जीवन शिक्षण

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 *एक अदभुत कथा.* 

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एक आदमी ने एक पक्षी को, एक बूढ़े पक्षी को एक जंगल में पकड़ लिया था। 

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उस बूढ़े पक्षी ने कहा: मैं किसी भी तो काम का नहीं हूं, देह मेरी जीर्ण-जर्जर हो गई, जीवन मेरा समाप्त होने के करीब है, न मैं गीत गा सकता हूं, न मेरी वाणी में मधुरता है, मुझे पकड़ कर करोगे भी क्या? लेकिन यदि तुम मुझे छोड़ने को राजी हो जाओ, तो मैं जीवन के संबंध में तीन सूत्र तुम्हें बता सकता हूं।

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उस आदमी ने कहा: भरोसा क्या कि मैं तुम्हें छोड़ दूं और तुम सूत्र बताओ या न बताओ?

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उस पक्षी ने कहा: पहला सूत्र मैं तुम्हारे हाथ में ही तुम्हें बता दूंगा। और अगर तुम्हें सौदा करने जैसा लगे, तो तुम मुझे छोड़ देना। दूसरा सूत्र मैं वृक्ष के ऊपर बैठ कर बता दूंगा। और तीसरा सूत्र तो, जब मैं आकाश में ऊपर उड़ जाऊंगा तभी बता सकता हूं।

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बूढ़ा पक्षी था, सच ही उसकी आवाज में कोई मधुरता न थी, वह बाजार में बेचा भी नहीं जा सकता था। और उसके दिन भी समाप्तप्राय थे, वह ज्यादा दिन बचने को भी न था। उसे पकड़ रखने की कोई जरूरत भी न थी। उस शिकारी ने उस पक्षी को कहा: ठीक, शर्त स्वीकार है, तुम पहली सलाह, पहली एडवाइज, तुम पहला सूत्र मुझे बता दो।

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उस पक्षी ने कहा: *मैंने जीवन में उन लोगों को दुखी होते देखा है जो बीते हुए को भूल नहीं जाते हैं। और उन लोगों को मैंने आनंद से भरा देखा है जो बीते को विस्मरण कर देते हैं और जो मौजूद है उसमें जीते हैं, यह पहला सूत्र है।* बात काम की थी और मूल्य की थी। उस आदमी ने उस पक्षी को छोड़ दिया। वह पक्षी वृक्ष पर बैठा और उस आदमी ने पूछा कि दूसरा सूत्र ?

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 उस पक्षी ने कहा: *दूसरा सूत्र यह है कि कभी ऐसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए जो तर्क विरुद्ध हो, जो विचार के प्रतिकूल हो, जो सामान्य बुद्धि के नियमों के विपरीत पड़ती हो, उस पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए, वैसा विश्वास करने वाला व्यक्ति भटक जाता है।* 

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पक्षी आकाश में उड़ गया। उड़ते-उड़ते उसने कहा: एक बात तुम्हें उड़ते-उड़ते बता दूं, यह तीसरा सूत्र नहीं है यह केवल एक खबर है जो तुम्हें दे दूं। तुम बड़ी भूल में पड़ गए हो मुझे छोड़ कर, मेरे शरीर में दो बहुमूल्य हीरे थे, काश, तुम मुझे मार डालते तो तुम आज अरबपति हो जाते।

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वह आदमी एकदम उदास हो गया। वह एकदम चिंतित हो गया। लेकिन पक्षी तो आकाश में उड़ गया था। उसने उदास और हारे हुए और घबड़ाए हुए मन से कहा: खैर कोई बात नहीं, लेकिन कम से कम तीसरी सलाह तो दे दो। उस पक्षी ने कहा: तीसरी सलाह देने की अब कोई जरूरत न रही; तुमने पहली दो सलाह पर काम ही नहीं किया। *मैंने* *तुमसे कहा था कि जो बीत गया उसे भूल जाने वाला आनंदित होता है,* तुम उस बात को याद रखे हो कि तुम मुझे पकड़े थे और तुमने मुझे छोड़ दिया। वह बात बीत गई, तुम उसके लिए दुखी हो रहे हो। 

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मैंने तुमसे दूसरा सूत्र कहा था: *जो* *तर्क विरुद्ध हो, बुद्धि के अनुकूल न हो, उसे कभी मत मानना।* तुमने यह बात मान ली कि पक्षी के शरीर में हीरे हो सकते हैं और तुम उसके लिए दुखी हो रहे हो। क्षमा करो, तीसरा सूत्र मैं तुम्हें बताने को अब राजी नहीं हूं। क्योंकि जब दो सूत्रों पर ही तुमने कोई अमल नहीं किया, कोई विचार नहीं किया, तो तीसरा भी व्यर्थ के हाथों में चला जाएगा, उसकी कोई उपादेयता नहीं।

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इसलिए मैं पहली बात तो यह कहता हूं कि अगर पिछले दो सूत्रों पर ख्याल किया हो, सोचा हो, वह कहीं प्राण के किसी कोने में उन्होंने जगह बना ली हो, तो ही तीसरा सूत्र समझ में आ सकता है। अन्यथा तीसरा सूत्र बिल्कुल अबूझ होगा। 

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मैं उस पक्षी जैसी ज्यादती नहीं कर सकता हूं कि कह दूं कि तीसरा सूत्र नहीं बताऊंगा, तीसरा सूत्र बताता हूं। 

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लेकिन वह आप तक पहुंचेगा या नहीं यह मुझे पता नहीं है। वह आप तक पहुंच सकता है *अगर दो सूत्र भी पहुंच गए हों, उन्हीं की राह पर वह धीरे से विकसित होता है।* और अगर दो सीढ़ियां खो जाएं तो फिर तीसरी सीढ़ी बड़ी बेबूझ हो जाती है, उसको पकड़ना और पहचानना कठिन हो जाता है, *वह बहुत मिस्टीरियस मालूम होने लगती है।* 


 *ओशो* ।


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