हिंदी पत्रकारिता दिवस
हिंदी पत्रकारिता दिवस
आज ही के दिन, आज से 195 वर्ष पूर्व 30 मई, 1826 को ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता यानी आधुनिक भाषाई वर्गीकरण के हिसाब से ‘ग' क्षेत्र से राष्ट्रभाषा हिंदी के पहले समाचार पत्र 'उदन्त मार्तंड की शुरुआत पं. युगल किशोर शुक्ल ने की थी।
तब से अब तक हिंदी पत्रकारिता ने ऐतिहासिक सफर तय किया है। हिंदी पत्रकारिता देशी संपर्क एवं भाषाओं, बोलियों की आवाज बनकर उभरी है। हालांकि इसके पक्ष एवं विपक्ष में विमर्श किए जा सकते हैं । मैंने अपने शोध प्रबंध ‘भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और हिंदी -१९९० के दशक के बाद: एक समीक्षात्मक अध्ययन तथा पुस्तक- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया :भाषिक संस्कार एवं संस्कृति में इन तथ्यों को उठाने का प्रयास किया है। कैसे हिंदी राष्ट्रभाषा से राजभाषा, स्वतंत्रता, समानता, साहित्य, संस्कृति, संस्कार की भाषा का सफर तय करते हुए इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के सहारे ज्ञान-विज्ञान, अर्थ, व्यापार, संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहारे हिंदी ने एक नयी राष्ट्रीय संस्कृति को जन्म दिया है। जिसकी परिकल्पना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने की थी। इस पत्रकारिता की नींव उद्यंत मार्तंड ने रखी थी। पर इसी के साथ यह हाल के दशकों में अनैतिकता एवं मानसिक विकृति का भी कारक बना।
इस देश के नेताओं, कलाकारों, लेखकों, प्रशासकों एवं विचारकों की लोकप्रियता में हिंदी का बहुमूल्य योगदान हैं । असंख्य नाम ऐसे हैं जिन्होंने इस तथ्य को व्यापकता प्रदान की है । जिनका अस्तित्व ही हिंदी के सहारे पनपा। हिंदी के द्वारा पूरे देश में
पताका फहराई जा सकती है। यह हिंदी ही है जो सबको सत्ता एवं पहचान देती है पर पद, पैसा और रसूख़ पाने के बाद अधिकांश इसे भूल जाते है।
मैं आज के दिवस पर सभी से अपील करूँगा पत्रकारिता की समृद्धि के लिए हिंदी और लिपि देवनागरी की व्यापकता को एक नया फलक दें । दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के निवासियों की भाषा हिंदी के सशक्तिकरण के लिए यह आवश्यक है कि वह ज्ञान-विज्ञान और संचार की भाषा के रूप में और मज़बूती के साथ स्थापित हो।
पत्रकारिता दिवस पर हम हिंदी तथा इसकी लिपि को देशी भाषाओं के समन्वय के प्रतीक रूप में स्थापित करने का प्रण करें।
जय हिंद ! जय हिंदी!
इस अवसर पर अपनी पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया : भाषिक संस्कार एवं संस्कृति से कुछ अंश
©डाॅ. साकेत सहाय
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