क्या कहना? जिनकी हिंदी कमजोर है वो भी इतिहास का बखान हिंदी में करके किसी की चिंदी-चिंदी कर डालते हैं और जिनकी अंग्रेजी खराब है वो भी अंग्रेजी देखकर खुश हो लेते हैं ।
सांस्कृतिक विकृति का परिणाम है जन-सामान्य का पुस्तकों से दूर जाना, जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है
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